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आरक्षण: अभिशाप या वरदान?
आरक्षण: अभिशाप या वरदान? भारतीय समाज में आरक्षण एक अत्यंत विवादास्पद और संवेदनशील मुद्दा है। आरक्षण का उद्देश्य समाज के पिछड़े और दलित वर्गों को समान अवसर प्रदान करना है, ताकि वे मुख्यधारा में शामिल हो सकें और सामाजिक-आर्थिक प्रगति कर सकें। हालांकि, आरक्षण को कुछ लोग एक अभिशाप मानते हैं, जो समाज में असमानता और विभाजन को बढ़ावा देता है। इस निबंध में, हम आरक्षण के विभिन्न पहलुओं, उसके लाभों और हानियों का विश्लेषण करेंगे और समझेंगे कि क्या यह वास्तव में एक अभिशाप है या फिर समाज की बेहतरी के लिए एक महत्वपूर्ण कदम। आरक्षण की उत्पत्ति और उद्देश्य आरक्षण की नीति का मुख्य उद्देश्य था समाज के आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों को समान अवसर प्रदान करना। भारत के संविधान में अनुसूचित जातियों (SC), अनुसूचित जनजातियों (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया। संविधान निर्माताओं का विचार था कि आरक्षण के माध्यम से इन वर्गों को शैक्षिक और व्यावसायिक अवसर प्राप्त होंगे, जिससे वे समाज के मुख्यधारा में शामिल हो सकेंगे। आरक्षण के लाभ समानता की दिशा में कदम: आरक्षण नीति ने लाखों दलित और पिछड़े वर्गों के लोगों को शिक्षा और रोजगार में समान अवसर प्रदान किए हैं। इससे समाज में समानता की भावना बढ़ी है और इन वर्गों के लोगों का आत्मसम्मान बढ़ा है। शैक्षिक प्रगति: आरक्षण ने दलित और पिछड़े वर्गों के छात्रों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के अवसर प्रदान किए हैं। इससे इन वर्गों में शैक्षिक स्तर में सुधार हुआ है और वे उच्च पदों पर भी पहुंच सके हैं। सामाजिक न्याय: आरक्षण नीति ने समाज में व्याप्त जातिवाद और भेदभाव को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इससे पिछड़े वर्गों के लोगों को सामाजिक न्याय प्राप्त हुआ है और उनकी स्थिति में सुधार हुआ है। आरक्षण की चुनौतियाँ और हानियाँ मेधावी छात्रों के अवसर कम होना: आरक्षण के कारण कई बार मेधावी छात्रों को उनकी योग्यता के बावजूद अच्छे संस्थानों में प्रवेश नहीं मिल पाता। इससे प्रतिभाओं का नुकसान होता है और समाज में असंतोष बढ़ता है। जातिवाद को बढ़ावा: आरक्षण नीति ने जातिवाद को समाप्त करने के बजाय कई बार उसे और बढ़ावा दिया है। समाज में जातिगत पहचान को मजबूत करने के कारण जातिगत विभाजन बढ़ा है। योग्यता का अपमान: कई बार आरक्षण के कारण कम योग्यता वाले उम्मीदवारों को भी महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त कर दिया जाता है, जिससे कार्यक्षमता और गुणवत्तापूर्ण सेवा में कमी आती है। आर्थिक आधार की अनदेखी: आरक्षण नीति में आर्थिक आधार को नजरअंदाज किया गया है। इससे कई गरीब और जरूरतमंद लोग, जो जातिगत रूप से पिछड़े नहीं हैं, वे आरक्षण का लाभ नहीं उठा पाते। आरक्षण का भविष्य आरक्षण नीति की सफलता और विफलता दोनों ही उसके कार्यान्वयन पर निर्भर करती है। यदि इसे सही तरीके से लागू किया जाए तो यह समाज के पिछड़े वर्गों को मुख्यधारा में लाने का एक प्रभावी साधन बन सकता है। इसके लिए कुछ सुझाव निम्नलिखित हैं: आर्थिक आधार पर आरक्षण: जातिगत आरक्षण की बजाय आर्थिक आधार पर आरक्षण देने पर विचार किया जाना चाहिए। इससे समाज के सभी गरीब और जरूरतमंद लोगों को लाभ मिलेगा, भले ही उनकी जाति कुछ भी हो। समयबद्ध समीक्षा: आरक्षण नीति की समय-समय पर समीक्षा की जानी चाहिए और इसके प्रभाव का मूल्यांकन किया जाना चाहिए। इससे नीतियों में आवश्यक सुधार किए जा सकेंगे। शिक्षा और कौशल विकास: आरक्षण के साथ-साथ शिक्षा और कौशल विकास पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। इससे समाज के पिछड़े वर्गों के लोगों को बेहतर अवसर मिल सकेंगे और वे अपनी योग्यता के आधार पर आगे बढ़ सकेंगे। समाज में जागरूकता: समाज में आरक्षण के महत्व और उसकी सीमाओं के बारे में जागरूकता बढ़ाई जानी चाहिए। इससे समाज में आरक्षण के प्रति व्याप्त भ्रांतियों को दूर किया जा सकेगा। निष्कर्ष आरक्षण एक विवादास्पद विषय है, जो समाज में विभिन्न धारणाओं और भावनाओं को जन्म देता है। यह एक ओर समाज के पिछड़े और दलित वर्गों के लिए वरदान साबित हुआ है, तो दूसरी ओर कई बार इसे एक अभिशाप के रूप में भी देखा गया है। यह महत्वपूर्ण है कि आरक्षण नीति का उद्देश्य समाज में समानता और न्याय की भावना को बढ़ावा देना है। इसके लिए आवश्यक है कि इस नीति को सही तरीके से लागू किया जाए और समय-समय पर इसकी समीक्षा की जाए। इससे आरक्षण समाज की बेहतरी के लिए एक सकारात्मक कदम बन सकता है और समाज में सच्चे समानता और न्याय की स्थापना हो सकती है।READ MOREअसफलता अंत नहीं होती – यह तो नई शुरुआत का संकेत है"चौथा स्तंभ: लोकमानस में अडिग, संविधान में अदृश्य
19 May '25
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शिक्षा
आरक्षण: अभिशाप या वरदान?
