तम्बाकू एक धीमा जहर..

युवाओं में बढ़ रही लत

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30 May '24
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भारत में योजनाबद्ध तरीके से युवा पीढ़ी को नशे की गिरफ्त में लाने का अघोषित अभियान सा चलता दिखाई दे रहा है। आज युवक ही नहीं, बल्कि युवतियाँ भी नशे की लत की शिकार होती जा रही हैं। देश में तमाम प्रतिबंध और चेतावनियों के बाद भी जिस गति से तंबाकू खाने का प्रचलन बढ़ रहा है। उससे यह संभावना व्यक्त की जा सकती है कि आने वाले समय में इसके खतरे और बढ़ेंगे। तंबाकू के खतरे को नजरअंदाज करना न सिर्फ भयानक होगा, बल्कि आत्मघाती भी होगा। तंबाकू जनित कुछ आंकड़ों पर भी गौर कर लें। विश्व स्वास्थ्य संगठन का आंकड़ा कहता है कि 1997 के मुकाबले तंबाकू निषेध कानूनों के लागू करने के बाद वयस्कों में तंबाकू सेवन की दर में 21 से 30 प्रतिशत की कमी आई थी, लेकिन इसी दौरान हाईस्कूल जाने वाले 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में तंबाकू का सेवन 60 प्रतिशत बढ़ गया था। दुनिया में होने वाली हर पांच मौतों में से एक मौत तंबाकू की वजह से होती है। तंबाकू जनित रोगों में सबसे ज्यादा मामले फेंफड़े और रक्त से संबंधित रोगों के हैं जिसका उपचार न केवल महंगा बल्कि जटिल भी है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि सन 2050 तक 2.2 अरब लोग तंबाकू या तंबाकू उत्पादों का सेवन कर रहे होंगे। इस आकलन से अंदाजा लगाया जा सकता है कि तंबाकू के खिलाफ कानूनी और गैर सरकारी अभियानों की क्या गति है और उसका क्या हश्र है। प्रत्येक आठ सेकंड में होने वाली एक मौत तंबाकू और तंबाकू जनित उत्पादों के सेवन से होती है। फिर भी तंबाकू के उपभोग में कमी न होना मानव सभ्यता के लिए एक गंभीर सवाल है। तंबाकू के बढ़ते खतरे और जानलेवा दुष्प्रभावों के बावजूद इससे निपटने की हमारी तैयारी इतनी लचर है कि हम अपनी मौत को देख तो सकते हैं, लेकिन उसे टालने की कोशिश नहीं कर सकते। इसलिए इसे आत्मघाती कदम निरुपित किया जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। यह मानवीय इतिहास की एक त्रासद घटना ही कही जाएगी कि कार्यपालिका, विधायिका तथा न्यायपालिका की सक्रियता के बावजूद स्थिति नहीं संभल रही। क्या तंबाकू के खिलाफ इस जंग में हमें हमारी नीयत ठीक करने की जरूरत नहीं है? अगर हम स्वयं सचेत हो जाएं तो ही इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है। लेकिन तमाम चेतावनियों के बावजूद हम अपना जीवन बर्बादी के मार्ग पर ले जाने की भूल कर रहे हैं।
चीन के बाद भारत में दुनिया के सबसे अधिक तंबाकू सेवन करने वाले लोग रहते हैं। तंबाकू सेवन करने वालों में बीड़ी पीने वालों का अनुपात 85 प्रतिशत है। सरकार तंबाकू के उत्पादन को नियंत्रित कर इसके दुष्प्रभाव को कम करना चाहती है, परंतु तंबाकू की खेती और तंबाकू उत्पादों से जुड़े उद्योगों में लगे लाखों किसानों-मजदूरों की आजीविका आड़े आ रही है। विशेषज्ञ तंबाकू से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए इस पर कर बढ़ाने का सुझाव देते रहे हैं। उनके अनुसार यदि देश में बीड़ी, सिगरेट पर लगने वाले कर को अंतरराष्ट्रीय मानकों के स्तर पर ला दिया जाए, तो लाखों लोगों को असमय मौत के मुंह में जाने से बचाया भी जा सकेगा। बीड़ी-सिगरेट से हो रहे भारी नुकसान के बावजूद देश में लोकप्रिय तंबाकू उत्पादों पर कर की दरें बहुत कम हैं। उदाहरण के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सिगरेट पर 65 से 85 प्रतिशत कर लगाने का सुझाव दिया है। यदि सिगरेट की खुदरा बिक्री पर कर को बढ़ाकर 78 प्रतिशत कर दिया जाए, तो तंबाकू से होने वाली 34 लाख मौतों को कई वर्ष तक टालने में सफलता मिलेगी। डेढ़ करोड़ लोगों को अकाल मौत से बचाया जा सकेगा और बीमारी पर होने वाले खर्च में भी कमी आ जाएगी।
