आजकल तो विज्ञान के बलबूते मौसम का पूर्वानुमान बड़ी आसानी से लगाया जा रहा है। लेकिन, प्राचीनकाल में जब वैज्ञानिक तकनीकों का नितांत अभाव था, तब हमारे पूर्वज मौसम का बेहद सटीक पूर्वानुमान लगा लिया करते थे। यह तथ्य चौंकाने वाला बेशक हो, लेकिन हकीकत है। खास बात यह है कि मौसम को पूर्वानुमान लगाने में कई बार विज्ञान चूक जाता है, लेकिन, हमारे बुजुर्गों के मौसम सम्बंधी अनुमान बेहद अचूक रहे। हर वर्ष वैज्ञानिक मानसून आने से पूर्व वर्षा सम्बंधी पूर्वानुमान लगाया लगाते हैं । कई बार अनुमान सटीक निकलता है और अनेक बार यह गलत भी साबित होता है। लेकिन, वर्षा सम्बंधी बुजुर्गों के अनुमान हमेशा सच साबित हुए।
बड़े बुजुर्ग वर्षा का पूर्वानुमान प्राकृतिक लक्षणों के आधार पर भलीभांति लगाते रहे हैं। उनके अनुभवों के अनुसार यदि सूर्योदय के समय सूर्य की तेज धारीदार कांति हो तो 48 घण्टे के अंदर निश्चित तौरपर वर्षा होगी।
बुजुर्ग बिल्कुल साफ आकाश में तेज चमकते व झिलमिलाते तारों को भी वर्षा आने का सूचक मानते आए हैं।
बुर्जुग लोग तो आक के पौधों पर लगी डोडियों से भी वर्षा का सटीक अनुमान लगा लेते हैं। उनका आज भी मानना है कि यदि गाय रूंग (रोएं) पाड़ जाएं, चींटियां अपने अंडों को लेकर ऊपर की तरफ प्रस्थान करने लग जाएं, मेंढक टर्राएं, पपीहा पक्षी शोर मचाये, चिडिया बालू रेत में नहानें लगें, घर में रखा नमक, गुड़ आदि चीजें पसीजनें लग जायें, सण (रेशा) की खाट स्वतः अकड़ जाये, गोह (एक वन्य प्राणी) बोलने लगे, सूरज पर कुंडल छा जाये और चन्द्रमा पर जुलहरी बन जाए तो वर्षा निश्चित तौरपर चौबीस से अड़तालीस घण्टे में होगी।
बुजुर्ग लोगों का अनुभव कहता है कि बैया पक्षी वृक्ष के जिस तरफ घोंसला बनाता है, उसकी विपरित दिशा की तरफ से ज्यादा वर्षा होगी। जब मछलियां जल की सतह पर छलांग मारें, बिल्ली भूमि खोदे, सांपों का जोड़ा व पशु आकाश की ओर देखे, पालतू पशु बाहर जाने से घबराएं तो तुरंत ही वर्षा होती है। ये वर्षा के लिए शुभ शकुन माने जाते हैं। बुजुर्ग लोग ऐसा विश्वास करते हैं कि यदि रात्रि में दीपकीट दिखाई दे, कीड़े या सरीसृप घास के ऊपर बैठें तो भी तत्काल वर्षा होती है।
यदि आसमान बादलों से घिरा हो व पालतू कुत्ता घर से बाहर न जाए, तो वर्षा जरूर होगी। यदि आसमान में चील काफी ऊंचाई पर उड़ रही हो, तो भी वर्षा होने वाली होती है। मेढकों की टर्रराहट वर्षा का संकेत है। मोर का नृत्य तथा शोर भी वर्षा का सूचक है।
यदि वर्षा ऋतु के दौरान सायंकाल में गीदड़ों की चिल्लाहट सुनाई दे तो बिल्कुल वर्षा नहीं होती है। मकड़ी घर के बाहर जाला बनाए तो यह वर्षा ऋतु जाने का संकेत है।