एक अनोखा मिलन विज्ञान और आस्था का
एकतरफ़ आज के युग में जहाँ लोग विज्ञान की ओर ज़्यादा बढ़ रहे हैं कहीं ना कहीं ईश्वर में एक अविश्वास की धारणा भी बढ़ती जा रही है। लोग ईश्वर के अस्तित्व पर भी कई प्रश्न उठाने लग गये है।क्यों? ...भगवान और आस्था पर सवाल उठाना इतना आसान हो गया है, जबकि हमारा जीवन और पूरा अस्तित्व ही ईश्वर से जुड़ा हुआ है।इस विषय मैं सबकी अपनी व्यक्तिगत राय और समझ होती है लेकिन कभी- कभी विश्व मैं ऐसी घटनायें घटित होती है जो हमको उस अपार शक्ति के होने का अनुपम आभास कराती है।विज्ञान की ओर बढ़ना बेहद ज़रूरी है और यही प्रगति की निशानी भी है, लेकिन साथ ही साथ आज के इस युग में उस अलौकिक शक्ति में आस्था रखना भी ज़रूरी है, ऐसा मेरा मानना है और यह मेरी व्यक्तिगत राय है।नमस्कार प्रिय पाठको, मेरा नाम प्रियंका है और मैं भारत देश के उत्तर में स्थित एक छोटे से राज्य उत्तराखण्ड से हूँ। क्यूंकि मेरी जन्म भूमि उत्तराखण्ड है इसलिये यहाँ के परिवेश की छाप मेरे मन-मस्तिष्क मैं काफ़ी गहरी है। ईश्वर में अपार आस्था पहाड़ी जीवनशैली का ही एक हिस्सा है। मैंने स्नातकोत्तर की डिग्री बायोटेक्नोलॉजी में ली है और मैंने सी. एस.आई. आर की एक लैब में शोधकार्य भी किया है। तो आप ये मान सकते है कि मैंने भगवान और विज्ञान दोनों को ही बहुत करीब से जाना है।इस सत्य घटना को लिखने और आप तक पहुँचाने का सिर्फ एक मात्र उद्देश्य हैं- आपको एक कदम आस्था की ओर लेकर जाना विज्ञान के साथ।अभी हाल ही में उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के सिलकियरा गाँव में हुई टनल की घटना ने पूरे विश्व का ध्यान अपनी ओर खींचा और कहीं न कहीं ये भी संदेश दिया कि विज्ञान और आस्था का साथ- साथ चलना कभी- कभी बहुत ज़रूरी हो जाता है। कभी- कभी दोनों एक दूसरे के पूरक भी हो जाते है किसी मायने में और अगर साथ में चले तो बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है।हुआ यु कि उत्तराखंड में एक छोटा- सा गाँव है जिसका नाम है सिल्कियारा, जो की उत्तरकाशी जिले मैं है। सन् 2023 की बात है, नवंबर का महीना था, वहाँ पर एक टनल की खुदाई का कार्य जोर- शोर से चल रहा था। ये टनल चार धाम इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट प्रोजेक्ट का हिस्सा है। जिस जगह पर काम चल रहा था, उस जगह में वहाँ के क्षेत्र देवता (village deity, बौखनाग देवता) का प्राचीन मंदिर था और जब सुरंग निर्माण का कार्य शुरू किया तो वह मंदिर तोड़ दिया गया। उत्तराखंड क्योंकि देव भूमि है वहाँ कण- कण में देवी- देवताओं का वास होता है, वहाँ की पौराणिक परंपरा यह है कि जब भी कोई निर्माणकार्य शुरू किया जाता है तो सबसे पहले वहाँ के क्षेत्र देवता की आज्ञा ली जाती है और पूरे विधि विधान के साथ भूमिपूजन भी किया जाता है।सिल्कियारा में टनल खुदाई से पहले ना ही देवता से पूछा गया और न ही कोई पूजा अर्चना की गई। विज्ञान और तकनीक में भरोसा सबसे ऊपर रखा गया और आस्था को कही उतना महत्त्व नहीं दिया गया। टनल का कार्य शुरू हुआ और सब ठीक ही चल रहा था कि अचानक एक दिन एक ख़बर आई की टनल के अंदर ऊपर से कुछ मलबा गिरा है, जिसके चलते 41 मज़दूर सुरंग के अंदर ही फँस गए हैं। चारों तरफ ये ख़बर आग कि तरह फैल गई। मीडिया, प्रशासन, पुलिस, स्थानीय निवासी सब के सब ग्राउंड जीरो मैं तुरंत पहुँच गए। पहले पहले लगा कि लोगों को सुरक्षित निकाल पाना आसान होगा और प्रशासन लोगों को बाहर निकाल लेगा, पर ये इतना आसान भी नहीं था।