जागो अब जागो
वक्त हमसे ये कहता अब जागो अब जागो।
कितने दिन तक मैं जुल्म सहता अब जागो अब जागो।।
कब तक होगा मुंह को यूं सीना,
क्यूं हर बार हो घुट घुट कर जीना,
बेड़ी अपनी अब तो काटे, जागो अब जागो।।
न तो हम है शावक प्यारे,
न इरादों से हम है हारे,
क्यूं न नदी धार विपरीत बहे ,अब जागो अब जागो।।
चट्टानों से अपने फौलाद इरादे,
मत करना हमसे अब झूठे वादे,
इंकलाब आकाश लिखे,अब जागो अब जागो।।
सागर की लहरों संग हम खेले,
तूफानों के रुख को प्रतिफल झेले
नित नया इतिहास लिखे,अब जागो अब जागो।।
कब तलक बैरी हमको रोकेगा ,
कांटे अपनी राहों में कितने बोएगा
जलती एक मशाल बने, अब जागो अब जागो।।
रूप विकराल दावानल का धरो अब
बनकर काल शत्रु पर टूट पडो अब
मन बावरा यही पुकार करें अब जागो अब जागो ।।
सुमति श्रीवास्तव
जौनपुर उत्तर प्रदेश
कवियत्री