बढ़े चलें हिम्मत मत हारें ।
अपनी किस्मत स्वयं संवारें ।।
करें वही जो मन में ठानें ।
हारें तो भी हार न मानें ।।
लोग मारते रावण को हम
भीतर के रावण को मारें ।
बढ़े चलें हिम्मत मत हारें….
बुनें नहीं, सपनों को तानें ।
अपनी ताकत को पहचानें ।।
लड़ें न्याय के लिए हमेशा
पड़े जरूरत जीवन वारें ।
बढ़े चलें हिम्मत मत हारें….
नापें अम्बर की ऊंचाई ।
अम्बुधि की असीम गहराई ।।
शत्रु सामने आ जाए तो
निर्भय रह उसको ललकारें ।
बढ़े चलें हिम्मत मत हारें.….
पांव पुहुमि पर रहें टिकाए ।
आंख लक्ष्य पर रहें गड़ाए ।।
केवल अपने लिए न सोचें
अपने साथ अनगिनत तारें ।
बढ़े चलें हिम्मत मत हारें…..
जो बोएंगे, वह काटेंगे ।
रत्नों से भू को पाटेंगे ।।
बनें स्वयं अपने निर्माता
मत औरों की ओर निहारें ।
बढ़े चलें हिम्मत मत हारें…..
जो कुछ मिले प्रेम से पाएं ।
गीत प्रार्थना के हम गाएं ।।
जगदाधार सदैव साथ है
प्रेमपूर्वक अगर पुकारें ।
बढ़े चलें हिम्मत मत हारें……
@ महेश चन्द्र त्रिपाठी
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