आप सभी को नमस्कार। मैं हूँ जितेश वोरा। अगर किसी व्यक्ति में कोई श्रेष्ट गुण या कोई श्रेष्ट आदत है ,तो उसके बारे में किसी को बताने की जरुरत नहीं पड़ेगी। क्योंकि जो श्रेष्ट गुण या श्रेष्ट आदते है ,वो अपना परिचय दुनिया को खुद देगी।
मान लो ,आपके पास गुलाब का फूल है। तो आपको किसी को यह कहने की जरुरत नहीं पड़ेगी की मेरे पास गुलाब का फूल है। उसकी खुशबु दुनिया को अपने आप उसके बारे में बता देगी की आपके पास गुलाब का फूल है। ईश्वरचंद्र विद्यासागर समय के बड़े पाबंद व्यक्ति थे। कहते है की रोज सुबह जब वो घर से कॉलेज जाते ,तो रस्ते में मिलनेवाला हर व्यक्ति ,हर दुकानदार उनको देखकर अपनी घडी में समय मिला लिया करता। आप में जो भी श्रेष्ट है ,उसका बखान वो श्रेष्ट गुण खुद करेंगे। किसी बच्चे के १०० में से ९५ वे नंबर आये ,तो उसको किसी को यह कहने की जरुरत नहीं पड़ेगी ,की मैं पढ़ने में होशियार हूँ ,मैं महेनत करता हूँ। उसके गुण अपने बारे में खुद बता रहे है। उसके नंबर अपना परिचय खुद दे रहे है। लेकिन जीवन में जो भी श्रेष्ट है। उसे हमेशा बनाने के लिए आपको लगातार महेनत करनी पड़ती है। लेकिन देखा गया है की अक्सर व्यक्ति जो मिला है उससे संतुष्ट होने लगता है ,उससे समझोता करने लगता है। उसमे अपने आपको सिद्ध करने लगता है।
मान लो ,किसी बच्चे के १०० में से ७ नंबर आये और वो यह बताने लग जाये की नंबर क्यों कम आये ? वो उसका स्पष्टीकरण देने लग जाये ,इस पर अपनी राय देने लग जाये ,तो धीरे धीरे उसकी यह आदत समझोते में बदलेगी। जो मिला है ,उसी में वो काम चलाएगा। जो श्रेष्ट है ,उसकी तरफ वो नहीं जायेगा।
इसलिए जरुरी है की अपने मन में जो भी श्रेष्ट है ,उसकी तरफ हमेशा बढ़ा जाये। आपने सुना होगा की किसी रेस्टोरेंट का खाना बहुत अच्छा है। किसी दुकान की चाय बहुत अच्छी है। किसी दुकान पर लच्छी बहुत अच्छी मिलती है। जो भी श्रेष्ट चीजे है ,वो अपने बारे में खुद बोल रही है। मान लो , आपको किसी दिन किसी से मिलने जाना हो और ग्यारह बजे का समय फिक्स हुआ लेकिन अगर आप वहा साढ़े ग्यारह पहुंचते है ,आप कितने ही स्पष्टीकरण दे लेकिन यह तो तय है की आप देरी से पहुंचे है और आपकी देरी के कारण सामने वाले को आपका इंतजार करना पड़ा। इसी तरह आपकी ट्रेन अगर बारह बजे की है। आप सवा बारह रेलवे स्टेशन पहुंचते है और वहा पर आपको यह पता चलता है की आपकी ट्रेन स्टेशन से जा चुकी है। अब आप कितने ही बहाने बताये। कितनी सारी चीजे आप लोगो को समजाये , लेकिन आप की ट्रेन जा चुकी है और आप अपनी ट्रेन को मिस कर चुके है।
जो भी आपके जीवन में श्रेष्ट है ,अगर उसको आपको लगातार करना है ,तो सबसे पहले आपको अपने आप को समजाना होगा। अपने मन को सारी चीजे बतानी होगी की मुझे यह करना है ,मुझे यह चाहिए। मुझे अपने जीवन में हमेशा श्रेष्ट चाहिए। उसके बिना मेरे जीवन में कोई काम नहीं चलेगा। अगर एक बार आपका मन इस बात को समझ गया की इस व्यक्ति को श्रेष्ट से कम काम नहीं चलेगा या इस पर यह समझोता नहीं करेगा ,तो वो हमेशा अपनी तरफ से अपनी क्षमता से सारी चीजे आपको श्रेष्ट देगा और आपको इसके लिए मजबूर करेगा की आप हर काम श्रेष्ट करे। अच्छे से अच्छा करे। जो आपके भीतर सबसे अच्छा है ,वो बहार निकलकर आएगा। जो भी श्रेष्ट चीजे है ,उसका अभाव अगर आपको खेलने लग जाये ,आप उससे दुखी होने लग जाये और आपको यह मन में लगातार यह पीड़ा रहे की मुझे अपने जीवन में श्रेष्ट करना है ,तो यह मानके चलिए आपकी हर आदत ,आपका हर गुण हमेशा श्रेष्ट रहेगा और यह सारी चीजे अपने बारे में दुनिया को खुद बताएँगे।
अगर कोई व्यक्ति १०० मीटर रेस में चैम्पियन है। लेकिन अगर वो जो उसका समय है उसके पीछे रह जाता है। वो कितना ही कहे की मैं किस लिए पीछे रहा ,लेकिन वो चैम्पियन तो नहीं रहा। इसलिए अपने मन में हमेशा यह कोशिश करे की जितना आप श्रेष्ट कर रहे है ,उतना श्रेष्ट करे। इसे अपने जीवन की आदत बनाइए। इसे अपने जीवन में स्वीकार करे। अपने मन को समजाये। हमेशा इसके लिए पूरी महेनत करे।
लेखक : - जितेश वोरा
स्वतंत्र पत्रकार एवं लेखक :- जितेश वोरा
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