चाय की टपरी पर पसीने में तर बतर
अपनी शर्ट की कॉलर को ठीक कर रहा था
आंखो पर काला चश्मा हाथ में एक कटिंग चाय लिए
खूब ठहाके लगा रहा था वह नौजवान
कुछ लोग थे उसके आस पास शायद उसके दोस्त होंगे
वो लोग सिगरेट का कश लगाते हुए हवा में धुआं उड़ा रहे थे
और आपस में बतिया रहे थे
उनके हाव भाव देख अंदाजा लगाया मैंने
जरूर अपनी ही तरह गप-शप चल रही होगी
फिर उस लडके की तरफ देखा सिगरेट नहीं थी हाथों में
लेकिन उसके माथे पर से आता हुआ पसीना
हाल बयान कर रहा था उसका
ऊपर ऊपर से बहुत हंसे जा रहा था
पर भीतर से बहुत चिंतित था
काम का कितना प्रेशर था उसके दिमाग में
होम लोन की किश्तें, टैक्स सेविंग की चिंता
म्यूचुअल फंड और लाइफ इन्शुरेन्स की पॉलिसी की
कुछ किश्तों का कैलक्यूलेशन चल रहा था शायद
उसकी जिन्दगी सिर्फ दूसरों की ख्वाहिशें और
जरूरतें पूरी करने में निकल रही थी
आज सच में उसे देख कर दिल से आह निकल गयी
अपने चेहरे पर हंसी का मुखौटा लगाए
ना जाने कब से घूम रहा था
बाहर से पहाड़ की तरह सख्त दिखने वाला वो रोबोट
अंदर से मोम की तरह पिघल रहा था
ना जाने उसने अपनी जिन्दगी
अपने आप के लिये कब जी होगी
मैं सोच में पड़ गया उसकी जिंदगी
कुछ अपनी सी लग रही थी
कुछ पूछने की जरूरत नहीं समझा
मैं अपनी आंखो से उसकी हालत
साफ महसूस कर पा रहा था
उसके हालातों को समझने की कोशिश कर रहा था
वो अब सिगरेट के धुएं से बनी दीवारों के बीच घिरा हुआ
हाथ में कटिंग चाय के साथ
उन लोगों के साथ बतिया रहा था
वह फॉर्मल पैंट शर्ट के साथ टाई लटकाये
वो एक चलता फिरता रोबोट ही तो था
जिसकी जिन्दगी उसकी अपनी नहीं थी।
वािशाल में
हम हमेशा पृथ्वी के दो ध्रुवों की तरह रहे एक दूसरे से बिल्कुल विपरीत जो कभी मिल नही सकते पर उनका होना जरूरी है संतुलन के लिए कभी मांगा ही नही एक दूसरे को एक दूसरे से ना ही ईश्वर से अब वो ही जाने उसने क्यों हमें एक दूसरे के इतना समांतर रख दिया जो साथ चल तो सकते हैं पर हाथ थाम कर नहीं