जब बेटा मुझसे पूछेगा

नाकाम पिता की नाकामी पर बेटे द्वारा उंगली उठाए जाने का डर

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21 May '24
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जब मेरी शादी हुई, तब मैं 25 साल का नौजवान था, तब खून में एक जोश था, कुछ कर के दिखाएंगे पर एक ढंग की नौकरी नहीं कर पा रहा था, छोटा मोटा जो काम मिला तो कर लिया। वरना घर पे खाली बैठा रहा, वह तो मेरी बीवी की हिम्मत थी, कि एक बेरोजगार को अपना जीवन साथी चुना। इस शादी से मैं खुश जरूर था, पर मैं कहीं न कहीं जानता था, कि अब मेरी जिम्मेदारी बढ़ने वाली है। उस जिम्मेदारी को निभाने की कोशिश में वक्त बिताता गया। कभी-कभी या कहें सदा ही नाकामी हाथ लगी। ना जाने क्यूं मैं एक नाकाम और नाकारा इंसान ही रहा हूँ। यह नहीं कि इस दौरान कुछ नहीं किया, किया बहुत, पर मैं कामयाब इंसान नहीं बन सका। लोगों की नजर में मैं कैसा इंसान हूँ, यह तो मैं नहीं जानता, पर अब एक बेटा है जो अब 12 साल का हो गया है। अब वह उस उम्र में पहुंच गया है, जहां से अब वह सब कुछ देख और समझ सकता है। आने वाले कुछ सालों में जब बेटा मुझसे पूछेगा। और उसके पूछने से मुझे डर तो नहीं लगता है। उसका जवाब भी मैं दे ही सकता हूँ, अगर कोई और पूछे तो। पर अगर मेरे बेटे ने वह सवाल मुझसे पूछ लिया तो, तब मेरा क्या जवाब होना चाहिए बस यही सोचते रहता हूँ। वह डर आजकल मेरे पे हावी होने लगा है। क्योंकि आप उस का सामना कैसे करोगे जिसकी उम्मीद आप हो, पर आप उसकी उम्मीदों पे खड़े नहीं उतर पा रहे। मैं कहीं न कहीं जानता हूँ, कि मेरे बेटे के मन में तब क्या चल रहा होगा। जब वह अपने दोस्तों के पिता को देख मेरी उन से तुलना कर रहा होगा, जैसे कि मेरे दोस्तों के पिता तो कुछ न कुछ कर रहे हैं, जिस से वह एक अच्छी कमाई कर पा रहे हैं। पर मेरा पिता तो बस घर पे बैठ के नजाने क्या लिखते रहते हैं, जिस से कुछ कमाई तो नहीं होती है, बस लिखते रहते हैं, यह भी कोई काम है, ऐसा कैसा काम है, जिस में कुछ कमाया नहीं जाता। और क्यों नहीं कि बाहर निकल के कोई और काम खोजे और करे, जिस से कुछ कमाई हो चार पैसे घर पे आए, और ये पूछना आपने मेरे लिए आज तक किया क्या है।हा यह सवाल मुझे कचोटाता है, कि मैं इस सवाल का सामना कर भी पाऊंगा कि नहीं। 

कभी कभी अपने मन को तसल्ली देते हुए सोचता हूँ कि बेटे ने देखा है, अपने माँ-बाप को अभावों में जीते हुए, पर उसकी जरूरतों को पूरा करते हुए। कैसे जब उसने मांगा तो साइकिल खरीद के दिया था। और उस दिन बेटे से ज्यादा मैं खुश था। कैसे उसके हर जन्मदिन में उसके दोस्तों को पार्टी देने के लिए किसी देनदार को एक महीना और टाल दिया गया। पता नहीं कि वह यह सब समझेगा कि नहीं। वैसे भी आजकल की इस फटाफट की दुनिया में मेरा भी बेटा हर चीज़ को फटाफट पाना चाहेगा, तो मैं क्या वह जवाब फटाफट से उसे दे भी पाऊंगा। हर पिता अपने बेटे की नजर में खुद को एक हीरो साबित करना चाहता है, और हर बेटा अपने पिता को एक हीरो मानता है। पर मेने कभी भी कोई ऐसा काम नहीं किया कि अपने बेटे की नजर में एक हीरो बन सकूं। बेशक अभी समय है, इन सवालों में, पर जल्द ही मुझे इनसे रूबरू होना पडे़गा, पर मैं उम्मीद कर रहा हूँ, कि तब तक इस लेखन के कार्य में कुछ ऐसा कर ही लूंगा कि इन सवालों का सही जवाब मैं अपने बेटे को दे सकूं, और उसकी नजरों में मैं एक हीरो बन सकूं।

Category:Personal Experience



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Written by vinod thapa

I am a resident of Delhi, the heart of India, and a writer entertaining readers by writing about his experiences. You may know me as a writer, poet, and author, but if you don't know me, it doesn't matter.