कवियों की कैसे हो होली ?

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11 Mar '25
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कैसे होली हो कवियों की,

कवियों की कैसे हो होली ?

 

मां के मस्तक का उड़ा रंग

घायल है उसका अंग अंग

हो मणिपुर केरल याकि बंग

सत्ता ने मधुशाला खोली ।

कवियों की कैसे हो होली ?

 

नेता दिल्ली मे ऐश करें

दुख दर्द देश के वे न हरें

सैनिक सीमा पर लड़ें मरें

सिर उड़ जाएं खाकर गोली ।

कवियों की कैसे हो होली ?

 

सुरसा-सी बढ़ती मंहगाई

नित नई मुसीबत है लाई

शासन ने पीड़ा पहुंचाई

लाशों की लगा लगा बोली ।

कवियों की कैसे हो होली ?

 

सुन सुन होती है हैरानी

रो रो जीता हिन्दुस्तानी

चेहरे से उतर गया पानी

पानी मे भांग गई घोली ।

कवियों की कैसे हो होली ?

 

स्वार्थी हो गया मानव-मन

बढ़ता जाता है काला धन

पग पग पर अड़चन ही अड़चन

दागी दामन, चीकट चोली ।

कवियों की कैसे हो होली ?

 

अनुदिन फैशन की पौ बारह

हो गई लाज नौ दो ग्यारह

आदर्श समस्त गए हैं ढह

हुई अनावृत हंसी-ठिठोली ।

कवियों की कैसे हो होली ?

 

हो रहा जमा मानस मे मल

हो पाती नहीं समस्या हल

चाहे घृत हो अथवा डीजल

रोके न रुक रही घटतोली ।

कवियों की कैसे हो होली ?

 

बढ़ता जाता आतंकवाद

नारी की काया पर विवाद

कृषकों को मिलते बीज-खाद

रेहन रख इज्जत की झोली ।

कवियों की कैसे हो होली ?

 

©® महेश चन्द्र त्रिपाठी

कैटेगरी:कविता



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इसके लेखक हैं Mahesh Chandra Tripathi

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