वेदिका...

प्यासे नैन



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वह करीब साढे़ पांच फूट हाईट लिए हुए थी। तीखे नैन-नक्श, घने काले बाल जो चोटी का रुप लिए हुए थे और उसमें गजरा गूंथा हुआ था। लंबी नाक और कसाव लिए शरीर सौष्ठव। सब कुछ तो था उसके पास’ जो एक पुरुष को चाहिए। किन्तु” बस एक कमी थी उसमें, वो सांवली थी और इसलिये ही कोई उसके पास नहीं फटकता था।
वैसे’ वेदिका अपने मां-बाप की लाडली थी। उसके पिता संपन्न व्यापारी थे, पैसों की कोई कमी नहीं थी उनके पास। बस’ वेदिका को किसी राजकुमारी की तरह ही रखते थे वे। वैसे भी उनके लिए, पुत्र वेदांत और पुत्री वेदिका, दो ही तो दुनिया था।
बस’ रोज ही कार में काँलेज आना और क्लास कर के घर को लौट जाना। यही रुटिन था वेदिका का, क्योंकि’ उसकी फ्रेंड लिस्ट ज्यादा न थी और जो थोड़े बहुत थी भी, बस स्वार्थ की ही खातिर थी। ऐसे में उसका ज्यादा किसी से घुलना-मिलना नहीं होता था।
अब ऐसी भी बात नहीं थी कि” वो इन बातों से परेशान होती हो। वह अपनी दुनिया में काफी खुश थी, क्योंकि” प्यार की वर्षा करने बाले मम्मी-पापा और केयर करने के लिये बड़ा भाई था उसके पास।
उसकी छोटी से छोटी खुशियों को भी ध्यान में रखा जाता था। ऐसे में वो काफी प्रसन्नचित्त रहती थी। किन्तु” इसके अलावा भी मन की अलग दुनिया होती है। एक अलग कोमल भावना होता है, जो युवा होते ही मन में अंकुरित होने लगता है।
उसके साथ भी यही हुआ, क्योंकि” एक दिन काँलेज में एक लड़का, जिसका नाम विभु था, ने प्रवेश लिया। हिप्पी कट घने काले बाल, नीली आँखें, उसपर लगा चश्मा। गोरा रंग और आकर्षक व्यक्तित्व, सुंदरता ऐसी कि” कोई भी उसकी ओर आकर्षित हो जाये।
स्वाभाविक रुप से विभु लड़कियों के बीच चर्चा का विषय बन गया। ऐसे में वेदिका इस से अलग कैसे रह पाती? उसके मन में भी विभु को लेकर कोमल भावनाएँ पनपने लगी। किन्तु” उसे लगता था कि” यह उसका सिर्फ खयाली पुलाव है। 
किन्तु” इंसान दिल के हाथों मजबूर होता है। महीनों बीत चुका था विभु को चोर नजरों से देखते हुए वेदिका को और अब स्थिति ऐसी आ गयी थी कि” वह अपने मन मस्तिष्क पर नियंत्रण नहीं रख पाती थी। चाहत इतनी बढ गयी थी कि” विभु अकसर ही उसके खयालों में अक्स बनकर उभड़ आता था। 
ऐसे में हैरान-परेशान हो गयी। जब कोई रास्ता नहीं सुझा, तो बड़े भाई नितांत को अपनी परेशानी बतलाई। बात सुनकर नितांत गंभीर हो गया, जानता था इस परिस्थिति को। उसकी बहन सांवली थी और जिस युवक के बारे में कह रही थी, उसके अनुसार अति सुंदर था।
किन्तु” प्रयास तो जरूर कहना चाहिए। ऐसा सोचकर उसने वेदिका को सलाह दिया कि” वह अपने प्रेम का इजहार कर दे। बस’ भाई की सलाह को गांठ बांध लिया उसने और अगले दिन ही जब काँलेज गयी, वह विभु से मिली और उसे कैंटिन में ले गयी।
इसके बाद प्रेम का मधुर इजहार और आँखें झुका कर शर्माना। भले ही वो सांवली थी, किन्तु” सुंदर भी जरूर थी। उसका देह लालित्य किसी को भी आकर्षित कर सकता था। बस’ कमी थी तो’ वह सांवली थी।
तभी तो’ विभु ने उसका उपहास उड़ा दिया। बस’ पूरे कैंटिन में हंसी का दौर शुरु हो गया और अपमान और लज्जा के दोहरे मार से वो रोने लगी। फिर तो’ वह काँलेज में रुक नहीं पाई। रोते हुए घर को लौट आई। 
