सांपों को संरक्षण दें हम

पारिस्थितिकी

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12 Mar '25
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कान न होते किसी सांप के 

इसे विकर्ण कहा जाता ।

यह आंखों से सुन सकता है 

चक्षुश्रवा यह कहलाता ।।

 

काम नाक का लेता है यह 

अपनी जिह्वा के द्वारा ।

चूहा इसका प्रिय भोजन है 

यह चूहों का हत्यारा ।।

 

सांपों की प्रजातियां अगणित 

सभी न होतीं जहरीली ।

बार अनेक बदलता केंचुल 

जब हो जाती है ढीली ।।

 

घोड़ापछाड़, कोबरा और 

पीवण जहरीले ज्यादा ।

बरजतिया, करैंत में भी विष 

यह नर हो अथवा मादा ।।

 

पनिहा और दोमुंहे सांपों 

में विष रंच नहीं होता ।

दुनिया का हर सांप हमेशा 

आंख खोलकर ही सोता ।।

 

पलक नहीं होती आंखों पर 

झिल्ली एक चढ़ी रहती ।

जोकि पारदर्शक होती है 

यह सारी दुनिया कहती ।।

 

जो पानी में पलते हैं वे 

सर्प विषरहित कहलाते ।

जो पलते जल के अभाव में 

अधिक विषैले हो जाते ।।

 

सर्प दुग्ध का पान न करते 

ये मनुष्य से भय खाते ।

इनके विष के ही इलाज से 

इनके काटे बच पाते ।।

 

मूल्यवान होता इनका विष 

बाजारों में बिकता है ।

इसीलिए ये पकड़े जाते 

इनकी अब न अधिकता है ।।

 

नेवला इनका परम शत्रु है 

उससे जीत न ये पाते ।

और सपेरे इन्हें पकड़कर 

इनसे करतब करवाते ।।

 

पर्यावरण सन्तुलित रखते 

इन्हें न व्यर्थ सताएं हम ।

सांपों को संरक्षण देकर 

जग में पुण्य कमाएं हम ।।

 

@ महेश चन्द्र त्रिपाठी 

कैटेगरी:पद्य



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इसके लेखक हैं Mahesh Chandra Tripathi

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