जब रास्ते में हो घर, लेकिन...

ProfileImg
14 May '24
1 min read


image

जब रास्ते में हो घर, लेेकिन मां न हो

तब अधूरा सा लगता है

जब रास्ते में हो घर, लेेकिन मां न हो

तब घर सुना सा लगता है

 

दीवारें काटने को दौड़ती है,

अंधेरा चीरता है मन को

याद मन में ही रह जाती है

जब रास्ते में हो घर, लेेकिन मां न हो

 

रोज उठता हूं, सो जाने को

सो कर भूल जाता हूं उठने को

रोता हूं, खुद चुप हो जाता हूं

पिता अब साथ नहीं,

छोड़ कर अकेले फूलों को

कांटे चुभते है, मखमल के बिस्तरो में 

नींद, उजाले में मर जाती है,

जब रास्ते में हो घर, लेकिन मां न हो

 

मां का आंचल ओढ़ सो जाते थे

खेलते थे, पिटते थे, पर खाना मां के हांथ से खाते थे,

दुःख कोई होता न था,

जब मां घर में होती थी

 

अब सुकून खोजने घर से निकल गए,

बचपन किसी आंचल में छूट गया

मां की आंखे नम हो गई 

जब बेटे का घर छूट गया

याद भुलाने को तस्वीर देख लेता हूं

जब रास्ते में हो घर, लेकिन मां न हो!

Category:Poem



ProfileImg

Written by Kamlesh Pandit

अंशकालिक लेखक पूर्णकालिक कलाकार Theatre 🎭