हम दो हमारे दो और हमारा डायनासोर

हमारी अचानक होने वाली यादगार यात्रा

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20 Jun '24
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   25 दिसम्बर 2023, सुबह के लगभग 9 बजे मैंने अपनी श्रीमती और दोनो बेटियों को एक Offer Cum Order दिया कि अगर पिकनिक का प्लान करना हो तो आज कल या परसों में कर लो क्योंकि 31st या 1 जनवरी को मैं कहीं नही ले जाऊंगा । क्या है कि इस समय परिवार के साथ कहीं बाहर जाना मुझे पसन्द नही सब तरफ हो हल्ला, शराब और मस्ती मतलब आप फेमिली के साथ कम्फर्टेबल नही रह सकते और रोड में भी सब मस्ती में रहते है तो एक्सीडेंट के चांसेज भी इस समय अधिक होते हैं । अब मेरे तीनों बच्चे भी मेरे जैसे ही घुम्मकड़ मिज़ाज के ठहरे उन्होंने तुरंत बहती गंगा में डुबकी लगाना बेहतर समझा और आज ही मतलब 25 दिसम्बर को ही जाना तय कर लिया । जाना है ये तो तय हो गया पर कहाँ जाना है इसपर पंचायत सहमत नही हो पाई ।  वैसे भी अब तक तो हमारा बाथिंग साथिंग भी नही हुआ था । हमारी बड़ी बच्ची मतलब की हमारी होम मिनिस्टर नहा धोकर नास्ते की जुगाड़ में लगी थी । 
मौका देखकर हम भी अपने अनमोल तन में जल का छिड़काव करके मन को इस वहम में डालकर ही हम नहा लिए है रेडी हो गए । वो क्या है न हम जहां अभी रहते है वो छत्तीसगढ़ का सबसे ठंडा स्थान माना जाता है और 
शीतकालीन अवकाश में भी अगर हम सुबह सुबह नहालें तो ये तो उस शासकीय अवकाश की तौहीन हुई न जो हमे इस सर्दी से बचने को मिली है । सब जल्दी जल्दी नहा धोकर नास्ता तो निपटाये और सोचने लगे कि कहाँ चला जाये  । मैनपाट तो अभी अभी गए थे, बूढाआमा देख चुके हैं कुछ खास नही है बस ऐसे सोचते सोचते 11 बज गए । 
            इतने में श्रीमती उठी और कूकर में पुलाव बनाने लगी और बाकी लोग  तैयार  होने लगे मैने भी मौके की नजाकत को देखते हुए अपने डायनासोर को झाड़ पोछकर रेडी किया। बच्चों ने तब तक चटाई। पानी ब्लूटूथ स्पीकर बैडमिंटन सब जुगाड़ डायनासोर के भीतर ठूस लिया । उधर हमारी श्रीमती भी रेडी होगई जिनकी सुंदरता को देखते हुए कूकर महाशय भी सीटी मारने लगे । अब ये बात मुझे कैसे बर्दास्त होती कि कोई मेरी मैडम को देखकर सीटी मारे तो कूकर जिस चूल्हे के ऊपर बैठकर इतराते हुए ऐसी हरकतें कर रहा था सबसे पहले तो मैने उस चूल्हे के कान मरोड़े फिर कूकर को उसकी पीठ से उतारकर उसे एक झोले के हवाले किया और फिर उसका अपहरण कर उसके अपने डायनासोर के हवाले किया । तब तक काबुली चने ने भी  आलू के साथ सेटिंग कर ली थी और इस काम मे टमाटर ने भी उसका भरपूर साथ दिया था । लेकिन मेरी जासूस नजरों से वो कहाँ छुप पाते मैंने उन्हें भी सजा देने का ऑर्डर दे दिया । मेरी अर्धांगिनी ने मेरे इशारों का मान रखते हुए तुंरत उन्हें स्टील के चार दिवारी में कैद कर लिया । 
   कुल मिलाकर अब हम रवाना होने के लिए पूरी तरह तैयार थे । लेकिन कहाँ ये कोई नही जानता ? 
