जीवन के रास्ते तय करते हुए, जो लोग पीछे छूट जाते हैं।
या मानो जैसे मैं छुट गया।
तो क्या सफ़र में बने रिश्ते, नाते, सम्बन्ध भी हाथ छूटे तो
वो सब भी छूट गया?
वो हंसना, रुठना, मनाना, दर्द में साथ रोना, ख़ुशी
मैं संग खुश होना, क्या है अब इनके मायने?
समय के साथ और दूरियों से बनी यादें अब मुकाम बन
जैसे पीछे कहीं छूट गया।
I am a resident of Delhi, the heart of India, and a writer entertaining readers by writing about his experiences. You may know me as a writer, poet, and author, but if you don't know me, it doesn't matter.