इतना ही नहीं, घर आकर बिस्तर में मुंह छिपा कर बच्चे की मानिंद रोने लगी। बस’ उसके आँखों में आँसू और परिवार में हलचल तो मचना ही था। हां, आज तक उसके परिवार बालों ने कभी उसके आँखों में आँसू नहीं आने दिया था।
किन्तु” आज वो रो रही थी। बस’ मम्मी-पापा और भाई, तीनों ही उसकी सेवा में हाजिर हो गये। बस’ अपनत्व और स्नेह भीगा स्पर्श’ वेदिका अपने आप को रोक नहीं सकी और अपने परिवार को आज काँलेज में घटित वाकये को कह सुनाया।
इसके साथ ही उसका बड़ा भाई नितांत मुस्कराया। उसने वेदिका को समझाया कि” जीवन में ऐसी घटना तो घटती ही रहती है। इससे निराश होने की जरूरत नहीं, क्योंकि” हो सकता है, विभु से भी अच्छा लड़का तुम्हें मिल जाये। अब भूल भी जाओ विभु को, वो तो तुम्हारे प्यार के काबिल ही नहीं था।
अपने परिवार बालों के समझाने और स्नेह रुपी वर्षा से वेदिका तत्काल शांत तो हो गयी। परंतु….विभु के द्वारा ठुकराये जाने के बाद वो एक तरह से निराशा के गर्त में समा गयी थी। हां, उस वाकये को याद कर के वो हमेशा परेशान रहने लगी थी और इसलिये ही काँलेज जाना छोड़ दिया था।
हलांकि’ परिवार बाले भरपूर कोशिश कर रहे थे कि” उसके होंठों पर चिर- परिचित मुस्कान वापस ले आए, किन्तु” ऐसा नहीं हो सका। ऐसे में एक शाम’ जब वो लाँन में बैठी हुई थी, ब्लैक रंग की कार ने गेट से प्रवेश किया।
हां, वो ब्लैक रंग की इनोवा कार थी, जिसने बिला के गेट से प्रवेश किया था और अब पोर्च में आकर लगी थी। शाम के समय कौन हो सकता है?..इस तरह कार को आए हुए देखकर वेदिका ने जैसे खुद से कहा और अभी तो वह सोच ही रही थी, तभी कार का दरवाजा खुला और उसमें से विभु निकला।
ब्लैक जिंस और नीला हाँफ टी-शर्ट पहने हुए। आँखों पर सुनहरे फ्रेम का चश्मा और सुंदर मुखड़े पर चिर-परिचित मुस्कान। उसे अचानक ही सामने आया देखकर वेदिका अवाक थी, हां वो आश्चर्य के सागर में गोते लगा रही थी। जबकि’ विभु’ मुस्कराते हुए उसकी ओर बढ रहा था और ऐसा भी समय आया, जब वो वेदिका के करीब पहुंच गया।
साँरी वेदिका!....मुझे तुम्हारे साथ उस दिन ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिये था। अचानक ही मधुर आवाज में बोला विभु। फिर’ उसके सामने बाली चेयर पर बैठ गया और उसकी आँखों में देखने लगा। जबकि’ वेदिका, उसके बातों को सुनकर एक पल के लिये विचलित हो गयी, तभी तो बोली।
विभु” कहीं ऐसा तो नहीं कि” तुम मेरे जख्मों पर नमक छिड़कने के लिये आए हो? 
नहीं-नहीं वेदिका!....तुम शायद गलत समझ रही हो। भले ही उस दिन’ मुझ से भूल हुई थी, किन्तु” मैं यहां गलत इरादे के साथ नहीं आया हूं। वेदिका के प्रश्न सुनकर विभु तत्काल ही बोल पड़ा, फिर उसकी आँखों में देखने लगा। साथ ही, अचानक ही उसके हाथों में लाल गुलाब आ गया, जिसे उसकी ओर बढ़ाकर आगे बोला।
वेदिका’ अगर तुम स्वीकृति दो’ तो जीवन पथ पर मैं तुम्हारे साथ कदम से कदम मिलाकर चलना चाहता हूं।
कहा विभु ने और फिर अपलक वेदिका के आँखों में देखने लगा। जबकि’ उसकी बातों को सुनकर वेदिका उलझ कर रह गयी। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि” इस समय क्या बोले? कल जो विभु’ जिसने उसके प्रणय निवेदन को अस्वीकार कर दिया था। आज उसके सामने इस तरह से प्रणय निवेदन कर रहा है।
