आग लगाकर दूर जमालो

सामाजिक परिदृश्य

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15 Nov '24
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सुंदर सुखद घड़ी का स्वागत 

बही बयार सरर सर-सर-सर ।

            आग लगाकर दूर जमालो 

            खड़ी ताकती है मुसकाकर ।।

 

धू-धू जल उठे मकान सभी 

पर अभिलाषा अवशेष अभी 

क्रन्दन करते आबालवृद्ध 

चीखते दीखते नारी-नर ।

         आग लगाकर दूर जमालो 

         खड़ी ताकती है मुसकाकर।।

 

सुन त्राहिमाम का तीक्ष्ण शोर 

हैं आर्द्र सभी के नयन कोर

भूखे बच्चे बिललाते हैं 

बूढ़े रोते आहें भर-भर ।

            आग लगाकर दूर जमालो 

            खड़ी ताकती है मुसकाकर।।

 

आ गई पुलिस फिर शुरू जांच 

रोए जो झुलसे, सही आंच 

बेखबर जमालो बनी रही 

जब अखबारों में छपी खबर ।

               आग लगाकर दूर जमालो 

               खड़ी ताकती है मुसकाकर।।

 

जमालो जब करवाती द्वन्द 

तभी मिलता उसको आनन्द 

षड्यंत्र अनित्य सृजित करती 

सुख अर्जित करती है दर-दर ।

               आग लगाकर दूर जमालो 

               खड़ी ताकती है मुसकाकर।।

 

बात की मुंह में लम्पकडोर 

गवाही देती सबकी ओर 

मजे से चाय-नाश्ता नित्य 

किया करती है वह घर-घर ।

              आग लगाकर दूर जमालो 

              खड़ी ताकती है मुसकाकर ।।

 

@ महेश चन्द्र त्रिपाठी 

 

 

कैटेगरी:कविता



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इसके लेखक हैं Mahesh Chandra Tripathi

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