इसी तरह, बुजुर्गों द्वारा वर्षा सम्बंधी अनुमान लगाने वाले अनेक मुहावरे एवं लोकोक्तियां भी बेहद प्रचलित हैं। गाँव-देहात के लोग वर्षा के सन्दर्भ में आज भी अपने अनुभवों, लोकोक्तियों एवं मुहावरों के रूप में प्रचलित अचूक अनुमानों, एवं सामान्य प्राकृतिक लक्षणों को अधिक अहमियत देते हैं। लोक संस्कृति में वर्षा/मानसून के मौसम को ‘सामण’ या ‘सावन’ या फिर ‘श्रावण’ माह के नाम से जाना जाता है। सुखद आश्चर्य की बात है कि पुराने लोगों व ऋषि-मुनियों, तपस्वियों, योगियों द्वारा अनुभव के बाद तय किए गए निष्कर्ष व अनुमान आज तक अचूक बने हुए हैं। वर्षा होने या न होने संबंधी लाक्षणिक कहावतें व लोकोक्तियां आज भी अक्षरशः खरी उतरती हैं। उन कहावतों व लोकोक्तियों की एक बानगी यहां प्रस्तुत है:
तपे जेठ।
वर्षा हो भरपेट।।
(अर्थात, ज्येष्ठ मास में जितनी ज्यादा गर्मी व लू पड़ेगी, उतनी ही ज्यादा वर्षा होगी। ज्येष्ठ मास तपने पर वर्षा भरपूर होती है।)
उतरे जेठ जो बोले दादर।
बिन बरसे ना जाए बादर।।
(अर्थात, यदि उतरते ज्येष्ठ मास मेंढक टर्राएं तो समझना चाहिए कि बादल बिना बरसे नहीं जाएंगे। इसका मतलब खूब वर्षा होगी।)
सावन पहली दशवीं जै रोशनी होए।
बड़ा सम्मत निपजे चिंता करने ना कोए।।
(अर्थात, यदि सावन लगते ही दसवीं तिथि को रोशनी नक्षत्र हो तो अच्छी वर्षा होगी और अकाल संबंधी कोई आपदा नहीं आएगी।)
पच्छम चमकै बिजली अर उद्गम चालै बाल।
कह जाट सुण जाटणी बिस्तर खटिया घाल।।
(अर्थात, पश्चिम दिशा में बिजली चमकने व पूर्व दिशा से हवा चलने पर जाट किसानी अपनी पत्नी से बिस्तर घर के अंदर लगाने के लिए कहता है, क्योंकि ये दोनों लक्षण वर्षा होने के हैं।)
पहली पवन पूर्व से आवे।
बरसे मेघ अन्न भर लावै।।
(अर्थात, यदि मानसून की पहली हवा पूर्व दिशा से आए तो समझना चाहिए कि खूब वर्षा होगी और खूब अन्न उत्पादित होगा।)
शनिचर की झड़ी।
कोठा ना कड़ी।
(अर्थात, यदि शनिवार के दिन वर्षा शुरू हो जाये तो समझिए कि लगातार कई दिन तक वर्षा होगी, जिससे मकान की छत को भी खतरा हो सकता है।)
पूस मास अन्धेरी तेरस चारों ओर बादल।
सावन पूनौमावस घरणी में छाग्या जल।।
(अर्थात, यदि पौष मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को पूरे आकाश में बादल छा जाएं तो श्रावण मास की पूर्णिमा को वर्षा जरूर होगी।)
सावन पहली पंचमी जै छुड़ाकै वार।
तूं कन्था हल जोड़िये मैं तेरी छकहार।।
(अर्थात, यदि श्रावण बदी पंचमी तिथि को तेज हवा चले तो बेहद अच्छी वर्षा होगी। ऐसे में किसान की पत्नी अपने पति से कहती है कि तुम खेत में जाकर हल जोतना, मैं तुम्हारे लिए खाना व बैलों के लिए चारा लेकर आऊंगी।)
फागुण बदी दोज जो बादल हों और बीज्ज।
बरसे सामण भादों रखियो साढ़ू तीज।।
(अर्थात, यदि फाल्गुन बदी द्वितीया को बादल उमड़ें व बिजली चमके तो भाद्रपद मास में खूब वर्षा होगी।)
सावन पहली पंचमी जै चमकैगी बज्जी।
तूं तो घाल ले डामंचा मैं झूलूंगी तीज।।
(अर्थात, यदि श्रावण बदी पंचमी को बिजली चमके तो खूब वर्षा होती है और अच्छी फसल होती है। ऐसे में एक पत्नी अपने किसान पति को फसल की रखवाली करने के लिए कहती है और स्वयं झूला झूलने की योजना बनाती है।)
