क्या लेकर आए तुम जग में
क्या लेकर तुम जाओगे ?
जीवन जीना चूक गए तुम
अगर न तुम मुसकाओगे ।।
जो कुछ पाया, पाया जग से
जग में ही रह जाएगा ।
नेक काम जो यहाॅं करेगा
जग उसका यश गाएगा ।।
अन्तस से निर्देश प्राप्त कर
अपना काम किए जाओ ।
बाधा को बाधा मत मानो
मुसीबतों में मुसकाओ ।।
लोभ- मोह से बचो हमेशा
सत्पथ पर ही सदा चलो ।
दायित्वों का करो निर्वहन
फौरन दुविधा से निकलो ।।
है मुस्कान मनुज की शोभा
चिर आनन्द प्रदात्री है ।
मुख की छवि द्विगुणित कर देती
निश्शुल्का विधात्री है ।।
जो इसको धारण करता वह
मीत बनाता चलता है ।
सारा जग उसके गुण गाता
वह मरकर कब मरता है ??
मुस्कान मनुज की ऐसी निधि
जो नहीं हाट में मिलती ।
छीनी न किसी से जा सकती
आनन पर अनुक्षण खिलती ।।
यह भुवनमोहिनी कहलाती
तो क्यों न आप मुसकाएं ?
कर नारायण को वशीभूत
नरता को वश में पाएं ।।
@ महेश चन्द्र त्रिपाठी
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