आंखों में नमी दिल में उम्मीद उमंग तेरे मिलने की सुबह से शाम शाम से दोपहर और दोपहर शाम और शाम से फिर सुबह
दिन रात का ये चक्कर ये डोढ़ धूप
में बैठा सिशक् ता रहा उस जगह बैठकर जहां आंखों से तु हुआ ओझल
आंखे बड़ी देर तक उस जगह को तकती रही जिस जगह बो खड़ा था बिछड़ ते
वक्त जब भी जी चाहता है तुझे देखने को उस जगह पर जाता हूं और आंखें बन्द करके दोनों महसूस करता हूं उस दिन को जब देखा था तुझे मेने यहीं पर
आस पास खड़े लोग दिमाग़ लगाते हैं अपना अपना कोई पागल कहता है कोई
नसेड़ी मगर मेरे मर्ज तक कोई पहुंचा आज तक मुद्दतें गुज़र गई मुझे यूं ही वहां जाते
एक दिन तुम मुझे यूं ही खड़े मिल जाओगे वहां जैसे तुम मुझे गए थे वहां अकेला खड़ा छोड़कर
सफर कोई भी हो ये आंखे ट्रेन के हर डब्बे में ढूंढती तुझ ही को है
जबकि हमे मालूम है आप ट्रेन में नही हो
मेरी जाना फिर नाप देते है हम सारी ट्रेन एक ही पल में
यही सब होता है अब ज़िंदगी में
हर रोज ये आंखे खुलती है इसी उम्मीद में कि शायद आज ख्वाहिश पूरी हो इन आंखों की सोचता है दिल जिस अल्लाह ने हमें पहले कई बार बिछड़ने
पर मिलाया शायद उसे एक बार और
आपके अमीन पर रहम आ जाए
अगर ऐसा हुआ तो ये कायनात जो भर उठी है तेरे हिज्र में आंसु बहाने से
बच जायेगी बेचारी बाढ़ आने से
हम मिलेंगे यकीं है मुझे लेकिन हमारा मिलना
कयामत सा हो गया है मेरी जाना
खुदा ने यह कह कर छोड़ दिया कयामत तो आना है सब्र रखो मेरे बंदों
बस ऐसा ही कुछ जबाव हमारे मामले में भी दिया था उसने अभी पिछले ही दिनों बात हुई थी मैरी उससे
कुछ दिन का इंतजार और बस फिर बसल है किस्मत में हमारी उम्मीद
रखने में कोई बुराई तो नहीं
हां अभी इंतज़ार ही सही
Ip की कलम से।
Master of arts Imran sir
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