पानीपत के युद्ध: इतिहास और उनका महत्व

पानीपत का युद्ध भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है , पानीपत में मुख्य रूप से तीन युद्ध लड़े गए। हम अपने इस आर्टिकल में इन महत्वपूर्ण युद्धों की घटनाओं, मुख्य व्यक्तियों और उनके परिणामों को छूने का प्रयास करेंगे।

ProfileImg
11 Oct '23
7 min read


image

इतिहास के पन्नों को अगर पलटा जाये तो कई बातें हैं जो निकल कर आती हैं | कई ऐसे किस्से हैं जो इतिहास के पन्नो में दर्ज हो गए और कई युद्ध है जो आज सैंकड़ो सालों बाद भी लोगों के जेहन में ज़िंदा है | इन्हीं में से एक है पानीपत का युद्ध , एक ऐसा शहर जिसे पौराणिक काल से जाना जाता है |जिनमे से पाण्डुप्रस्थ यानि कि आज का पानीपत प्रमुख शहर (प्रस्थ) था |  बाद में इसका नाम पानीपत पड़ गया | दिल्ली से मात्र ९० किलोमीटर दूर हरियाणा राज्य का सिर्फ 56 वर्ग किलोमीटर में बसा ये छोटा सा शहर जिसने इतिहास के सरे समीकरण बदल दिए | इस पर लड़े गए 3 युद्ध जो इतिहास के सबसे बड़े तीन युद्धों में मने जाते हैं आइये आज चर्चा करते हैं पानीपत के उन तीन युद्धों के  बारे में जो हमारे लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं हैं | जब इन युद्धों के बारे में आप जानेंगे तो पाएंगे कि कैसे एक विदेशी आक्रांता ने हमारी ही धरती पर  आकर हमें ही धूल चटा दी | इन युद्धों ने हिन्दुओं की जड़ें हिला कर रख दी थी | जब भी भारत की भूमि पर युद्धों की चर्चा होगी, इन युद्धों को जरूर याद् किया जायेगा | 

आइये अब विस्तार से बात करते हैं - 

पानीपत का प्रथम युद्ध - 

भारतीय इतिहास को जिसने अलग मोड़ दिया वह था पानीपत का प्रथम युद्ध, जिसने भारत में मुग़ल वंश की नींव रखी, यह युद्ध हिन्दुओं के पतन और मुगलों के साम्राज्यीकरण का प्रारम्भ था | पानीपत का प्रथम युद्ध 21 अप्रैल 1526  में लड़ा गया | यह युद्ध बाबर की सबसे महत्वकांक्षी योजनाओं में से एक था | 12 अप्रैल, 1526 ई. को दोनों सेनायें पानीपत के मैदान में आमने-सामने आ खड़ी हुईं पर दोनों के मध्य युद्ध 21 अप्रैल को ही प्रारम्भ हुआ। ऐसा माना जाता है कि इस युद्ध का निर्णय दोपहर तक ही हो गया। युद्ध में इब्राहिम लोदी बहुत बुरी तरह से परास्त हुआ। 

कहा जाता है कि इब्राहिम लोदी के पास 1,30,000 सैनिक थे जबकि बाबर के पास मात्रा 12000 सैनिक थे | बाबर के पास 20 तोपे बताई जाती हैं | जबकि इब्राहिम लोदी के पास 500 हाथों का सेना बल था | इस युद्ध में बाबर ने तुगलमा पद्धति का उपयोग किया | इस नीति में बाबर ने सेना को तीन भागो में विभाजित कर दिया था | जिसके तीन भाग लेफ्ट राइट और सेंटर थे और इन तीनो को इस तरह विभाजित किया कि ये फॉरवर्ड व् रियर दोनों को कवर करें | इस पद्दति ने इब्राहिम लोदी की सेना को पूरी तरह से घेर लिया और बुरी तरह से पटकनी दे दी | बाबर के इस युद्ध को जीतने का कारण उसकी प्रभावशाली युद्ध प्रणाली, तोपों का सही प्रयोग और हिन्दू राजाओं का तटस्थ हो जाना था जिस मौके को बाबर ने पूरे तरीके से भुनाया था | 

इसके अतिरिक्त तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण कारण यह था इब्राहिम लोदी ने खुद बाबर को अपने राज्य में हमला करने का निमंत्रण दे दिया था जो इतिहास में बेहद खराब घटनाओं में से एक है।

पानीपत के पहले युद्ध के कारण -

पानीपत का पहला युद्ध के कई कारण थे 

एक तो इब्राहिम लोदी और उसके नीचे काम करने वाले सरदारों के बीच सामंजस्य से स्थापित नहीं था। दोनों को ही एक दूसरे की नीतियों में विश्वास नहीं था इसलिए नीचे की पूरी चेन उनसे नाखुश होती रही‌।

दूसरा कारण बना जब उत्तराधिकार में इब्राहिम लोदी को अपने राज्य का एक हिस्सा उसके भाई जलाल खान को देना पड़ा था । बात तब और खराब हो गई थी जब इब्राहिम लोदी ने अपने फैसले को पलट दिया था और जलाल खान से जौनपुर की सत्ता से छीन ली थी।

पहले युद्ध के परिणाम 

पानीपत के पहले युद्ध में बाबर की विजय हुई। भारी नुकसान के साथ बाबर ने इब्राहिम लोदी को मैदान से खदेड़ दिया था। देखते ही देखते दिल्ली सल्तनत पर मुगलों का कब्जा हो गया था ।

