कुछ काम श्रेष्ठतर किये बिना...

गीत

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27 Feb '25
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कुछ कर्म श्रेष्ठतर किये बिना

कोई कुलवंत नहीं होता ।

 

जब नयन चार हो जाते हैं,

जब दो दिल मंजिल पाते हैं ।

दोनों अनुराग भरे मिलकर

तब परिणय पर्व मनाते हैं ।।

रमणी का हृदय लुभाये बिन

कोई प्रिय कंत नहीं होता ।

कुछ कर्म श्रेष्ठतर किये बिना 

कोई कुलवंत नहीं होता ।।

 

जो काम दूसरों के आते,

परमारथ में मर मिट जाते ।

सर्वस्व लुटाकर परहित में

अमरत्व धरित्री पर पाते ।।

पीड़ित की पीड़ा हरे बिना

कोई हनुमन्त नहीं होता ।

कुछ काम श्रेष्ठतर किये बिना 

कोई कुलवंत नहीं होता ।।

 

है प्रकृति नटी मां, बेटी भी,

नर्तन करती है लेटी भी ।

अगणित कवियों के द्वारा यह

अब तक है गयी समेटी भी ।।

पर केवल कविता करने से

कोई कवि पन्त नहीं होता ।

कुछ काम श्रेष्ठतर किये बिना 

कोई कुलवंत नहीं होता ।।

 

हो सप्तपदी का आयोजन

अथवा निकाह में अनुमोदन ।

हो गिरजाघर में पाणिग्रहण

या न्यायालय में पंजीयन ।।

पर शकुंतला को छले बिना

कोई दुष्यंत नहीं होता ।

कुछ काम श्रेष्ठतर किये बिना 

कोई कुलवंत नहीं होता ।।

 

©® महेश चन्द्र त्रिपाठी

Category:Poem



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Written by Mahesh Chandra Tripathi

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