         मेरे बच्चे एक्साइटेड थे और साथ मे कन्फ्यूज भी । वो खुस भी थे और डरे हुए भी क्योंकि ऐसे ही सिचुएशन में पिछले साल मैं एक कारनामा कर चुका था और पिकनिक के नाम पर अपने स्कूल के बाजू के महुआ के पेड़ों के नीचे उनका न्यू ईयर सेलिब्रेट करवा दिया था । हम घर से तो नीकल गए और जब उस छोटे से जंगल को क्रॉस कर लिए तो मेरे बच्चों ने राहत की सांस ली कि चलो कम से कम अपना बापू इस साल तो कही औऱ ले जा रहा है । तो चलते चलते हम पहुंच गए उस चौक में जहाँ से एक रास्ता जाता था कैलास गुफा की ओर और दूसरा रास्ता जाता था रजपुरी झरना के लिए ।अब कैलास गूफ़ा तो पहले भी जा चुके थे तो तय हुआ कि रजपुरी झरना चलते हैं । चौक में बहुत सी सब्जी वालियाँ  सब्जी बेच रही थी तो मैं उतर गया मटर लेने ताजे ताजे मटर दिख रहे थे । 
    जब तक मैं मटर ले कर आया गाड़ी में एक नई खिचड़ी पक चुकी थी । प्रिया ने गूगल बाबा का सहारा लिया और वास्कोडिगामा बनते हुए एक नयी जगह का पता लगा लिया नाम था मयाली डेम । जो यहां से लगभग 65 किमी था घड़ी में बजे थे 1.30 और हम भी होशियारी में डेढ़ होशियार ही हैं तो डायनासोर को लेकर हम निकल लिए एक नए सफर में ,,,,, 
        पर आगे रोड बहुत खराब था ओह्ह सॉरी रोड़ तो वहां था ही नही वहां तो बस गिट्टियां ही गिट्टियां बिछी थी रोड में । 3 बजे के लगभग हमे दूर से एक पहाड़ नजर आया जो मेरे आराध्य महादेव के स्वरूप में था । इस पर्वत को मधेश्वर पर्वत के नाम से जाना जाता है । हम इस पर्वत को देखने मे इतने मस्त थे की हमसे एक चूक हो गयी । 
          मयाली का जो मैप हमने सेट किया था वो अभी भी 3 किमी दूर दिखा रहा था कुनकुरी रोड में हम चले न रहे थे जाते जाते कटनी गुमला हाइवे के लेफ्ट साइड में और क्योंकि हम अपोजिट जा रहे थे तो हमारे राइट साइड में हमे एक कच्चा रास्ता नजर आया । और इस तरह हम अपनी मंजिल तक पहुंच गए । वहां पहुंचकर सबसे पहले हमने अपने पुलाव और सब्जी को डायनासोर से मुक्त किया और उन्हें जेल से आजादी दी । पर उन्हें क्या पता था कि ये आजादी कल सुबह तक  के लिए कालापानी की सजा के तौर पर दी जारही है । तो इस तरह पेट पूजा करने के बाद थोडा बहुत मोबाईल के भी पेट को भरने के लिए हमने कुछ पोज दिए । और ये सब करते करते 4.30 बज गए तो अब ने वापसी का डिसाइड किया और अपने ठिकाने की ओर कूच कर दिए । लेकिन इस बार हमने रास्ता बदल दिया और कुनकुरी कांसाबेल होते हुए सीतापुर वापस आये जो कि 20 25 किमी कम पड़ा । 
           एक महत्वपूर्ण सूचना अगर आप कभी इधर आये तो जो मधेश्वर पर्वत है उसके जस्ट सामने मयाली नेचर केम्प का गेट है जो हमने पर्वत के सौंदर्य दर्शन के चक्कर मे मिस कर दिया । अगर आप उस रास्ते से अंदर घुसते हैं तो आपको वोटिंग  का मौका भी मिल जाएगा और बच्चों के लिय्ये झूला गार्डन और भी बहुत कुछ लेकिन हमने जो देखा और एन्जॉय किया वो भी आनद दायक था ।

Category:Nature



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Written by prashant chaturvedi