लेकिन दिन बीतते गए और लोग अंदर ही फँस रहे। बड़ी- बड़ी मशीनें, कटर, टनल एक्सपर्ट्स, वैज्ञानिक, रेस्क्यू ऑपरेटर्स सभी देश और विदेश से सिल्कियारा पहुँच गए थे। हैदराबाद से भी रातो रात प्लाज्मा मशीन एयरलिफ़्ट करके ग्राउंड जीरो मैं पहुचाई गई। लेकिन ऐसा लग रहा था जैसे वहाँ जाकर अच्छी से अच्छी मशीनें भी फेल हो रही थीं। कोई भी राहत कार्य सफल नहीं हो रहा था। ये बड़ी विचित्र- सी बात थी और अब बचाओ कार्य मुश्किल होता जा रहा था। उम्मीद तो थी, लेकिन कहीं न कही धूमिल भी हो रही थी, क्योंकि समय काफ़ी बीत गया था। सारी मशीनें फेल होते देख के सरकार परेशानी मैं आ गई थी।इसी बीच, तब सिल्कियारा गाँव ने निवासियों ने सरकार और टनल एक्स्पर्ट Mr. Arnold Dix से अपील करी की वहाँ पर स्थानीय देवता को बुलाया जाए, पूजा अर्चना की जाए और जो मंदिर तोड़ने की गलती हुई है अनजाने मे, उसकी माफी माँगी जाए। ग्रामीण निवासियों का मानना था कि टनल आपदा कि मूल वजह यही थी की क्षेत्र देवता नाराज हो गए हैं और उनको मनाए बिना रेस्क्यू ऑपरेशन सफल नहीं हो सकता |फिर सरकारी तंत्र हरकत में आया, सरकार के मंत्री, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री आए, अंतरराष्ट्रीय टनल विशेषज्ञ आर्नोल्ड डिक्स वहाँ पहुँचे। देवता के सामने माफ़ी मांगी, पूजा अर्चना की और मंदिर बनाने का वचन दिया। सुरंग के शुरुआत में, मुख्य द्वार के समीप एक छोटा- सा क्षेत्र देवता का मंदिर भी बनवाया गया।जैसे ही पूजा अर्चना खत्म हुई, शांखनाद हुआ, घंटे बजे, उसके बाद मानो, सारे रास्ते अपने आप खुलते चले गए मानों भगवान अब प्रसन्न हो गए हो। आज की तारीक में भी भव्य मन्दिर निर्माण का कार्य वहाँ चल रहा है।रेस्क्यू का काम फिर से शुरू हुआ, सुरंग में 41 जानें फँसी थीं और 17 दिन तक वह अंदर थे। उसके बाद एक- एक करके 17 दिन के बाद सबको बाहर निकाला गया, ट्रॉली के माध्यम से। 41 मज़दूर सकुशल बाहर आए और ईश्वर को धन्यवाद दिया।ऐसी हजारों सत्य घटनाएँ है, जब ईश्वर ने खुद के होने के साक्ष्य और प्रमाण दोनों हमें दिए है। खुद चिकित्सा विज्ञान भी बहुत से अनसुलझे पहलुओं के उत्तर ईश्वर और आस्था में ढूँढ़ते है। चंद्रयान जैसे बड़े प्रोजैक्ट्स के समय भी हमने विज्ञान और आस्था का अच्छा समन्वय देखा। चाँद की ज़मीन में जहाँ हिंदुस्तान का चंद्रयान 3 लैंड किया, उस जगह को भी हमने "शिव शक्ति" पॉइंट का नाम दिया। ये हमारी आस्था ही तो है !!!!!ऐसी कई कहानियाँ है जो निश्चित तौर पर अद्भुत है, अकल्पनीय है, किंतु सत्य है।इस विषय में आपकी क्या राय है आप हमसे नीचे “Comments section” में शेयर कर सकते है।कहीं ना कहीं उत्तरकाशी की इस कहानी के माध्यम से ये कहावत जीवंत हो गई है 'मानो तो सब कुछ है और ना मानो तो कुछ भी नहीं'। क्या मानना है और क्या नहि, यह निर्णय हम आप पर छोड़ते है|आस्था उम्मीद को कायम रखती है |आप क्या सोचते हे ?धन्यवाद।-Priyanka
02 Jun '24
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एक अनोखा मिलन विज्ञान और आस्था का

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