हर चिन्तन का सार

अनुचिन्तन के निमित्त

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31 Jan '25
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हम मालिक हैं अपने मन के

नहीं किसी के हम प्रतिकूल ।

किसी निरर्थक बात को कभी

देते  नहीं  स्वप्न में  तूल ।।

 

जीते हैं हम  वर्तमान में

रह  देहाभिमान  से  दूर ।

हर प्रतिकूल परिस्थिति का हम

करें सामना बनकर शूर ।।

 

जो कुछ हम देते समाज को

वही लौटकर होता प्राप्त ।

परमपिता की सत्ता  सारे

भूमण्डल में है परिव्याप्त ।।

 

आओ बनें स्वावलम्बी हम

लें हम अपने को पहचान ।

परमात्मा से बड़ा न कोई

फैलाएं जग में यह ज्ञान ।।

 

निर्भयता लाएं अपने में

पाएं जीवन का आनन्द ।

परमात्मा की याद न भूले ,

उन्नति की गति रहे अमन्द ।।

 

ईश भजन में पारंगत बन

पाएं भवबाधा से त्राण ।

अगम अपार ज्ञान की महिमा

गाएं, करें जगत-कल्याण ।।

 

हर चिन्तन का सार यही है

और यही है सच्चा ज्ञान ।

हममें शक्ति अकूत समायी ,

परम पिता की हम सन्तान ।।

 

@ महेश चन्द्र त्रिपाठी 

कैटेगरी:कविता



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इसके लेखक हैं Mahesh Chandra Tripathi

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