विश्व का शायद ही कोई स्थान हो, जहां पर चार पाँच लोग हो, औऱ सब अधार्मिक हो. सबकी आस्था के केंद्र में ईश्वर अवश्य होता है या फिर यह कह सकते हैँ कि उनका किसी न किसी मजहब, पंथ या धर्म से सम्बन्ध जरूर होता है.
जब हर मनुष्य धार्मिक है फिर विश्व भर में हर ओर हिंसा का तांडव क्यों है. क्या यह सोचने वाली बात नहीं है.
यह सोचने वाली बात है क्योंकि धर्म, पंथ, संप्रदाय औऱ मजहब के मूल अधिकार औऱ कर्तव्य में हिंसा का कोई स्थान नहीं है.
धर्म में सिर्फ और सिर्फ आत्मरक्षा का स्थान है. जिससे जीवन की रक्षा की जा सके. साथ ही दूसरे के अत्याचार कोई रोका जा सके.
हिंसा का विजय के लिए अनिवार्य है.धर्म की रक्षा के लिए सिर्फ वाक् कौशल ही काफ़ी है
वाक् कौशल का उपयोग हमेशा ज्ञानी, विद्वान, साधु, संत और साधक करते हैँ हिंसा स्वार्थी, अराजक, अधार्मिक, भावनात्मक औऱ पारवारिक और सांसारिक लोगों का मुख्य कार्य है
हिंसा मानसिक, आर्थिक, सामाजिक औऱ शारीरिक होती है
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