पृथ्वी हम सबकी माता है जो जन्मी है जल से
जल के बिना नहीं यह सकती है यह पृथ्वी कल से
जल ही जीवन है मनुष्य का
इसे न व्यर्थ बहाएं
इसका सदुपयोग कर इससे
भू को हरा बनाएं
जीत न सकते प्रकृति-नटी से छल से अथवा बल से
बारिश का पानी संचित कर
दें पृथ्वी को पोषण
मनमाना जल खींच गर्भ से
करें न इसका शोषण
गर्मी में पेयजल सुलभ होता है पृथ्वी तल से
पर्वत शिखरों पर जो जल
हिमराशि रूप मे रहता
पिघल पिघल कर वही सदा
नदियों-झरनों में बहता
मानव का जीवन पलता है अनुदिन वारि विमल से
छेड़छाड़ खिलवाड़ प्रकृति से
करना उचित नहीं है
अति शोषण के कारण जल का
संकट कहीं कहीं है
प्रेम प्रकृति से करें, जुड़ें संकट के शाश्वत हल से
जल से विद्युत उत्पादन
होता है जीवन चलता
जाने कितनी जरूरतों का
हल अविलम्ब निकलता
देती है सरकार प्रगति को गति नित नीति नवल से
गैस ठोस द्रव तीन रूप में
जल जाता है पाया
तीनों का अपना महत्व है
हमको गया बताया
जल है जीवन-सुधा, बचाएँ इसको आज गरल से
वारि अम्बु जल नीर उदक पय
शब्द शब्द की गरिमा
युग युग से कवि गाते आए
हैं पानी की महिमा
शुद्ध सलिल का सेवन कर हम गरजेंगे बादल से
मोती मानुष और चून से
कवि रहीम ने जोड़ा
पानी रखो बचाए, पानी
है पृथ्वी पर थोड़ा
व्यर्थ न बहने पाए पानी जलकल वाले नल से
दूषित पानी पी लेने से
रोग अनगिनत होते
क्या जाने कितने असमय ही
चिरनिद्रा में सोते
स्वच्छ नीर पीकर बच सकते हैं हर पीर प्रबल से
पानी को ही लेकर होगा
विश्वयुद्ध आगामी
उठने लगी चिन्तकों के मन
आशंका परिणामी
आओ जागें, विश्व जगाएँ, उबरें हम दल-दल से
- महेश चन्द्र त्रिपाठी