गंगा घाट के पास हरिनारायण की झोंपड़ी
( हरिनारायण जूता सिल रहा है, उसकी खांसी की आवाज़ गूंजती है। मीरा चूल्हे पर रोटी बना रही है। अभय लालटेन की रोशनी में किताब पढ़ रहा है। गंगा की लहरों की मंद मंद आवाज आ रही है।
हरिनारायण: (खांसते हुए, कमजोर स्वर में) मीरा, आज बस एक जोड़ी जूता ठीक हुआ। लगता है, आज फिर दाल के बिना काम चलाना पड़ेगा।
मीरा: (चिंता से) तुम्हारी तबीयत दिन-ब-दिन बिगड़ रही है। काम कम करो, हरिनारायण। अभय की पढ़ाई का इंतजाम मैं कर लूँगी।
हरिनारायण: (हल्का मुस्कुराते हुए) तू क्या कर लेगी, मीरा? ये जो थोड़ा-सा कमाता हूँ, वो अभय के सपनों के लिए है। मेरा बेटा बड़ा आदमी बनेगा। (अभय की ओर देखकर) पढ़ रहा है ना, बेटा?
अभय: (किताब से नजर उठाकर, भावुक स्वर में) हाँ, पिताजी। मैं वादा करता हूँ, आपके सारे दर्द को एक दिन सुख में बदल दूंगा।
मीरा: (आँखों में आंसू लिए) बस, तू मेहनत कर, बेटा। गंगा मैया सब अच्छा करेंगी।
(गंगा की लहरों भावनात्मक संगीत सूनामी दे रहा है)
(स्कूल के गलियारा में अभय फटे कपड़ों में बस्ता लिए खड़ा है। उसके सहपाठी विवेक और आरव उसका मजाक उड़ा रहे हैं। एक लड़की, काव्या, दूर खड़ी सब देख रही है। उसके मन में अभय के लिए हमदर्दी है। जो कि कब प्यार में बदल गया उसे पता ही नहीं है।)
आरव: (हँसते हुए) अरे, मोची का बेटा फिर आ गया! देखो, इसके जूतों में तो छेद है!
विवेक: (ताना मारते हुए) कहीं हमारे जूते चुराने तो नहीं आया?
अभय: (गुस्से को दबाते हुए) मेरे पिताजी के हाथों में हुनर है। तुम जैसे लोग उनकी मेहनत का मोल नहीं समझ सकते।
काव्या: (आगे बढ़कर, गुस्से में) बस करो, तुम लोग! अभय की मेहनत और ईमानदारी तुमसे कहीं ज्यादा है। शर्म नहीं आती, किसी के पिता का मजाक उड़ाते हुए?
(बच्चे चुप होकर चले जाते हैं। अभय काव्या की ओर देखता है।)
अभय: (झेंपते हुए) शुक्रिया, काव्या। तुमने मेरे लिए बोला, ये मेरे लिए बहुत मायने रखता है।
काव्या: (मुस्कुराते हुए) अभय, मैं तुम्हारी मेहनत देखती हूँ। तुम बहुत खास हो।
( दोनों एक-दूसरे को देखते हैं, फिर काव्या चली जाती है। काव्य पलट कर अभय को देखती हैं। अभय को गंगा की लहरो सेरोमांटिक धुन सुनाई देने लगते हैं। अभय भी क्लास की ओर चल देता है)
अध्यापक शंकर मिश्रा कक्षा में प्रवेश करते हैं।
शंकर: अभय किसका नाम है?
अभय हाथ उठाता है। शंकर मिश्रा उसे अपने पास बुलाते हैं
शंकर मिश्रा: (गंभीर स्वर में) अभय, मैंने तुम्हारी कॉपियाँ देखीं। तुममें गजब की प्रतिभा है। घर में कौन पढ़ाता है तुम्हें?
अभय: (सादगी से) कोई नहीं, गुरुजी। बस, लालटेन की रोशनी में किताबें पढ़ लेता हूँ।
शंकर मिश्रा: (आश्चर्य से) और किताबें? क्या तुम किताबें खरीद पाते हो?
