एक राष्ट्र-एक चुनाव में क्या हैं अड़चनें ?

चुनौतियों से भरी है एक राष्ट्र-एक चुनाव की डगर !

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19 Sep '23
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भारत एक लोकतांत्रिक देश है, यह तो हम सब जानते हैं, पर कैसे? क्योंकि यहाँ नियमित समय सीमा के पश्चात देश की जनता द्वारा देश के प्रशासन की कमान नेताओं को सौंपी जाती है। भारत के प्रधानमंत्री पद के लिए प्रत्येक पांच साल में लोकसभा चुनाव करवाए जाते हैं, एवं देश के सभी राज्यों में मुख्यमंत्री पद के लिए अपने-अपने विधानसभा चुनाव करवाए जाते हैं। ऐसा ही कुछ नगर निगम चुनाव और सरपंच को चुनने के लिए होता है। भारत में चुनाव को एक त्योहार के तौर पर देखा जाता है। सरकार द्वारा शत-प्रतिशत मतदान के लिए अभियान चलाये जाते हैं, विभिन्न राजनैतिक दल चुनाव प्रचार करते हैं। चुनावों में सत्ता पक्ष, और प्रतिपक्ष दोनों की तरफ से बेहिसाब पैसा खर्च किया जाता है।

यह देखा जाता है, कि हर साल किसी न किसी राज्य में चुनाव रहते ही हैं। अगर विधानसभा चुनाव नहीं, तो नगर-निगमों के महापौर चुनाव ! और लगातार होते इन चुनावों के कारण देश का बहुत पैसा व्यर्थ ही व्यय होता चला जाता है। वर्तमान सरकार द्वारा इस समस्या के समाधान हेतु, एक राष्ट्र-एक चुनाव के सिद्धांत को लागू करने की बात कही जा रही है।

यह एक राष्ट्र एक-चुनाव क्या है, इससे देश को क्या फायदा होगा और सबसे महत्वपूर्ण कि इस व्यवस्था को लागु करने में क्या चुनौतियाँ हैं, जो अभी तक इसे लागू नहीं किया जा सका है। इस लेख में इसी बात पर चर्चा करेंगे !

Electronic Voting Machine - Election Commission of India
EVM Machine (Image Credit : Election Commision of India)

क्या है एक राष्ट्र-एक चुनाव ?

वर्तमान की व्यवस्था के अनुसार लोकसभा और विधानसभा के चुनाव ( आप प्रधानमंत्री और राज्यों के मुख्यमंत्री के चुनाव भी कह सकते हैं ) अलग-अलग करवाए जाते हैं। लोकसभा चुनाव के वक्त राष्ट्रीय राजनैतिक दल, राष्ट्रीय मुद्दों के आधार पर चुनाव लड़ते हैं, जनता राष्ट्रीय मुद्दों के आधार पर वोट देती है, और जीतने वाले दल के प्रधानमंत्री उम्मीदवार को पद सौंपा जाता है। विधानसभा चुनाव में क्षेत्रीय समस्याओं एवं स्थानीय मुद्दों के आधार पर चुनाव लड़े और जीते जाते हैं। 

पिछले लोकसभा चुनाव साल 2019 को आयोजित किये गए थे, जिसमें राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार बनी थी। आगामी लोकसभा चुनाव साल 2024 में होने वाले हैं। विधानसभाओं की बात की जाए, तो प्रत्येक वर्ष, देश के किसी राज्य में मुख्यमंत्री के पद हेतु चुनाव आयोजित किये ही जाते हैं। वर्ष 2023 में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, मिजोरम समेत बहुत से राज्यों में चुनाव आयोजित किये जाने हैं, या तो किये जा चुके हैं।

इन सभी चुनावों को आयोजित करवाने में प्रत्येक वर्ष हजारों-करोड़ों का खर्चा आता है, बड़ी मात्रा में और लम्बे समय तक सरकारी मशीनरियों का प्रयोग होता है। इस समस्या को देखते हुए, वर्तमान सरकार पूरे देश में चुनाव की एक व्यवस्थित प्रक्रिया को लागू करने का प्रयास कर रही है। एक देश-एक चुनाव की इस प्रक्रिया के तहत, पूरे राष्ट्र में एक साथ लोकसभा एवं विधानसभा के चुनाव आयोजित करवाए जाने पर विमर्श किया जा रहा है। 

 क्या कभी एक साथ हुए हैं चुनाव ?

देश में पहले भी एक ही साथ लोकसभा और विधानसभा के चुनाव हुए हैं। भारत में स्वतन्त्रता पश्चात चार बार क्रमशः 1952, 1957, 1962 और 1967 में साथ में लोकसभा-विधानसभा चुनाव करवाए गए हैं। बाद के सालों में चुनावी अस्थितरता और राजनीतिक दलबदल के कारण साथ चुनाव करवाने का यह सिलसिला बरकरार नहीं रह पाया। साल 1968 और 1969 के बीच, कुछ विधानसभाएं भंग हो गईं। अविश्वास प्रस्ताव के कारण सरकारें अपने नियमित कार्यकाल के पूर्ण होने से पहले ही गिरने लगीं। साल 1971 में भी संसद के कार्यकाल के पूर्ण होने से पहले ही लोकसभा चुनाव करवाए गए थे। 

क्यों जरूरी है एक राष्ट्र-एक चुनाव ?

