आज बात करते हैं लोकतंत्र के महापर्व द्वारा जनता के प्रतिनिधि को चुनने की जहां मतदाता अपने वोट की चोट से अपना प्रतिनधि चुनता है ।
लेकिन इस ओर कभी बड़ी गम्भीरता से ध्यान आज तक नहीं दिया गया कि जिस मतदाता सूची के सहारे जिस वोटर को एक शक्ति मिली हुई है वही शक्ति उस वोटर का नाम मतदाता सूची से हटाकर उसे शक्तिहीन भी कर दिया जाता है ।
विधानसभा एवं निकाय चुनाव में आगरा में हजारों नाम वोटिंग लिस्ट से उड़ा दिए गए जबकि उन मतदाताओं ने पूर्व में हुए चुनाव में वोट भी डाला था और उनके पास फोटो पहचान पत्र और आधार कार्ड भी थे ।
एक तरफ बात की जाती है चुनाव में वोटिंग प्रतिशत बढ़ाने की क्या इस प्रकार की आधी अधूरी तैयारी से वोटिंग प्रतिशत बढ़ाने की कोई कल्पना कर सकता है ।
अब ये कैसी तैयारी है चुनाव आयोग की और स्थानीय प्रशासन की । ये तो एक तरह से लोकतंत्र का मजाक हुआ ।
क्या इन्ही आधी अधूरी मतदाता सूचियों से चुनाव कराकर लोकतंत्र की स्थापना होगी ?
शायद इन्हीं मतदाता सूचियों की विसंगति के चलते सही प्रतिनधि का चुनाव जनता के बीच नहीं हो पाता है ।
सब जानते है चुनाव कराने की तैयारियों के बीच कितना रुपया खर्च होता है लेकिन क्या फायदा ऐसे चुनाव कराने का जहाँ मतदाता को इसलिए वापस लौटना पड़े कि उसका नाम तो मतदाता सूची में है ही नहीं और एक खीझ भरी झल्लाहट और अपने आधार कार्ड को जेब मे रख मतदाता फिर वोट न डालने की कसम खा पोलिंग बूथ से अपने घर लौट आता है । एक बहुत बड़ा कारण मतदाता प्रतिशत गिरने का ये भी है ।
चुनाव आयोग यदि वाकई गम्भीरता से इस लोकतंत्र के महापर्व को सफल बनाना चाहता है तो उसको चाहिए कि आधार कार्ड के आधार पर मतदाता सूचियों को तैयार कराए और जिन लोगों के पास आधार कार्ड नहीं हैं उनके नाम बी एल ओ के द्वारा जुड़वाए ।
अब क्योंकि आधार कार्ड के आधार पर मतदाता का सारा डेटा सरकार के पास भी उपलब्ध है हर छोटा बड़ा काम आधार से लिंक है तो फिर क्या दिक्कत है ?
पं संजय शर्मा की कलम से
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