जब बिन खाये जिया न जाए

गीत

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06 Mar '25
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जब बिन सोये रहा न जाए, नींद लगे तब सुखकारी ।

जब बिन खाये जिया न जाए, सूखी रोटी दुखहारी ।।

 

ज्ञानार्जन में तत्पर हों हम, बनें इन्द्रियों के स्वामी ।

ज्ञान प्राप्त कर भक्त बनें हम, बनें सुपथ के अनुगामी ।।

द्रव्य दूसरे का मिट्टी सम, माॅं सम मानें परनारी ।

जब बिन खाये जिया न जाए, सूखी रोटी दुखहारी ।।

 

नींद सदैव श्वान जैसी हो, रहें सचेष्ट काग जैसे ।

बक इव ध्यानावस्थित हों हम, पसरें विपिन आग जैसे ।।

भोजनभट्ट न बनें कभी हम, करें न व्यंजन से यारी ।

जब बिन खाये जिया न जाए, सूखी रोटी दुखहारी ।।

 

लक्ष्योन्मुख हर कदम बढ़ाएं, निर्भयता मन में लाकर ।

कदम न कम्पित होने पाएं, पगबाधा प्रचण्ड पाकर ।।

हम विदेह बन रहें गेह में, रहें न बनकर व्यभिचारी ।

जब बिन खाये जिया न जाए, सूखी रोटी दुखहारी ।।

 

मूल्य समय का पहचानें हम, बोलें सबसे मृदु वाणी ।

पले परार्थ भाव अन्तस में, कृपा करें माॅं कल्याणी ।।

समझो हुई साधना पूरी, वश में है वसुधा सारी ।

जब बिन खाये जिया न जाए, सूखी रोटी दुखहारी ।।

 

©® महेश चन्द्र त्रिपाठी

Category:Poem



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Written by Mahesh Chandra Tripathi

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