महिला/नारी सशक्तिकरण...
जब भी नारी सशक्तिकरण शब्द सुनती हूं तो मेरे जहन में एक प्रश्न खड़ा हो जाता है,स्वयं भगवान को जन्म देने वाली नारी को नारी सशक्तिकरण की आवश्यकता क्यों पड़ी??
वो आदिशक्ति जिसने स्वयं शिव को संसार बसाने को प्रेरित किया जिसने नारी के हर रूप धारण कर संसार को चलायमान किया वो देवी अबला क्यों कहलाने लगी??? जबाब एक ही है पुरुष प्रधान समाज ने नारी के सभी अधिकारों व गुणों पर प्रतिबंध लगाकर उसे घर में कैद कर लिया नारी को घर की महारानी की बेड़ियों से झकड लिया गया इस पर अति तो तब हो गई जब अलग अलग शासन आए उन्होंने अपने देश, काल की जंजीरे नारियों पर बांध दी।
हमारे समाज की विडंबना है कि जिन कन्याओं को हम पूजते है..उनकी अस्मिता को लुटा जाता है जिस काली माँ से संसार डरता है ,उसी काले रंग की बेटी को ना जाने कितने ताने सुनने पड़ते है । कितनी ही लाडो दहेज के भेट चढ़ गई,प्रेम में छली गई
अग्नि परीक्षा ली गई
चौसर में हारी गई..
जन्म से पहले मारी गई..
तब जाकर समय समय पर नारी सशक्तिकरण की आवाज उठने लगीं।
सशक्तिकरण की आवश्यकता इसलिए जरूरी है,
क्योंकि संसार के विभिन्न समाज में स्त्रियों की आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक, पारिवारिक, स्वास्थ्य सम्बन्धी, व्यवसाय, आदि गतिविधियों में पर्याप्त योगदान से एक लंबे समय तक वंचित व शोषित रखा गया। स्त्रियों को केवल घर के कार्य करने तक ही सीमित कर दिया गया। समाज पुरुष प्रधानता की ओर बढ़ता गया। महिलाएं ज्ञान विज्ञान व कला आदि के प्रत्येक क्षेत्र में पिछड़ती चली गई। बाल विवाह प्रारम्भ हो गया। बालिकाओं को स्कूल व कॉलेज जाने से रोका गया। नारियों को उन सभी प्रकार शिक्षा प्रणाली से वंचित किया गया जिससे वे पुरुषों के बराबर स्थान प्राप्त कर सकती थी।
दूसरे शब्दों कहे तो नारी सशक्तिकरण का अर्थ है नारी को आर्थिक, चिकित्सा, शिक्षा, रोजगार, खेल कूद, मानसिक, शारीरिक, ज्ञान, सामाजिक, तकनीकी, यान्त्रिकी, राजनीति, अंतरराष्ट्रीय आदि सभी प्रकार के क्रिया कलापो में स्वतंत्रता पूर्वक योगदान होना व देश समाज में महिला पुरुष बराबरी होना।
अनेकों सरकारी योजनाओं ने नारी को सशक्त भी बना दिया,सभी आर्थिक क्षेत्रों में नारी ने अपना परचम भी पहरा दिया। लेकिन आज भी ये यक्ष प्रश्न खड़ा है,क्या नारी सशक्तिकरण हुआ है??? सारे पद देकर नारी के दैवीय गुणों को
भुला दिया गया है । जिस देश में नवरात्रि में कन्याओं को पूजते है उन्ही नन्ही कलियों को खिलने से पहले तोड़ दिया जाता है।देवी स्वरूपा नारी के टुकड़े टुकड़े कर दिए जाते है,नारी सशक्तिकरण सिर झुकाए खड़ा रहता है। अगर नारी पर अत्याचारों की बात करने जाए तो पन्ने कम पड़ जाए।
अब प्रश्न ये है कि नारी सशक्तिकरण को नारी सम्मान में कैसे बदला जाए?? किसी भी रूप में महिला हो उसको सम्मान कैसे दे? जबाब एक ही है घर में माँ, बहन,बेटी,पत्नी को सम्मान दे ,बच्चा ये देखेगा तो वो बाहर भी नारी का सम्मान करेगा। अगर कोई नारी के किसी भी रूप के साथ दुर्व्यवहार करता है तो उसे सरेआम कड़ी सजा दी जाए ताकि दूसरा कोई इस तरह की हिमाकत ना करें। महिलाएं खुद भी अपने अधिकारों का गलत स्तेमाल ना करे ताकि उनकी दैवीय छवि धूमिल ना हो।
निष्कर्ष रूप में यही कहा जा सकता है कि अपने रक्त प्रवाह से संसार को सींचने वाली नारी अपने आप में शक्ति है, बस उसे अपनी शक्ति को याद करना है दैवीय गुणों को लाना है और समाज ,देश को भी नारी का सम्मान करना है बस ये हो गया नारी सशक्तिकरण।
नारी के लिए ये पंक्तियां मेरे मन को छू जाती है...
आँचल में हया
हाथों में जिम्मेदारी रखती है।
घर की रखवाली बच्चों की चौकीदारी रखती है।
उसके बिना ना मिले निवाला ना बजे मंदिर की घण्टी।
दुनिया को रोशन करने का हुनर नारी रखती है।
सुनीता नलवाया(मेहता)लेखिका, सरकारी अध्यापिका, सिरोही राजस्थान।