काफ़ी समय बाद कोई फ़िल्म देखने के लिए आज वक्त निकाला। बाकी दिनों के बचे हुए वक्तों में भी ख़ैर कुछ ख़ास नहीं करती हूं, बस मन सा नहीं करता, सो नहीं देखती। लेकिन आज कुछ नया करने की इच्छा और धैर्य दोनों जुटा कर नए साल की पहली फ़िल्म देख ही डाली और फ़िल्म क्या समझ लो पौनें दो घंटे की कविता देख डाली। एक ऐसी कविता जहां एक औरत दूसरी औरत की दुश्मन नहीं है, जहां एक पुरुष दूसरे पुरुष से डरता या मुकाबला नहीं करता बल्कि भरोसा करना चाहता है। जहां प्यार मन में जलन या प्रतिशोध की कलुष के बीज नहीं बोता बल्कि कपड़े पर सुई से फूल काढ़ना सिखाता है। छूटा हुआ प्यार अगले की कड़वी यादें, अधूरे वादे, झूठे इरादों की जगह पुराने दिनों के कवितायें लिखने का कौशल याद दिलाता है और हमें याद दिलाती है बाबुषा की पंक्तियां कि "यदि वो तुम्हें सरल, सुन्दर और बेहतर नहीं बना रहा, तो ये और चाहे जो कुछ भी हो मगर प्यार नहीं है।" लेकिन कैनवास पर छपी इस कविता का हर एक क़िरदार बेहद बेहद प्यारा है व अगले के संग इतनी खूबसूरती से समझ व प्यार बांट रहा है कि देखने वालों का दिल और आँखें भर आएँ। एक सामान्य सी औरत है जिसे कोई विशेष रोग हो गया है। एक दिन वो अपने पति से सब कुछ छूटने से पहले एक आखरी बार फ़िर से अपना बचपन जी लेने की गुज़ारिश करती है और मेरे-आपके पिताओं सी शक्ल व कदकाठी का यह हीरो अपना झोला उठाए चल पड़ता है अपनी साधारण सी हीरोइन की उंगली थामें उसके अतीत में उसको जीता हुआ देखते। एक पुरुष है जो बड़ी ही बहादुरी से अपनी सिमरन को उसकी ज़िंदगी जीते हुए देखता है तो दूसरी ओर एक और सिमरन है जो अपने राज़ पर पूरा भरोसा जताते हुए उसकी स्कूल के दिनों की प्रेमिका का अपने ही घर में स्वागत करती है। हमारी असल ज़िंदगी की ही तरह इस कथा में भी परिस्थितियों के अतिरिक्त कोई विलेन नहीं। लेकिन यही तो मुश्किल है ना? विलेन हो तो लड़ भी लें, मगर हालातों से भी कोई जीता है कहीं।
यूं तो फ़िल्म कहानी और मन की इतनी परतें खोलती हैं कि क्या कहूं... लेकिन इन्सान जिस दौर से गुज़रता है, वही बात उसके मन तक उतरती है। किसी के ये कहने पर कि इस बीमारी को "तुम जिस तरह से हैंडल कर रही हो, I'm proud of you" नायिका का यह कहना लंबे वक्त तक याद रहेगा "मैं इसे हैंडल कर रहीं हूं या ये मुझे कहना मुश्किल है।" भरतनाट्यम की कक्षा में पुराने पाठ दुहराती हुई नायिका का भावविह्वल नृत्य भावुक हृदयों का मन मोह लेगा। और अचानक छुपकर दीवार के पास से झांकती, संभवत: यह इस जीवन का अंतिम नृत्य हो के विचार से भरी आंखें देख नि: संदेह देखने वालों का मन भर जायेगा। जब तक ये ना मालूम हो कि कौन सा नृत्य आखरी है, किसे कदर होती है? और जब मालूम हो तो कहां, किससे सबर होता है? एक जगह पर नायिका नायक से यह कहते हुए क्षमा मांगती है "तब मुझे नहीं पता था कि मैं तुमसे आखरी बार मिल रही हूं।" नायक मुस्कुरा कर माफ़ कर देता है लेकिन ऐसे नाज़ुक लम्हों के लिए क्या ज़िंदगी किसी को माफ़ कर पाती है?