वर्तमान में सत्ता में मौजूद भाजपा सरकार एक राष्ट्र-एक चुनाव पर लगातार ज़ोर दे रही है। वर्तमान समय में होने वाले चुनावों में सरकार का बहुत ज़्यादा पैसा खर्च हो जाता है। सिर्फ लोकसभा चुनावों में ही ये आंकड़ा हजारों करोड़ तक पहुँच जाता है, और यदि विधानसभा चुनावों को मिला लिया जाये तो ये स्थिति बहुत ही भयावह मालूम पड़ेगी। साथ ही साथ, लगातार होते चुनावों से सरकारी अधिकारी एवं मशीनरियों का बहुत अधिक काम लिया जाता है, और ये अपने मुख्या कार्यों पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते। इन्हीं समस्याओं को ख़त्म करने के लिए सरकार यह कानून लाना चाहती है। 

Madhya Pradesh Election 2023: Eligibility criteria and registration process  details here! | The Financial Express
Image Credit : The Financial Express

मुश्किलों से भरी है एक राष्ट्र-एक चुनाव की राह !

एक राष्ट्र-एक चुनाव का रास्ता जितना आसान मालूम पड़ रहा है, वास्तव में उतना ही चुनौतीपूर्ण है। पूरे देश में साथ में चुनाव करवाने में बहुत-सी चुनौतियां हैं, जिनमें से कुछ ये हैं -

“संसाधनों की कमी ”

वर्तमान में लोकसभा और विधानसभाओं में अलग-अलग चुनाव करवाए जाने के कारण, वोटिंग मशीनरियों का इस्तेमाल आसानी से हो जाता है। लोकसभा चुनाव में उपयोग हुई वोटिंग मशीनों ( Electronic Voting Machine {EVM} ) को अन्य चुनावों में प्रयोग में ले लिया जाता है। लेकिन यदि लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ करवाए जाते हैं, तो अधिक वोटिंग मशीनों की आवश्यकता होगी। साथ-ही-साथ अधिक सुरक्षाकर्मी, और वोटिंग अधिकारियों की ज़रुरत होगी। 

“क्षेत्रीय राजनैतिक दलों को होगा नुकसान”

वर्तमान में देखा जाता है, कि लोकसभा के चुनाव अक्सर राष्ट्रीय मुद्दों पर लड़े जाते हैं। और इन चुनावों में भाग लेने वाले दल भी राष्ट्रीय स्तर के होते हैं, जैसे भारतीय जनता पार्टी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी आदि। लेकिन दूसरी तरफ विधानसभा चुनाव उस एकमात्र राज्य के क्षेत्रीय मुद्दों और विधानसभा सीटों के स्थानीय मुद्दों पर आधारित होते हैं। इन चुनावों में लड़ने वाली पार्टियां ( राजनैतिक दल ) भी केवल इन्हीं राज्यों पर अपना ध्यान केंद्रित किये रहते हैं, और क्षेत्रीय दल कहलाते हैं, जैसे बहुजन समाज पार्टी, शिवसेना, AIADMK आदि। लेकिन यदि साथ में चुनाव करवाए जाते हैं, तो स्थानीय एवं विधानसभा स्तर के चुनाव भी राष्ट्रीय मुद्दों को ध्यान में रखकर लड़े जाएंगे। इस कारण क्षेत्रीय राजनैतिक दलों को काफी नुकसान होगा। 

“अस्थाई कार्यकाल एवं अविश्वास प्रस्ताव हैं बड़ी अड़चन”

पूर्ण कार्यकाल से पहले ही विपक्ष द्वारा लाये जाने वाले अविश्वास प्रस्ताव और अनुच्छेद 356 के तहत लागू किया जाने वाला राष्ट्रपति शासन एक राष्ट्र-एक चुनाव में बहुत बड़ी बाधा है। क्योंकि सभी विधानसभाओं में चुनाव करवाने के लिए, उन्हें भंग करना पड़ेगा। और यदि चुनाव किये जाते हैं, तो बीच पेश किये जाने वाले अविश्वास प्रस्ताव से पुनः चुनाव करवाने की स्थिति बन सकती है। जिससे एक साथ चुनाव करवाने का क्रम टूट जाएगा। अतः यह नियम पारित किये जाने से पहले, अविश्वास प्रस्ताव पर विचार किया जाना चाहिए।  संविधान में संशोधन किया जाना भी बेहद चुनौती वाला कार्य है, अतः एक राष्ट्र-एक चुनाव की अवधारणा को लागू करना मुश्किल है। 

“राजनैतिक दलों के बीच नहीं है सहमति ”

साथ में चुनाव करवाए जाने को लेकर सभी राजनैतिक दलों के अपने-अपने मत हैं, जो बहुत हद तक इस एक चुनाव की व्यवस्था के विरोध में हैं। ऐसे में सभी विपक्षी दलों को एक मत में लाना कठिन कार्य होगा। 

Category:Education



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Written by Rishabh Nema