अभय: (मुस्कुराते हुए) नहीं, गुरुजी। स्कूल की किताबों से ही काम चला लेता हूँ।
शंकर मिश्रा: (दृढ़ स्वर में) आज से तुम मेरे शिष्य हो। मैं तुम्हें किताबें, नोट्स, और हर जरूरी चीज दूंगा। बस, अपने पिता के सपनों को सच करो।
अभय: (आँखों में आंसू लिए) गुरुजी, मैं आपके इस एहसान को कभी नहीं भूलूंगा।
गंगा की लहरें इस समय बिल्कुल शांत है
गंगा घाट के किनारे अभय और काव्या पेड़ के नीचे बैठे हैं। काव्या अभय को किताब दे रही है।)
काव्या: (प्यार से) ये मेरी पुरानी किताबें हैं, अभय। तुम्हारे काम आएंगी।
अभय: (भावुक होकर) काव्या, तुम मेरे लिए इतना क्यों करती हो? मैं तो बस एक मोची का बेटा हूँ।
काव्या: (आँखों में आंसू लिए) अभय, तुम मेरे लिए वो इंसान हो जो सपनों के लिए जिए। मेरे लिए तुम्हारा दिल मायने रखता है, तुम्हारा हुनर मायने रखता है।
अभय: (उदास स्वर में) लेकिन काव्या, मेरे पास तुम्हें देने के लिए कुछ नहीं। ना पैसा, ना रुतबा। मेरे पिताजी बीमार हैं, और मैं... मैं बस उनके सपनों को पूरा करना चाहता हूँ।
काव्या: (हाथ पकड़कर) अभय, मुझे तुम्हारा साथ चाहिए, तुम्हारा प्यार चाहिए। मैं तुम्हारे साथ हर कदम पर हूँ।
(दोनों एक-दूसरे को गले लगाते हैं। गंगा की लहरे एक प्रेम धुन बजा रही है।)
जब अभय घर पहुंचता है हरिनारायण की तबीयत खराब हो जाती है।हरिनारायण बिस्तर पर लेटा है। खांसने की वजह से वह कमजोर हो गया है। बीच-बीच में खासते हुए उसके मुंह में खून निकलने लगता है
मीरा: (रोते हुए) हरिनारायण, तुमने कभी अपनी नहीं सोची। दिन-रात काम, काम, काम... अब देखो, ये हाल हो गया।
हरिनारायण: (कमजोर स्वर में) मीरा, अगर मेरी मेहनत से अभय का भविष्य बन जाए, तो ये खांसी क्या चीज है?
अभय: (रोते हुए) पिताजी, आप ठीक हो जाओ। मैं वादा करता हूँ, आपके सारे सपने पूरे करूंगा।
हरिनारायण: (हल्का मुस्कुराते हुए) बेटा, तू बस ईमानदार बना रहना। और हाँ, उस काव्या को संभाल कर रखना। वो लड़की तेरे लिए गंगा मैया का आशीर्वाद है।
(अभय और मीरा रो पड़ते हैं)
आज बोर्ड परीक्षा का परिणाम आ गया है। स्कूल का प्रांगणकी दीवार पर रिजल्ट की सूची लगी है। शंकर मिश्रा और काव्या अभय के साथ रिजल्ट देख कर उत्साहित हो जाते हैं ।)
शंकर मिश्रा: (गर्व से) अभय, तुमने जिले में टॉप किया! तुमने अपने पिता का नाम रोशन कर दिया।
काव्या: (खुशी से) अभय, मैं जानती थी! तुम कर दिखाओगे!
अभय: (आँखों में आंसू लिए) गुरुजी, काव्या, ये जीत मेरी अकेले की नहीं। ये मेरे पिताजी की मेहनत, माँ की दुआओं, और तुम दोनों के विश्वास की जीत है।
अभय को मुख्यमंत्री के हाथों पुरस्कार मिलता है। उसके बाद कई सारे पत्रकार उसे प्रश्न पूछने लगते हैं
पत्रकार: अभय जी, पूरे जिले में पका का नाम गूंज रहा है। तुम्हारी प्रेरणा कौन है?
