मजदूर आज मजबूर है

मजदूर की दारुण दशा

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04 Jun '24
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राष्ट्र निर्माता  मजदूर आज मजबूर है,दर –दर की ठोकरे खाकर घर से दूर है |

न रहने का आशियाना न घर का ठिकाना,सब कुछ सहकर भी परिवार से दूर है|

मजदूर आज भी मजबूर है|

हजारो मिल पेदल चल कर बच्चो को कंधो पर लेकर,घर की राह पर पेदल चलने को मजबूर है |

न खाने को निवाला न जेब मे पैसा फिर भी अपने कृतव्य पथ पर निष्ठावान की तरह अडिग है |

क्योंकि ? राष्ट्र का कर्णधार है फिर भी सरकार के आगे मजबूर है|

बच्चे भूखे वो भी भूखा न दाल न आटा है |

सुनी सड्को पर खून का पसीना बहाकर,सारे सपने चकनाचूर है |

 क्योंकि वह मजबूर है ?

उसकी दारुण व्यथा सुन कर प्रशासन भी मोंन है , कातर निगाहों से देख कर कब आयेगा ठिकाना

यह सोच कर मजबूर है |

जिसने बनाई इमारते, महल लेकिन उनमे रहने के लिए आतुर है | 

 क्योकि वह मजबूर है ?

यदि वह काम करना छोड़ दे तो दुनिया मे विकास अवरुद्ध हो जाएगा |

दो जून की रोटी के लिए तरस रहा उसकी सहनशीलता देखो, क्योंकि वह मजदूर मजबूर है ?

राजनीति की रोटी सेकने वालो के लिए वह एक दाव है ,पेर मे छाले व घाव है |

चिल चिलाती धूप में पैदल चलने के लिए मजबूर है , न खाना हे न पानी न छाँव है |

 

भगवान की अमूल्य धरोहर मजदूर आज भी मजबूर है |

(रघुवीर सिंह पंवार )

Category:Relationships



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Written by Raghuvir Singh Panwar

लेखक सम्पादत साप्ताहिक समाचार थीम