मुसाफिर

मुसाफिर मुहब्बत का

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17 May '24
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जब शहर जाकर स्कूल में दाखिला लिया

कुछ बनूंगा ये मन में ठान लिया

स्कूल आने के तो वैसे कई बहाने थे

कुछ दोस्त हमको भी नए बनाने थे

एक लडकी जिसे मैं पहचानता था

वह भी यहां पढ़ती है मैं जानता था

एक रोज स्कूल के बाहर खड़ा था उसके वेट में

पहली रोज दीदार हुआ उसका बाहर गेट में

नयन ही दौड़े उसके पीछे,मेरे वेश में

बड़ी ही प्यारी लग रही थी वो स्कूल की ड्रेस में

वो वक्त वो लम्हा खास हो गया था

वह उसी रोज मेरे दिल के पास हो गया था।

वह सुंदर चंचल रूपवती, ये वर्णन आंखो देखा है।

उसके कई किरदारों को अपने नयनों से देखा है।।

सुबह सवेरे मैं,उसके दर्शन का प्रण लेकर जाता था

यदि पा जाता दर्शन तो मन खुशियों से भर जाता था।

यदि किसी रोज न हो दर्शन तो मन अकुलाता था

ह्रदय उस रोज अथाह पीड़ा से भर जाता था।।

दिन तो कट जाता था रात काटनी पड़ रही थी

उसकी यादें मेरे पैरो की बेड़ी बन रही थी

उसका सपनो में प्रतिदिन दीदार हो रहा था

उसके प्यार को मेरा मन तलबगार हो रहा था

देखते देखते सालो बीत गए इंतजार के

दो पल न पा सका उसके प्यार के

यू सड़क पर आता जाता उन्हे देखता रह गया

सच्ची मुहब्बत अधूरी रहती है ये सोचकर सारा दर्द सह गया।

फिर एक दिन अचानक वो हमे मिल गए

उनको सामने देखकर, मेरे तो होश उड़ गए

हड़बड़ाहट में हम न जाने क्या क्या कह गए

देखा था एक झलक पर वो आंखो में रह गए

दिल उस रोज भी खुद से किए वादे पर कायम था

पहली बार जाना उनका हाथ कितना मुलायम था

मेरी खुशियों का उस वक्त कहा ठिकाना था

मेरे सामने तो मेरा पूरा जमाना था।

पर वो खुशियों की रात बहुत छोटी थी

वो अपने सहेलियों के साथ बैठी थी

उसके पास जाने को दिल मचल रहा था

ये दिल तब कहा संभाले संभल रहा था

दूर से ही उनको देखता रहा

पास कैसे जाऊ बस यही सोचता रहा।

कितना खुश था उस रोज, ये कैसे बता पाता उसे

दिल में कितना प्रेम है कैसे जता पाता उसे

एक पल फिर उनका वहा से जाना हुआ

मेरे पास रोक पाने का न कोई बहाना हुआ।

एक रोज fb पर एक request थी पड़ी

याद है उस रोज तारीख थी 13 फरवरी

देखकर ये दृश्य मन खुशियों से भर गया

लेकर प्यार की गाड़ी, मैसेंजर में घुस गया।

बातो ही बातो में सालो गुजर गए

इसी बीच एक रोज हम उनके घर गए।

यू तो सड़क से मकान की दूरी कम थी

लेकिन उसे नापने में मुझे जमाने लग गए।।

दोस्ती का रिश्ता अब मुझे निभाना था

अपनी शादी में उनको भी बुलाना था

ये रिश्ता एहसास के धागे का बना है

ये रिश्ता मुझे अपनो से भी सगा है।

वह निश्छल निर्मल देवी जैसी प्रतिमा की मूरत है

है नयन समान मृग के और चंदा जैसी सूरत है

अब इसके आगे मैं उस का क्या वर्णन कर पाऊंगा

उसके आगे जीवन आत्मसमर्पण कर जाऊंगा ।।

Category:Poetry



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Written by Satyam patel

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