कल की चिन्ता कभी करें मत, चिन्ता करें न काल की।
आओ मिलकर काट खोज लें, क्रूर नियति की चाल की।।
सरकारें बनती- गिरती हैं, प्रजातंत्र में वोट से।
सदाचार से दूर भागती, हैं नीयत में खोट से।।
भ्रष्ट राजनेताओं की हम, कर दें क्रिया कपाल की।
आओ मिलकर काट खोज लें, क्रूर नियति की चाल की।।
अधिकारी जो भ्रष्ट हो गये, बात करें उत्कोच की।
अपना उल्लू सीधा करते, निन्दनीय उस सोच की।।
कुचल-मसल कर छुट्टी कर दें, डसने वाले व्याल की।
आओ मिलकर काट खोज लें, क्रूर नियति की चाल की।।
व्यापारी जो रकम चीरते, सैनिक जो गद्दार हैं।
न्याय बेचते न्यायालय में, न्यायी जो मक्कार हैं।।
हम सब चिन्दी-चिन्दी कर दें, इनके फैले जाल की।
आओ मिलकर काट खोज लें, क्रूर नियति की चाल की।।
फूल-फल रहा दैत्य प्रदूषण, अब इसका संहार हो।
वृक्षारोपण खूब करें हम, वनीकरण से प्यार हो।।
करें सुरक्षा - संरक्षा हम, हर तरुवर की डाल की।
आओ मिलकर काट खोज लें, क्रूर नियति की चाल की।।
"बड़े भाग मानुष तन पावा", यह जीवन अनमोल है।
साॅंसों से सहलाया जाता, हर क्षण लोल कपोल है।।
अपनी अजर-अमर आत्मा में, ताकत भरी कमाल की।
आओ मिलकर काट खोज लें, क्रूर नियति की चाल की।।
@ महेश चन्द्र त्रिपाठी
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