79वें स्वतंत्रता दिवस पर विकास की विजयगाथा

बलिदान से विकास तक: भारत की 79 साल की यात्रा

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12 Aug '25
3 मिनट की पढ़ाई


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तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा…”— यह नारा देने वाले नेताजी सुभाष बोस, “करो या मरो” कहने वाले महात्मा गांधी, “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है” का उद्घोष करने वाले लोकमान्य तिलक, और अनगिनत गुमनाम क्रांतिकारियों का सपना था—एक ऐसा भारत जो अपने पैरों पर खड़ा हो, गर्व से सर उठाकर दुनिया की आंखों में आंखें डाल सके।

15 अगस्त 1947 को जब तिरंगा पहली बार लाल किले की प्राचीर पर लहराया, तब यह केवल एक ध्वज नहीं था—यह शताब्दियों की पीड़ा, बलिदान, संघर्ष और उम्मीदों का प्रतीक था। उस दिन हमने आज़ादी तो पा ली थी, लेकिन असली परीक्षा तब शुरू हुई—गरीबी, अशिक्षा, भूख, बेरोजगारी और टूटे हुए बुनियादी ढांचे से जूझते भारत को खड़ा करना।

आज, 79 साल बाद, हम गर्व से कह सकते हैं—हमने हार नहीं मानी, हमने दुनिया को दिखा दिया कि भारत किसी से कम नहीं।

स्वतंत्रता से आत्मनिर्भरता तक का सफ़र

1947 का भारत—एक जर्जर अर्थव्यवस्था, कमजोर कृषि, कमज़ोर औद्योगिक आधार, और उपनिवेशवाद की चोटों से भरा देश। लेकिन आज हम दुनिया की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं, और आने वाले वर्षों में तीसरे स्थान पर पहुँचने का लक्ष्य रखते हैं। यह बदलाव केवल कागज़ी नीतियों से नहीं, बल्कि करोड़ों मेहनतकश हाथों, सपने देखने वाली आँखों और देश के लिए समर्पित दिलों से आया है।

 

कृषि और खाद्य सुरक्षा में आत्मनिर्भरता

कभी अमेरिका से गेहूँ मंगवाने वाला भारत आज गेहूँ, चावल और दालों का सबसे बड़ा उत्पादक है। हरित क्रांति ने खेतों में हरियाली और किसानों के चेहरों पर मुस्कान ला दी। अब तो कृषि में ड्रोन, सेंसर और डिजिटल तकनीक प्रवेश कर चुकी है। यह आत्मनिर्भरता सिर्फ खेत तक सीमित नहीं—यह हमारे आत्मविश्वास की पहचान है।

 

विज्ञान और तकनीकी की छलांग

चंद्रयान, मंगलयान, और हाल में चंद्रयान-3 की सफलता… यह किसी जादू से कम नहीं। जिसने कभी रेडियो के सहारे खबर सुनी, वह आज मोबाइल ऐप से दुनिया से जुड़ रहा है। डिजिटल इंडिया ने गांव-गांव को इंटरनेट से जोड़ा, और भारत डेटा उपभोग में विश्व में सबसे आगे है।

 

शिक्षा और स्वास्थ्य में सुधार

आजादी के समय 12% साक्षरता दर वाला भारत अब 77% से ऊपर है। IIT, IIM, AIIMS जैसे संस्थान भारत को वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठा दिला रहे हैं। स्वास्थ्य क्षेत्र में आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं ने करोड़ों गरीबों के लिए अस्पताल के दरवाज़े खोले। कोविड-19 में भारत ने दुनिया को वैक्सीन देकर मानवता के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाई।

 

बुनियादी ढाँचे में क्रांति

देश में मेट्रो, एक्सप्रेसवे, हवाई अड्डे और स्मार्ट शहर—ये सब एक नए भारत की पहचान हैं। बिजली, पानी और सड़क जैसी बुनियादी सुविधाएँ अब लाखों-करोड़ों लोगों तक पहुँच चुकी हैं।

 

लोकतंत्र की मज़बूती

भारत का लोकतंत्र हमारी सबसे बड़ी ताकत है। सत्ता बदली, विचारधाराएँ बदलीं, लेकिन संविधान और लोकतांत्रिक व्यवस्था अडिग रही।

 

महिला सशक्तिकरण और सामाजिक परिवर्तन

अब भारत की बेटियाँ अंतरिक्ष में जा रही हैं, फाइटर प्लेन उड़ा रही हैं, संसद में नेतृत्व कर रही हैं। “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” जैसी मुहिम ने सोच बदली है।

 

बाक़ी चुनौतियाँ

फिर भी, बेरोज़गारी, प्रदूषण, शिक्षा की गुणवत्ता, ग्रामीण-शहरी असमानता जैसी चुनौतियाँ हमारे सामने हैं। विकास का मतलब सिर्फ GDP बढ़ाना नहीं, बल्कि हर नागरिक तक समान अवसर पहुँचाना है।

 

आगे की राह

79वें स्वतंत्रता दिवस पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम विकास को समावेशी, पर्यावरण-सम्मत और न्यायपूर्ण बनाएँगे। आत्मनिर्भर भारत का सपना तभी पूरा होगा जब हर नागरिक जागरूक और जिम्मेदार बनेगा।

 

निष्कर्ष: तिरंगे की पुकार

आज जब तिरंगा हवा में लहराता है, उसकी हर लहर हमें पुकारती है—
"मुझे उस ऊँचाई तक ले जाओ जहाँ भारत का नाम ही सम्मान का पर्याय बन जाए!"

79 वर्षों का सफर हमारे संकल्प, पसीने और बलिदान का प्रमाण है। लेकिन यह मंज़िल नहीं—यह तो अगली यात्रा की शुरुआत है। हमें गरीबी के अंधेरे को मिटाना है, शिक्षा और स्वास्थ्य का प्रकाश हर कोने तक पहुँचाना है, और एक ऐसा भारत गढ़ना है जहाँ हर बेटा-बेटी गर्व से कह सके—
"हाँ! यह मेरा भारत है—मजबूत, आत्मनिर्भर और अजेय!"

आइए, इस स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगे के सामने यह प्रतिज्ञा लें—

  • न हम रुकेंगे, न थकेंगे, न झुकेंगे… जब तक भारत को विकास के शिखर पर न पहुँचा दें।
  • हर हाथ को काम, हर बच्चे को शिक्षा, हर घर को सम्मान—यही होगा सच्चा स्वतंत्र भारत।     ( रघुवीर सिंह पंवार )
कैटेगरी:देश प्रेम



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इसके लेखक हैं Raghuvir Singh Panwar

लेखक सम्पादत साप्ताहिक समाचार थीम

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