सितम रास्तों के ना जिसने सहे है ,
सफर जिन्दगी का क्या उसको पता है ?
ना हारे हो तुम ना जिताये गए हो ;
बस इतना समझ लो ,आजमाए गए हो ।
साँसों की दरिया और समंदर ये साँसें
जो ना मिल सके तो तुम्हारी खता है ।
आधे-अधूरे से क्यों अपनेपन को
अपने ही भीतर छुपाए हुए हो ।
अतिज्ञान का ये कैसा भरम है
अधर में है लटकी ज्ञान की जो लता है ।
अहंकार का बीज यूँ ही ना पालो
अभिमानी भी तुम बनाए गए हो ।
खिले जो कल एक फूल बन के
काँटों की भी उसमें बड़ी भूमिका है ।
फुले ना समाना बन के सुमन तुम
बस इतना समझना खिलाए गए हो ।
कुछ भी ना तेरा ना मेरा यहाँ पे
जो हिस्सा है वो पल भर का किस्सा है ।
ये किस मोह से
खुद को उलझाए हुए हो !
रहेगा तो बस प्रेम ही जो रहा है
बचा है ,बसा है ,अड़ा है ,रमा है ।
झाँको हृदय में
क्या पाए हुए हो ?
सितम रास्तों के ना जिसने सहे है ,
सफर जिन्दगी का क्या उसको पता है ?
ना हारे हो तुम ना जिताये गए हो ;
बस इतना समझ लो ,आजमाए गए हो ।
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🌱SwAsh💚
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✍️shabdon🧡ke💙ashish✍️
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