ऐसे भाव भर दिए तुमने
हर पीड़ा मधुमय लगती है।*
सहता हूं ठोकरें अहर्निश
लेकिन आह नहीं भरता हूं।
मैं शूलों को फूल मानकर
राहें नई रचा करता हूं।।
जन्मा है बुद्धत्व हृदय में
हार-जीत अभिनय लगती है।
ऐसे भाव भर दिए तुमने
हर पीड़ा मधुमय लगती है ।।१।।
तुमको पाकर लगा कि जैसे
मेरा सोया भाग्य जगा है।
अब तक वशीभूत रख मन को
मायाविनि ने मुझे ठगा है।।
कृपा तुम्हारी मिलते ही अब
मुझ पर नियति सदय लगती है।
ऐसे भाव भर दिए तुमने
हर पीड़ा मधुमय लगती है।।२।।
नई चेतना, नव बल पाकर
भूल गया हर बात पुरानी।
शपथपूर्वक कहता हूं मैं
नहीं करूंगा अब नादानी।
तुम मेरे जीवनाधार हो
तव छवि मंगलमय लगती है।
ऐसे भाव भर दिए तुमने
हर पीड़ा मधुमय लगती है।।३।।
महेश चन्द्र त्रिपाठी