कामधेनु है भजन

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09 Mar '25
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विषयोन्मुख इन्द्रियां दशानन बन जाती हैं ।

कंचन काया की लंका में सुख पाती हैं ।।

विषयों से हो विमुख आत्म-उन्मुख जब होतीं ।

कर देती हैं मना, दशानन-भार न ढोतीं ।।

 

दशरथ लेता जन्म तभी काया के अन्दर ।

लंका, अवधपुरी बन जाती, लेती मन हर ।।

कालान्तर में राम जन्म का अवसर आता ।

दृश्य रामलीला का साधक के मन भाता ।।

 

सब कुछ होता, मनमन्दिर में घटती घटना ।

साधक को माया से पड़ता किन्तु निपटना ।।

मायापति की शरण गहें, निपटें माया से ।

प्रायः लोग छले जाते  कंचन काया से ।।

 

छल से बचने हेतु ईश की शरण गहें हम ।

हरि का भजन करें निशिवासर जहां रहें हम ।।

कामधेनु है भजन, शांति-सुख-पय का दाता ।

धन्य धन्य वह मनुज, भजन से जिसका नाता ।।

 

भजनोन्मुख को कभी इन्द्रियां नहीं सतातीं ।

वे भक्तों को सरल मुक्ति की राह सुझातीं ।।

आओ बनकर भक्त, मुक्ति का पथ अपनाएं ।

त्याग जगत का भंगुर वैभव जश्न मनाएं ।।

 

©® महेश चन्द्र त्रिपाठी

कैटेगरी:कविता



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इसके लेखक हैं Mahesh Chandra Tripathi

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