क्या पाया है हमने इंसान होकर !

क्या इंसानियत जिंदा है ?

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10 Jun '24
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सितम रास्तों के ना जिसने सहे है ,

सफर जिन्दगी का क्या उसको पता है ?


 

ना हारे हो तुम ना जिताये गए हो ;

बस इतना समझ लो ,आजमाए गए हो ।


 

साँसों की दरिया और समंदर ये साँसें

जो ना मिल सके तो तुम्हारी खता है ।


 

आधे-अधूरे से क्यों अपनेपन को

अपने ही भीतर छुपाए हुए हो ।


 

अतिज्ञान का ये कैसा भरम है

अधर में है लटकी ज्ञान की जो लता है ।


 

अहंकार का बीज यूँ ही ना पालो

अभिमानी भी तुम बनाए गए हो ।


 

खिले जो कल एक फूल बन के

काँटों की भी उसमें बड़ी भूमिका है ।


 

फुले ना समाना बन के सुमन तुम

बस इतना समझना खिलाए गए हो ।


 

कुछ भी ना तेरा ना मेरा यहाँ पे

जो हिस्सा है वो पल भर का किस्सा है ।


 

ये किस मोह से

खुद को उलझाए हुए हो !


 

रहेगा तो बस प्रेम ही जो रहा है

बचा है ,बसा है ,अड़ा है ,रमा है ।


 

झाँको हृदय में

क्या पाए हुए हो ?


 

सितम रास्तों के ना जिसने सहे है ,

सफर जिन्दगी का क्या उसको पता है ?


 

ना हारे हो तुम ना जिताये गए हो ;

बस इतना समझ लो ,आजमाए गए हो ।


 

       🌳

🌱SwAsh💚


 

                  ❤️

✍️shabdon🧡ke💙ashish✍️


 


 


 


 


 

Category:Poetry



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Written by Ashish Kumar

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