अभय: (भावुक स्वर में) मेरे पिताजी, जिन्होंने अपनी हर सांस मेरे सपनों के लिए दी। और काव्या, जिसने मुझे हर कदम पर हिम्मत दी।
(मंच पर तालियाँ बजाने लगते हैं। गंगा मैया अभय की पिता के याद में अपनी लहरो के द्वाराभावुक संगीत निकलती है।)
(अभय को दिल्ली के एक प्रतिष्ठित कॉलेज में स्कॉलरशिप के आधार पर एडमिशन मिल जाता है। अभय पुराने कपड़ों में खड़ा है। कुछ छात्र उसका मजाक उड़ा रहे हैं।)
छात्र : (हँसते हुए) ये गंगा घाट का मोची दिल्ली कैसे आ गया?
अभय: (शांत स्वर में) मैं यहाँ अपने पिताजी के सपनों को सच करने आया हूँ।
तभी काव्या कॉलेज गेट से प्रवेश करती है। वह अभय को एक पत्र देती है।)
काव्या: (उदास स्वर में) अभय, मेरे पिता मेरी शादी कहीं और तय कर रहे हैं। लेकिन मैं तुमसे प्यार करती हूँ।
अभय: (रोते हुए) काव्या, मैं तुम्हें खोना नए चाहता, लेकिन मेरे पास अभी कुछ नहीं। मैं तुम्हें वो सुख नहीं दे सकता जो तुम डिज़र्व करती हो।
काव्या: (रोते हुए) मुझे सुख नहीं, तुम चाहिए। वादा करो, तुम हार नहीं मानोगे।
अभय: (दृढ़ स्वर में) मैं वादा करता हूँ, काव्या। मैं IAS बनूंगा, और तुम्हें अपने साथ गंगा घाट लाऊंगा।
(दोनों एक-दूसरे को गले इस तरह लागते जैसे दो जिस्म एक जान है)
अभय IAS की तैयारी में लग जाता है
गंगा घाट पर धीरे-धीरे हरि नारायण जूते बना रहा है। हरिनारायण अब और कमजोर और बीमार हो जाता जाता है। तभी वहां सूट बहुत पहने एक आता है। और बोलता है बाबा, हरिनारायण जैसे आवाज सुनाता है तुरंत ऊपर देता है।
अभय: (खुशी और दुख के मिश्रित स्वर में) पिताजी, मैं IAS बन गया हूँ!
हरिनारायण: (कमजोर मुस्कान के साथ) मेरा बेटा... मैं जानता था... तू मेरे सपनों को सच करेगा।
मीरा: (रोते हुए) गंगा मैया ने मेरी सुन ली।
तभी काव्या झोपड़ी मे प्रवेश करती है। वह साड़ी में है, उसकी आंखों में नमी है।)
काव्या: (रोते हुए) अभय, मैंने अपने पिता को मना लिया। मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकती।
अभय: (आँखों में आंसू लिए) काव्या, तुमने मेरा इंतज़ार किया... मैं तुम्हें कभी नहीं खोऊंगा।
(हरिनारायण काव्या और अभय का हाथ जोड़ता है।)
*हरिनारायण: (कमजोर स्वर में) बेटा, अब मैं चैन से जा सकता हूँ। मेरे सपने पूरे हो गए।
हरिनारायण की सांस धीमी होती है। वह आँखें बंद कर लेता है। अभय और काव्या रोते हुए उसे गले लगाते हैं। आज गंगा मैया के लहरें हरि नारायण के लिए रो रही है।)
(गंगा घाट के पास। अभय और काव्या एक नए घर के बाहर खड़े हैं। पास में "गुरुजी शिक्षा केंद्र" का बोर्ड लगा है। बच्चे पढ़ने की आवाज़ें आ रहीं है।)
अभय: (एक समारोह में दर्शकों की ओर देखकर, भावुक स्वर में) मेरे पिताजी ने मुझे सिखाया कि मेहनत का दीपक अंधेरे को मिटा देता है। काव्या ने मुझे सिखाया कि प्यार हर जख्म को भर देता है। और गुरुजी ने मुझे रास्ता दिखाया। ये "गुरुजी शिक्षा केंद्र" हर उस बच्चे के लिए है, जो सपने देखता है।
काव्या: (हाथ पकड़कर) और मैं वादा करती हूँ, अभय, कि मैं हर कदम पर तुम्हारा साथ दूँगी।
(गंगा की लहरों की आवाज़ और भावुक संगीत
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