अब बात करते हैं पानीपत के दूसरे युद्ध के बारे में 

इस युद्ध से मुगलों की स्तिथि भारत में मजबूत और दृढ़ हो गयी | इस युद्ध को जीतने के साथ ही अकबर ने अपना साम्राज्य भारत में और अधिक बढ़ा लिया था | और इसके बाद ही मुगलों का वर्चस्व भारत में कायम हो गया था | पानीपत का यह दूसरा युद्ध 5 नवंबर 1556 को लड़ा गया | यह युद्ध अकबर की सेना और उत्तर भारत के सम्राट हेमचंद विक्रमादित्य के बीच हुआ | कहा जाता है कि इस युद्ध में अकबर ने स्वयं भाग नहीं लिया था बल्कि उनकी सेना ने लिया था, क्यूंकि उस समय अकबर की आयु मात्र 13 वर्ष की थी | और उनके युद्ध में जितने की सम्भावनाये बहुत कम थी इसलिए उनके सेनापति बैरम खान ने अकबर से कहा था कि यदि हम युद्ध हार जाएं तो तुम काबुल की ओर भाग जाना हालाँकि  बाद में उनके सेनापति और सेना की नीतियों के कारन अकबर यह युद्ध जीत गये थे |  

परिणाम -

इस युद्ध में हेमू बेहद शानदार लड़ाई लड रहे थे लेकिन अकबर की सेना ने युद्ध के मैदान में हेमू पर ऐसा तीर छोड़ा जो सीधे उनकी आंख में लगा जिसके बाद हेमू युद्धभूमि में ही बेहोश हो गए थे। जब हेमू की सेना ने अपने राजा की यह स्थिति देखी तो उनके अंदर डर और भ्रम उत्पन्न हो गया । यही उनके हार का कारण बना । हेमू की सेना अपने राजा को घायल अवस्था में देखकर मैदान से बाहर होने लगी । धीरे धीरे अकबर की सेना का नियंत्रण हो गया और हेमू इस युद्ध में पराजित हो गए।

 

पानीपत का तीसरा और अंतिम युद्ध - 

कहावत है न   " खुद के पैर पर कुल्हाड़ी मारना " तो यह कहावत इस युद्ध पर पूरे तरीके से चरितार्थ होती है | जब मराठों का शौर्य व उत्कर्ष चरम पर था, तो भारत के सभी सम्राटों को मराठों से जलन होने लगी और उन्हें उनसे खतरा महसूस होने लगा, इसके चलते अवध के नवां शुजाउददौला और अफगानी शासक रोहिल्ला ने अफगानिस्तान में रहने वाले अहमद अब्दाली को खुद भारत  आने का न्योता दिया और उनके साथ मिलकर मराठों से युद्ध करने के लिए राजी कर लिया | अहमद अब्दाली दुर्रानी वंश का शासक था | 

पानीपत का तीसरा युद्ध 14 जनवरी 1761 को हुआ और जिसमे मराठों की हार हुई | इसमें मराठों में सेनापति सदाशिव राव भाउ थे | इनको सेनापति बनाने का कारण इन्होने हैदराबाद के निजामों को हराया था | और उस समय मराठा सेना में सबसे ताकतवर व्यक्ति यही थे | 1761 में मराठा साम्राज्य के पेशवा बालाजी बाजीराव थे, और कहा जाता है कि इस युद्ध में हार के चलते सदमे से उनकी मृत्यु हो गयी थी |  

 

पानीपत के युद्ध को भारतीय इतिहास का सबसे ख़राब युद्ध माना जाता है | क्यूंकि इस युद्ध में जन धन की असीमित हानि हुई थी | इस युद्ध ने मराठा साम्राज्य की जड़े हिला कर रख दी और यही से मराठा साम्राज्य का पतन प्रारम्भ हो गया | 

उम्मीद है आपको ये ब्लॉग पसंद आया होगा, यहाँ हम आपको एक और रोचक जानकारी देने जा रहे हैं | नीरज चोपड़ा का नाम तो अपने सुना ही होगा जो भारत के भाला फेंक ओलिंपिक स्वर्ण पदक विजेता हैं | ये बात तब निकलकर सामने आयी जब 7 अगस्त 2021 को नीरज ने स्वर्ण जीता जो महाराष्ट के तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडवणीस ने ट्ववीट करते हुए बताया की नीरज चोपड़ा  के वंशज मराठा थे, लेकिन पानीपत के तृतीय युद्ध में  पेशवा बाजीराव की तलवार ले जाने के लिए आये थे लेकिन बाद में यही जाटों की भूमि में आकर बस गए |

 इसके साथ ही उन्होंने कुछ रोचक पंक्तिया भी शेयर की -

ये भाला तो वीर शिवा का और रणभेदी राणा का है,

भारत मां का सपूत नीरज बेटा तो हरयाणा का है | 

आज तिरंगा ऊँचे चढ़ते देख  सीना चौड़ा  है , 

 और राष्ट्रगान की धुन पर अपना लहू रगों में दौड़ा है | 

याद करें जिस युद्द ने बरसों गहरा घाव छोड़ा है, 

उसी पानीपत के छोरे ने आज इतिहास को मोड़ा है | 

 

देवेंद्र फडवणीस

Category:History



ProfileImg

Written by Aviral Shukla

0 Followers

0 Following