जहां मन रम जाए
पसंद है हम सभी को,
रमणीय पहचान है उसकी,
हरीतिमा से पल्लवित
और कल कल बहता झरना
सौंदर्य होता हर कोना…।
पानी की धार का
अविरल और अनथक प्रवाह,
खींचता है अपनी ओर मन को
अपलक निहारती आखें
उस धार को जहां चमक है
प्राकृतिक और सूरज के तेज की
धार पर पड़ रही है किरण
जिससे असीमित होता सौंदर्य
जब सूर्य छिप गया बादलों की ओट
अपने रूप में आ गई वो किरण
जो चमक रही कुछ देर पहले
सौंदर्य स्थायी नहीं रहा
यही है जीवन का सच
यह बोध खो गया उस जगह
जहां तक सोच नहीं है हमारी
हम विचार करें सच क्या है
हमारा विचार व स्वभाव सच है
बाकी तो सब चला जाता है।
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