रहस्योद्घाटन: कैसे एक आदमी ने पूरे भारत को बनाया बेरोजगार

लॉर्ड मैकाले ने अंग्रेजी भाषा को भारत में प्रमोट किया, जिसके परिणामस्वरूप भारतीय भाषाओं का पतन हुआ। उसके काले कानूनों को ही आज के वक्त में बेरोजगारी की मूल वजह माना जाता है।

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11 Oct '23
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जलती ट्रेनें, सड़कों पर पथराव, आगजनी, पुलिस-प्रशासन के साथ अभद्रता, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाते प्रदर्शनकारी युवा... ये वो तस्वीरें हैं, जो बेरोजगारी को बयां करने के लिए काफी हैं... लेकिन ये बेरोजगारी आज की नहीं है, ये बेरोजगारी है उस वक्त से, जब अंग्रेजी शासन देश में लागू था... शायद देश के नसीब में ये बेरोजगारी अंग्रेजों के बनाए एक काले कानून से ही आई थी... 

लेकिन यहां सवाल ये उठता है कि आखिर अंग्रेजों के उस वक्त के कानून से, आज की बेरोजगारी का क्या लेना-देना है?... तो इसे जानने लिए हमें इतिहास के पन्ने पलटने होंगे और जाना होगा साल 1835 में, जहां आपको लॉर्ड मैकाले नामक अंग्रेजी अफसर का जिक्र मिलेगा, जो कि भारत में फैली बेरोजगारी के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार माना जाता रहा है...

2 फरवरी, साल 1835

ये वो दिन था... जब अंग्रेजों ने देश में ऐसा कानून लागू किया, जिसके आधार पर संस्कृत भाषा पर प्रतिबंध लगा और 7 लाख 32 हजार गुरुकुल बदहाली की तरफ धकेल दिए गए... वो गुरुकुल, जहां संस्कृत भाषा में पढ़ाई होती थी... जिनके चलते उस वक्त 97% साक्षरता हुआ करती थी... जहां धातु शास्त्र, चिकित्सा, विज्ञान जैसे शास्त्रों का ज्ञान दिया जाता था... 

लेकिन उस वक्त एक अंग्रेजी अफसर के देश में अंग्रेजी लागू करने के एजेंडे ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था को तोड़कर रख दिया... हालात ये रहे कि उस वक्त की अंग्रेजी आज भी हमें रची-बसी हुई है और हमारी वैदिक भाषा का पतन हो गया है... कहा जाता है कि किसी देश को अगर बदहाल करना है तो उसकी संस्कृति और भाषा को भ्रष्ट कर दीजिए... कुछ ऐसा ही किया लॉर्ड मैकाले ने....

ये वो नाम है... जिसके बनाए एक विवरण पत्र ने भारत से संस्कृत का पतन शुरू हो गया और अंग्रेजी भाषा ने अपनी जड़ें जमानी शुरू कर दीं... हालांकि ये सब इतना आसान नहीं रहा था, अंग्रेज इसके लिए कई सालों से कोशिश कर रहे थे... और इसके लिए उन्होंने कई चालें चलीं... इनमें से प्रमुख था... साल 1813…

जब, अंग्रेजी शासन ने कहा था कि वो कथित असभ्य और अशिक्षित भारतीयों को सभ्य और शिक्षित बनाएगा और इसका जिम्मा लिया था ईस्ट इंडिया कंपनी ने... अंग्रेजों का वादा था कि वो भारत में शिक्षा व्यवस्था के लिए सालाना 1 लाख डॉलर खर्च करेंगे... लेकिन जब बात आई इस वादे को पूरा करने की तो लॉर्ड मैकॉले एक काले कानून को लेकर सामने आया…

थोमस बैबिंगटन मैकाले, जो साल 1834 में पहली बार भारत आया था... उसे यहां आते ही ब्रिटिश शासन ने जनरल कमेटी ऑफ पब्लिक इंस्ट्रक्शन का मुखिया बना दिया था... वह इतना धुर्त था कि उसे लगता था कि भारतीय संस्कृति और भाषा को तबाह करके ही अंग्रेजी शासन की जड़ें और गहरी की जा सकती हैं... उसका मानना था कि अंग्रेजी भाषा ही केवल विकास का आधार हो सकती है…

जब वह भारत पहुंचा तो यहां पहुंचकर सबसे पहले उसने भारत का मजाक उड़ाया... उसने कहा कि समुद्र की तीन महीने की यात्रा के बाद जब जमीन पर पैर रखा तो खुशी मिली... लेकिन ऐसे देश में आकर बिल्कुल खुशी नहीं हुई... ये कैसे लोग हैं, काले चेहरे, सफेद पगड़ियां और ढीले-ढाले और गंदे कपड़े, यहां के पेड़ हमारे जैसे नहीं हैं, यहां की हवा ऐसी है जैसे दम घोंट रही हो... यहां के घर बेहद अजीब हैं…

मैकाले भारत आते ही अपने इरादों को पूरा करने में लग गया... और साल 1835 में उसने वो अपना चर्चित भाषण दे डाला जिसे दुनिया आज मैकाले मिनट के नाम से जानती है...

