तुम मुझे मान दो, मैं तुमको दूँगा अन्तस की खुशहाली।
तव नयनों में बस जाएगी, भीतर लाली बाहर लाली।।
यदि तुम अपने में आओगे
मैं गाता, तुम भी गाओगे
यदि बदलोगे तुम दिशा, दशा
स्वयमेव बदलती पाओगे
होगा निरभ्र तव मनाकाश, छँट जाएगी बदली काली।
तव नयनों में बस जाएगी, भीतर लाली बाहर लाली।।
दुख की बदली के छँटते ही
कामना सरित् के घटते ही
आत्मा की पावन प्राची में
पावनता की पौ फटते ही
फैलने लगेगी तन-मन में, अरुणोदय की सी उजियाली।
तव नयनों में बस जाएगी, भीतर लाली बाहर लाली।।
लालिमा बढ़ेगी पल-अनुपल
तव जीवन होगा अमल-धवल
मंजिल पर आप खड़े होंगे
थम जाएगी सारी हलचल
महमहा उठेगा उर-उपवन, चहचहा उठेगी हर डाली।
तव नयनों में बस जाएगी, भीतर लाली बाहर लाली।।
होगी प्रति प्रात मुखर होगी
पूजा की चाह प्रखर होगी
आनन्द-वृष्टि की सृष्टि देख
निष्कल्मष डगर-डगर होगी
प्राणों में सौरभ भर अकूत, खिलखिला उठेगा वनमाली।
तव नयनों में बस जाएगी, भीतर लाली बाहर लाली।।
© महेश चन्द्र त्रिपाठी