कुछ कर्म श्रेष्ठतर किये बिना
कोई कुलवंत नहीं होता ।
जब नयन चार हो जाते हैं,
जब दो दिल मंजिल पाते हैं ।
दोनों अनुराग भरे मिलकर
तब परिणय पर्व मनाते हैं ।।
रमणी का हृदय लुभाये बिन
कोई प्रिय कंत नहीं होता ।
कुछ कर्म श्रेष्ठतर किये बिना
कोई कुलवंत नहीं होता ।।
जो काम दूसरों के आते,
परमारथ में मर मिट जाते ।
सर्वस्व लुटाकर परहित में
अमरत्व धरित्री पर पाते ।।
पीड़ित की पीड़ा हरे बिना
कोई हनुमन्त नहीं होता ।
कुछ काम श्रेष्ठतर किये बिना
कोई कुलवंत नहीं होता ।।
है प्रकृति नटी मां, बेटी भी,
नर्तन करती है लेटी भी ।
अगणित कवियों के द्वारा यह
अब तक है गयी समेटी भी ।।
पर केवल कविता करने से
कोई कवि पन्त नहीं होता ।
कुछ काम श्रेष्ठतर किये बिना
कोई कुलवंत नहीं होता ।।
हो सप्तपदी का आयोजन
अथवा निकाह में अनुमोदन ।
हो गिरजाघर में पाणिग्रहण
या न्यायालय में पंजीयन ।।
पर शकुंतला को छले बिना
कोई दुष्यंत नहीं होता ।
कुछ काम श्रेष्ठतर किये बिना
कोई कुलवंत नहीं होता ।।
©® महेश चन्द्र त्रिपाठी
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