बेनाम

बेनाम

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30 May '24
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ये कैसी विषम परिस्थितियों का मैं
गुलाम बनकर रह गया
कुछ काम करना चाहा था
बस आम बनकर रह गया
भरोसा किया अपनी किस्मत पर
नाकाम बनकर रह गया
नाम करना चाहा था
पर कमबख्त बदनाम बनकर रह गया
नाकामी का चर्चा अब तो
खुलेआम बनकर रह गया
होठों से भी लगाया
खाली जाम बनकर रह गया
यारों की बदनीयती का
ईनाम बनकर रह गया
दिल में जो आग भड़की
तो इंतकाम बनकर रह गया
और अपने शहर में ही अब तो
बेनाम बनकर रह गया

पं संजय शर्मा 'आक्रोश'

Category:Poem



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Written by Pandit sanjay sharma aakrosh

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