मैकाले ने अपने भाषण में जो बातें कही थीं, वो इस प्रकार हैं...

1. अंग्रेजी, संस्कृत और अरबी से कहीं ज्यादा शुद्ध और सभ्य भाषा है...

2. अंग्रेजी, पश्चिमी भाषाओं में सर्वाधिक प्रभावशाली है, चूंकि भारत पर अंग्रेजों का शासन है... इसलिए भारत में अंग्रेजी भाषा का प्रचार प्रसार होना चाहिए, ताकि भारत में व्यापार करने में आसानी रहे...

3. लॉर्ड मैकाले मानता था कि अंग्रेजी पढ़कर भारतीय लोग विश्व से जुड़ सकेंगे और उन्हीं की तरह सभ्य और क्लचर्ज्ड हो सकेंगे। 

4. हर भारतीय अंग्रेजी भाषा पढ़ना चाहता है, क्योंकि उनके मुताबिक वे भी मानते हैं कि अंग्रेजी के मुकाबले संस्कृत और अरबी भाषा निचले तबके की भाषा हैं...

5. अंग्रेज अगर चाहें तो भारत में भी अंग्रेजी भाषा के जानकारों का प्रादुर्भाव हो सकता है...

6. अंग्रेंजी भाषा के प्रचार प्रसार के बाद ही ये तय हो सकेगा कि भारत में ऐसे लोग पैदा हों, जो रंग और खून से तो भारतीयों हों, लेकिन वो सोच से पूरे अंग्रेज हो…

अपने भाषण के दौरान लॉर्ड मैकाले ने ये तक कह दिया कि अगर उसके प्रस्ताव को ब्रिटिश शासन नहीं मानता तो वो भारत से इस्तीफा देकर वापस इंग्लैंड चला जाएगा... भारत के उस वक्त के गवर्नर जनरल विलियम बेंटिक ने उनके प्रस्ताव में खास रूचि नहीं दिखाई लेकिन बावजूद इसके उन्होंने दवाब में आकर ये प्रस्ताव पारित कर दिया…

इस प्रस्ताव के पास होने के बाद, एक बड़ा वर्ग, जो अंग्रेजी भाषा नहीं सीख सका, उसे रोजगार की समस्या आने लगी... क्योंकि मैकाले के मुताबिक, उसे ऐसे लोग चाहिए थे, जो रंग से तो भारतीय हों लेकिन उनके तौर-तरीकों में अंग्रेजी की झलक दिखे... उसकी इस कोशिश में मैकाले काफी हद तक सफल भी रहा... क्योंकि जब हम वर्तमान परिस्थितियों की समीक्षा करते हैं तो पाते हैं कि ज्यादातर लोगों का अंग्रेजी की तरफ रूझान हैं... और इसकी वजह एकदम साफ हैं कि अगर आप अंग्रेजी भाषी हैं तो आपके पास रोजगार के अवसर अधिक हैं और लोगों की नजर में आप हिंदी भाषा लोगों के मुकाबले अधिक क्षमतावान आंके जाते हैं...

मैकाले ने जिस नजरिए से वह कानून लागू किया था, वह आज की बेरोजगारी का जिम्मेदार इसलिए क्योंकि आज भी एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो हिंदी भाषी है और अंग्रेजी भाषा पर उनकी पकड़ अपेक्षाकृत कम है या नहीं है... ऐसे में जब कंपनियां अंग्रेजी भाषी लोगों के चयन को ज्यादा महत्व दे रही हैं तब हिंदी भाषी चाहें वो अधिक योग्य हों, लेकिन रोजगार की दौड़ में पिछड़ते दिखाई पड़ते हैं... ऐसी कुछ वजहें हैं जिनके चलते ये कहना गलत नहीं होगा कि लॉर्ड मैकाले ही वह पहला व्यक्ति है जो भारत में बढ़ती बेरोजगारी लाने के लिए उत्तरदायी है…

आज न तो भारत अंग्रेजों का गुलाम है, न ही लॉर्ड मैकाले है... लेकिन अगर अंग्रेजों के भारत छोड़ने के बाद कुछ बाकी रह गया है तो वो है अंग्रेजी भाषा का भारत में होना और संस्कृत जैसी भाषा का विलुप्त होना, जो भारतीयों के सामने सवाल खड़ा करती है कि क्या फिर कभी वैदिक भाषा का पुनर्त्थान हो पाएगा?

Category:History



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Written by Kapil Chauhan