"जहाँ दिनभर रहती है
पहली किरण
जहाँ हर शब रहती है
पूनम की चाँदनी
जहाँ धूप जैसी सर्दियों में
ठंडे झोंके जैसे गर्मियों में
जहाँ पल-पल गिरती है
बारिश की पहली फुहार
जहाँ काँटे भी महकते हैं
जहाँ कौए भी चहकते हैं
बसन्त जहाँ से कहीं जाता नहीं
पतझड़ जहाँ कभी आता नहीं
जहाँ ग़म हँसाते नहीं
खुशियां जलाती नहीं
जहाँ हर सपना साकार होता है
जहाँ प्यार बस प्यार होता है
हो सके तो मुझे भी ले चलना वहाँ
वो जगह जो सिर्फ तुमको मालूम है
लोकेश शुक्ला “निर्गुण”