स्वाभाविक ही है कि” दूध का जला छाछ को भी फूंक-फूंक कर पीता है। ऐसे में वेदिका उलझ कर रह गयी। कई पलो तक उलझी रही वो ऐसे में और न जाने कब तक उलझी रहती वो, तभी उसका भाई नितांत बाहर निकला और जैसे ही उसकी नजर विभु पर गयी, पूरा मामला समझ गया।
फिर तो’ वह उसके करीब आकर बैठ गया और वेदिका के चेहरे को देखा, जहां उलझन का जाला बिछा हुआ था। बस’ उसके चेहरे पर मुस्कान छा गयी और एक बार विभु के चेहरे को देखा, फिर वेदिका को बोला।
वेदिका!...अब किस उलझन में फंसी हुई हो। अब तो’ विभु आ चुका है, तुम्हारा बन जाने के लिये। ऐसे में मेरा मानना है कि” अब तुम्हें विभु के प्रेम निवेदन को स्वीकार कर लेना चाहिये। कहा नितांत ने और फिर वेदिका की आँखों में देखा। 
जबकि” उसकी बातों को सुनकर वेदिका के मन का संशय जाता रहा। तब तक उसके मम्मी-पापा भी बाहर निकल आए थे। वेदिका ने देखा कि” उनके आँखों में मौन स्वीकृति थी। बस’ वह उठ खड़ी हुई। हां, विभु चाहता था कि” दोनों किसी काँफी हट में चले, जहां नितांत शांति हो।
फिर तो’ दोनों कार में बैठे और ड्राइविंग शीट संभालते ही विभु ने इंजन श्टार्ट की और आगे बढ़ा दिया। बस’ कार बिला के गेट से निकली और सड़क पर सरपट दौड़ने लगी।  
शाम का धुंधलका वातावरण में छा चुका था और इसके साथ ही शहर पूरा रोशनी से जगमग करने लगा था। सड़क पर चलता हुआ ट्रैफिक, जुगनू की मानिंद लग रहा था और वेदिका के हृदय में भी तो प्रेम रुपी जुगनू जगमग करने लगा था।
हां, वो तो सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि” कभी विभु उसका अपना हो सकता है। जानती थी कि” वह श्यामली है, ऐसे में विभु जैसा साथी मिले, सौभाग्य ही तो था। तभी तो’ प्रेम के मधुर स्पंदन से पुलकित होकर उसने विभु के आँखों में देखा।
उस झील सी आँखों में देखा, जहां उसके लिये मधुर प्रेम का खजाना देखा। हां, ना जाने क्यों, विभु भी तो वेदिका के प्रेम में आकंठ डुब गया था। उसकी नजर भी तिरछी होकर बार-बार वेदिका को ही देख रही थी।
प्रेम गजब की चीज है, जो एक तो जल्द होता ही नहीं और अगर हो जाये, तो फिर पुछो ही मत। अपने प्रियतम में ही पूरा जहान दिखने लगता है। बस’ आँखें इतनी प्यासी हो जाती है कि” एक दूसरे को देखने में ही तल्लीन बन जाती है। किन्तु” यह एक ऐसी प्यास है, जो बुझता नहीं, बल्कि” निरंतर ही और अधिक वेग से तीव्र होता जाता है।
प्रेम का एहसास करना बहुत ही गजब की चीज है। जो कि” कभी भी तृप्ति को प्राप्त नहीं करता और अगर तृप्ति का भाव आ जाये, तो वो प्रेम हो ही नहीं सकता। प्रेम में पाने की आकांक्षा नहीं होती, अपितु अपना सर्वस्व निछावर कर देने की प्रबल इच्छा होती है।
हां, दोनों की आँखों में प्रेम का वही शुद्ध रुप झलक रहा था। किन्तु” साथ ही संतोष भी, क्योंकि” दोनों ने एक-दूसरे को पा लिया था और परिवार बालों की भी रजामंदी मिल गयी थी। 
अब तो बस’ प्रेम के बगिया को दोनों ही उत्साह पूर्वक सजाने को आतुर दिख रहे थे दोनों। एक-दूसरे की आँखों में उलझे हुए दोनों, प्रेम में भीगते जा रहे थे। अब जुबान को कहने की कोई विशेष जरूरत थी ही नहीं, क्योंकि” उनकी आँखें ही बात करने में तन्मय बन चुकी थी।
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समाप्त

 

Category:Stories



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Written by मदन मोहन" मैत्रेय