वर्तमान में जिस प्रकार से वृद्धा आश्रम की संख्या बढ़ती जा रही है, वह भारतीय संस्कृति के आधार को चिंतित करने वाली ही कही जा सकती है, क्योंकि जिस भारत में पूर्वजों को देव की श्रेणी में स्थापित करके उसकी पूजा की है, उस भारत में उनकी दुर्दशा होना या उनको उपेक्षित करना कहीं न कहीं यही इंगित करता है कि हम परिवार की परिभाषा को भूलते जा रहे हैं। भारत में संस्कृति का आधार संयुक्त परिवार रहा है। इससे परिवार की भावी पीढ़ी को संस्कार भी मिलते थे। लेकिन आज यह कड़ी टूटती जा रही है और हमारे वृद्ध जाने अनजाने में बेसहारा हो रहे हैं। ऐसा नहीं है कि यह बेसहारा वृद्ध किसी गरीबी के कारण इस संत्रास को झेल रहे है, बल्कि उनके द्वारा पैदा किए बच्चे अच्छे कमाते हुए भी अपने पास नहीं रखते।
बुजुर्ग एक किताब की तरह होते हैं, जिसके प्रत्येक पृष्ठ पर प्रेरणा देने वाले मंत्र हैं। बुजुर्गों का जीवन अनुभव की खान है। उनके यही अनुभव परिवार को किसी भी परेशानी से निकालने का सामर्थ्य रखते हैं। वृद्ध आश्रम में जो बुजुर्ग रहते हैं, उनको कितनी परेशानी का सामना करना पड़ता है, यह हम नहीं समझ सकते, लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि जो बुजुर्ग हमारे घर में रहते हैं, उनकी भी कुछ इच्छाएं होती हैं, लेकिन इस अवस्था में भी बुजुर्ग यही सोचते हैं कि इच्छा बताने से कहीं बेटा और बहु नाराज न हो जाएं, इसलिए वह न चाहते हुए भी मौन धारण कर लेते हैं। हमको बुजुर्ग व्यक्तियों के इस मौन को समझने का प्रयास करना होगा। उनकी इच्छा किसी कोने में दबकर न रह जाएं, इसका ख्याल करना होगा। बुजुर्ग अगर मौन रहते हैं तो इसका मतलब यह कतई नहीं है कि कुछ चाहते नहीं हैं, वे निश्चित ही कुछ कहना चाहते हैं… लेकिन कहने से हम काम करेंगे, यह उचित नहीं, हमें उनके मौन को भी समझना होगा।
जिस घर में बुजुर्गों का सम्मान होता है, वहाँ दैवीय कृपा विद्यमान रहती है और जिस घर के बुजुर्ग परेशान रहते हैं, उस घर में जाने अनजाने में कई प्रकार की परेशानी बिना बुलाए आ जाती हैं। इन परेशानियों से बचना चाहते हैं तो हमें इस ज़मीन पर लाने वाले बुजुर्गों के प्रति अत्यंत गौरव करते हुए पूरा सम्मान का भाव रखना चाहिए। कहते हैं कि किसी व्यक्ति को जब बुजुर्गों का आशीष मिलता है तो उनके लिए सफलता के द्वार खुलते चले जाते हैं। इसलिए हम सभी संयुक्त परिवार के महत्व को समझने का प्रयास करें। तभी जीवन सार्थक कहा जाएगा।
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