महानगर में एनेक विशाल कॉम्पलेकस होते है। हाई राइज एनेक टावर में श्रीमंत लोग रहते हैं। ज्यादातर तो नौकरी करते कपल। युवा दंपति का छोटा बच्चा होता है।उन्हे सम्भालने के लिए केर टेकर बाई होती है। ज्यादात्तर सबेरे 8 से रात के 8 बजे तक उनकी ड्यूटी का समय होता है। 12 घंटे ! करीब करीब नौ बजे नौकरी के लिए दंपति घर से निकल जाते है और 7 बजे तक घर आ जाते है। और केर टेकर की ड्यूटी शरू हो जाती है । केर टेकर कौन होती है? ह वह है ।
जो अपनी खुद की केर कर नहीं पाती क्योंकि दुसरो की केर करने में व्यस्त होती है। वह वो होती है, जो अपने बच्चे को अपनी बूढ़ी सास को सौंप कर सबेरे घर से निकल जाती है रात को वापिस घर आती तब भूखा बच्चा मां का इंतज़ार करके थक गया होता है। हा वोह वह होती है, जो बंगले में / विला में दूसरे के बच्चों को दिन भर संभाल के घर वापस आती है वो जहां केर टेकर है उनके बच्चे को दूध के साथ बॉर्नविटा घोलकर रोज पिलाती है। पीने के लिए मनाना पड़ता है। नाश्ता ,भोजन खिलाती है और सहला के सुलाती है लेकिन अपने संतान को प्यार देने का समय नहीं निकाल पाती। वो वह होती है, जो उनके अपने घर मेहमान होते है पर उन्हे छोड़कर कर जहां काम करती है उनके मेहमान को संभालती है। अपने बीमार बच्चे को घर छोड़कर दूसरे के बच्चे को संभालने के लिये जाना होता है। त्योहार उनके लिए नही होते। आराम उनके लिए नही होता। उनके भी छोटे छोटे स्वपन होते है पर वह भी पाना, जीना उनके नसीब नहीं होता। वो वह है, जिनके खुद के खाने का, सोने का समय नियत नहीं होता। थकी हुई घर वापस आती है और खुद के और घर के सब सदस्य के लिए खाना बनाती है। सबको खिलाने के बाद खुद भोजन लेती है। सब से पहले उठती है और सब के सोनें के बाद सोती है। वो वह होती है, खुद बीमार होती है पर आराम छोड़कर, अपनी पीड़ा के प्रति बेध्यान होकर काम पर जाती हैं अन्यथा पैसे कट जायेगा।
श्रीमंत के आवास की चकाचौंध दुनिया के बीच 12 घंटे रहती वह केर टेकर जब अपने छोटे घर वापस जाती है तब घर की गरीबी का और अपने संतान को कितने अभाव में जीना पड़ता है वह एहसास उसे ज्यादा पीड़ित करता है। एनेक फ्लैट के बीच बाग,स्विमिंग पूल,खेलने के लिए सुविधा होती है। लंच के बाद आसपास की सब केर टेकर बच्चे को लेकर वहा आ जाती है।बच्चे को हम उम्र बच्चा मिलता है खुश है। केर टेकर आपस में मिलती है। थकान भूल जाती है। अपनी अपनी कहानी होती है। दुख दुख को दूर तो नहीं करता लेकिन व्यकत करने में सुकून मिलता है। हा सब की पास मोबाइल भी नहीं होता।
जिसकी पास होता है वह जिसकी पास नहीं होता उसे देती है। घर पर मां से वंचित बच्चा होता है उससे बात कर लेती है। श्रीमंत के बच्चे को बहोत समझाने के बाद भी खाना खाने के लिये समझाना पड़ता है। और केर टेकर के बच्चे की कभी फरियाद होती है..
रोटी कम थी या सब्जी कम थी। मां कह नही पाती आज आटा कम था मेरे लिए तो रोटी ही नहीं लायी या सब्जी नहीं लायी। केर टेकर वह है जो, कभी कभी मालिक के बच्चें को सुलाने की कोशिश करती होती है पर सोता नहीं और उसे नींद आने लगती है आंखे बंध हो जाती है।कभी मालिकन जो अपनी ऑफिस में होती है CCTV से देख लेती है । उनका फोन आता है “तुम्हे सोने के लिए पैसे देते है?” पीड़ा की पराकाष्ठा तो तब आती है जब जो बच्चे के साथ रोज 12 घंटा रही हो,सहलाया हो,बीमार हो तो परवरिश की हो उससे प्यार हो जाता है।
एक दिन उसे नौकरी से रुखसद किया जाता है। बच्चे की याद आती है। कभी मिलने का मन होता है। मिलने के परमिशन मिले न भी मिले। फिर दूसरी मालकिन पर कहानी नहीं बदलती। केर टेकर यही है.. उनकी तकदीर यही होती है.. बस मालकिन बदलती रहती है । अलगअलग मिजाज की मालकिन। आने में कभी एक घंटा देरी होती है तो भी पैसा काट लेती मालकिन। चेहरे बदलते रहते है। बच्चे बदलते रहते है। एड्रेस बदलते रहते है। विला का वैभव बदलता रहता सब बदलता रहता है पर पर , केर टेकर का अभाव, व्यथा, अवहेलना, गरीबी स्थायी होती है।
पीछा नहीं छोड़ती, वफादार नौकर की तरह। कुछ नही बदलता। समृद्धि और अभाव के बीच बितती जिंदगी की बस यही कहानी होती है। और खुद बूढ़ी हो जाती है तब कोई केर करनेवाला आसपास नहीं होता। केर टेकर की कौन करे केर?" अभाव का भाव जीना होता है अवहेलना से गुजरना होता है जिंदगी नाम तो है उनकी जिंदगी का पर जिंदगी जैसा कहां होता है। "इति: जिंदगी तूं इम्तहान ले कोई फरियाद नहीं पर जिंदगीभर इम्तहानलेती रहे वह क्या अच्छा है? न्याय हैं?”
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