आगे चन्द्र पीछे भान।
वर्षा होत ओस समान।।
(अर्थात, यदि विशेष ग्रह चालों में चन्द्रमा आगे व सूर्य पीछे रह जाये तो वर्षा न के बराबर होगी।)
माघ में गर्मी रहे जेठ ठंड हो जाए।
सावन में मसरिक बहे वर्षा हो न पाए।।
(अर्थात, यदि माघ मास में गरमी हो, ज्येष्ठ मास में ठंड हो जाये, श्रावण मास में पश्चिमी हवा चलने लगे तो वर्षा की संभावना न के बराबर होती है।)
आषाढ़ सुदी नौमी दिना ना बादल ना बीज।
हल तोड़ो ईंधन करो बैठे चाबो बीज।।
(अर्थात, यदि आषाढ़ सुदी नवमी को आकाश में न बादल हों और न बिजली चमके तो बिल्कुल वर्षा नहीं होगी। ऐसे में हल को तोडकर ईंधन बनाने और बीज को खाने के लिए प्रयोग करने को कहा जाता है।)
जै बहतरी गलै।
बहत्तर दिन ताहिं बूंद ना पडै़।
(अर्थात, यदि लगते ज्येष्ठ मास की प्रथमा को बूंदाबांदी हो व बादल छाएं तो बहत्तर दिल तक वर्षा बिल्कुल नहीं होगी।)
शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय।
तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए।।
(अर्थात, यदि शुक्रवार के बादल शनिवार को छाए रह जाएं, तो भड्डरी कहते हैं कि वह बादल बिना पानी बरसे नहीं जाएगा।)
सावन पहिले पाख में, दसमी रोहिनी होय।
महंग नाज अरु स्वल्प जल, विरला विलसै कोय।।
(अर्थात, यदि श्रावण मास के कृष्ण पक्ष में दशमी तिथि को रोहिणी हो तो समझ लेना चाहिए अनाज महंगा होगा और वर्षा स्वतः कम होगी, विरले ही लोग सुखी रहेंगे।)
पूस मास दसमी अंधियारी।
बदली घोर होय अधिकारी।
सावन बदि दसमी के दिवसे।
भरे मेघ चारो दिसि बरसे।।
(अर्थात, यदि पूस बदी दसमी को घनघोर घटा छायी हो तो सावन बदी दसवीं को चारों दिशाओं में वर्षा होगी। कहीं कहीं इसे यों भी कहते हैं-‘काहे पंडित पढ़ि पढ़ि भरो, पूस अमावस की सुधि करो।)
सावन सुक्ला सप्तमी, जो गरजै अधिरात।
बरसै तो झुरा परै, नाहीं समौ सुकाल।।
(अर्थात, यदि सावन सुदी सप्तमी को आधी रात के समय बादल गरजे और पानी बरसे तो और बूंदों की झड़ी लगे तो समय अच्छा बीतेगा।)
असाढ़ मास आठें अंधियारी।
जो निकले बादर जल धारी।।
चन्दा निकले बादर फोड़।
साढ़े तीन मास वर्षा का जोग।।
(अर्थात, यदि आसाढ़ बदी अष्टमी को अन्धकार छाया हुआ हो और चन्द्रमा बादलों को फोडकर निकले तो बड़ी आनन्ददायिनी वर्षा होगी और पृथ्वी पर आनन्द की बाढ़-सी आ जाएगी।)
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार, समीक्षक एवं स्तम्भकार हैं।)
स्थायी सम्पर्क सूत्र :
राजेश कश्यप
स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक
म.नं. 1229, पाना नं. 8, नजदीक शिव मन्दिर,
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वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक (स्वतंत्र)
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