तंबाकू और उसके उत्पादों के सेवन से पूरे शरीर पर विपरीत प्रभाव होता है। अनेक बार चेतावनी देने के बाद भी हम इसे छोडऩे का प्रयास नहीं करते। इसके कारण शरीर के प्रत्येक अंग पर इसका दुष्प्रभाव होता है। इससे पेट और गले का कैंसर हो सकता है। आपकी सेहत का राज छिपा है आपके दांतों में। अगर आपके दांत तंदुरुस्त नहीं हैं तो समझिए शरीर भी तंदुरुस्त नहीं। युवाओं में गुटखा खाने का चलन बढ़ता जा रहा है जिसका नतीजा दांतों और मसूढ़ों को भुगतना पड़ता है। लगातार गुटखे के सेवन से सबम्यूकस फाइब्रोसिस हो जाता है जिससे मुंह खुलना बंद हो जाता है। मुंह नहीं खुलेगा तो दांतों और मसूड़ों की सफाई कैसे होगी। मुंह नहीं खुलना कैंसर से ठीक पहले के लक्षण हैं। आजकल लोग 12 से 13 साल की उम्र में गुटखा खाना शुरू कर देते हैं जिससे उनके दांत अधेड़ लोगों की तरह घिस जाते हैं। दांतों पर लगा इनेमल घिस जाता है और दांत संवेदनशील बन जाते हैं। दांतों के पेरिओडोंटल टिश्यू (दांत की हड्डी) क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और दांत ढीले हो जाते हैं। भारत में दांतों की गंदगी और नियमित साफ-सफाई न होने के कारण 700 तरह के बैक्टीरिया खून में पहुंच जाते हैं जो दिल की बीमारी का कारण बनते हैं। लगातार तंबाकू के इस्तेमाल से दांत का रंग भी काला हो जाता है। तंबाकू को लगातार मुंह में रखने से गाल का वह हिस्सा गल जाता है जहां तंबाकू रहता है। तंबाकू में मौजूद निकोटिन और चूना गाल के ऊतक को जला देता है यह ऊतक जलकर कैंसर का कारण बन जाते हैं।
शारीरिक रूप से कमजोर युवाओं पर गुटखे का असर सबसे ज्यादा पड़ता है। संतुलित खान-पान न होने से गुटखा इन युवाओं में जहर का काम करता है। लगातार गुटखे के सेवन से दांतों के जरिए युवाओं में मुंह का कैंसर, पेट का कैंसर और दिल की बीमारी हो जाती है। निकोटिन ऐसा पदार्थ है, जो शरीर के लिए सिर्फ हानिकारक ही होता है। यह एक तथ्य है कि तंबाकू में चार हजार से अधिक हानिकारक रसायन होते हैं, इनमें से 18 से अधिक कैंसर कारक माने जाते हैं। हालांकि भारत में सिगरेट पीना लोग देर से शुरू करते हैं, लेकिन जब बात इसे छोडऩे की आती है तो इस मामले में भारतीय बहुत पीछे हैं। सिगरेट या बीड़ी की लत को छोडऩे के लिए केवल एक सख्त इरादे की जरूरत होती है। कहावत है कि हजारों मील का लंबा सफर एक कदम से शुरू होता है। सिगरेट-बीड़ी छोडऩे की राह में आपको संकल्प करने की आवश्यकता है उसके बाद मंजिल आपके सामने होगी।
तंबाकू सेवन करने व्यक्तियों पर इसका किस स्तर तक दुष्प्रभाव हो रहा है। इसका व्यक्ति को पता ही नहीं चलता। इसके सेवन करने वाले व्यक्तियों पर धीरे धीरे यह अपना शिकंजा कसता जाता है। प्रारंभ में शौक के रूप में तंबाकू खाने वाले व्यक्ति अंतत: इसकी लत का शिकार हो जाते हैं। यही लत व्यक्ति को कमजोर कर देती है और तंबाकू उसके ऊपर हाबी हो जाती है। जिस व्यक्ति में इसकी लत नहीं है, वह चाहे तो इसको आसानी से छोड़ सकता है, लेकिन लत वाले आदमी को इसे छोडऩा काफी मुश्किल है। इसके प्रभाव से शरीर का आभामंडल समाप्त हो जाता है। जब किसी खाने वाले व्यक्ति को देर तक तंबाकू खाने को नहीं मिलती तो उसका व्यवहार काफी चिड़चिड़ा हो जाता है। हमें यह बात ध्यान रखना होगी कि एकाग्रचित होकर काम करने वाले व्यक्तियों में इसकी लत नहीं होती। इसकी लत होने पर व्यक्ति अपने काम पर मन नहीं लगा सकता और वह हर क्षेत्र में असफल ही होता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि महिलाओं पर तंबाकू का ज्यादा बुरा असर होता है। महिलाओं में तंबाकू के लत के दो बड़े खतरे हैं। एक यह कि उनकी सुंदरता चली जाती है, दूसरे उन पर बांझ होने का जोखिम बढ़ जाता है। इसलिए यह निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि तम्बाकू किसी भी दृष्टि के हितकर नहीं है। इसमें धन की बर्बादी तो होती ही है, साथ ही जीवन भी राह भी कठिन हो जाती है। इसलिए तम्बाकू आज ही छोड़ें, क्योंकि कल कभी आता ही नहीं।

Disclaimer: The views expressed in this article are solely those of the author and do not represent the views of Ayra or Ayra Technologies. The information provided has not been independently verified. It is not intended as medical advice. Readers should consult a healthcare professional or doctor before making any health or wellness decisions.
Category:Health and Wellness



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Written by Suresh Hindusthani

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