कान न होते किसी सांप के
इसे विकर्ण कहा जाता ।
यह आंखों से सुन सकता है
चक्षुश्रवा यह कहलाता ।।
काम नाक का लेता है यह
अपनी जिह्वा के द्वारा ।
चूहा इसका प्रिय भोजन है
यह चूहों का हत्यारा ।।
सांपों की प्रजातियां अगणित
सभी न होतीं जहरीली ।
बार अनेक बदलता केंचुल
जब हो जाती है ढीली ।।
घोड़ापछाड़, कोबरा और
पीवण जहरीले ज्यादा ।
बरजतिया, करैंत में भी विष
यह नर हो अथवा मादा ।।
पनिहा और दोमुंहे सांपों
में विष रंच नहीं होता ।
दुनिया का हर सांप हमेशा
आंख खोलकर ही सोता ।।
पलक नहीं होती आंखों पर
झिल्ली एक चढ़ी रहती ।
जोकि पारदर्शक होती है
यह सारी दुनिया कहती ।।
जो पानी में पलते हैं वे
सर्प विषरहित कहलाते ।
जो पलते जल के अभाव में
अधिक विषैले हो जाते ।।
सर्प दुग्ध का पान न करते
ये मनुष्य से भय खाते ।
इनके विष के ही इलाज से
इनके काटे बच पाते ।।
मूल्यवान होता इनका विष
बाजारों में बिकता है ।
इसीलिए ये पकड़े जाते
इनकी अब न अधिकता है ।।
नेवला इनका परम शत्रु है
उससे जीत न ये पाते ।
और सपेरे इन्हें पकड़कर
इनसे करतब करवाते ।।
पर्यावरण सन्तुलित रखते
इन्हें न व्यर्थ सताएं हम ।
सांपों को संरक्षण देकर
जग में पुण्य कमाएं हम ।।
@ महेश चन्द्र त्रिपाठी
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