नारी अब नहीं रही अबला
अब वह सबला है, है प्रबला
मां बनकर सृष्टि रचाती है
भार्या बन प्रेम लुटाती है
भगिनी बन भाई के राखी
बांधती, कही जाती सरला
वह अविरल आगे बढ़ सकती
एवरेस्ट शिखर पर चढ़ सकती
चढ़कर सकती है उतर क्योंकि
आती उसको प्रत्येक कला
बुलबुल-सी गाना गा सकती
भारत कोकिला कहा सकती
वह बन सकती मीराबाई
देता परमेश्वर उसे गला
वह राजनीति मे पारंगत
हर दांव-पेंच से चिर अवगत
वह बन रानी चेनम्मा-सी
करती समाज का सतत भला
फिल्मों मे उसका योगदान
वह चिर नूतन, वह चिर महान
जग पाता उससे प्यार सदा
वह मलिन नहीं, वह चिर विमला
-- महेश चन्द्र त्रिपाठी
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