महानगर के पास मन नहीं

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12 Jun '24
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महानगर के पास मन नहीं 
न ही मनोविज्ञान
संवेदनशून्यता बन गई
है इसकी पहचान

महानगर का हर मनुष्य ज्यों
मूल्यवान रोबोट
तना तनावों में रहता वह
परिजन करते चोट
जारी रहता जिजीविषा का
पल-अनुपल अवसान

महानगर के पास मन नहीं, न ही मनोविज्ञान 

सृजन नहीं उत्पादन में रत
रहता हर बीमार
उर्वशियों के सम्मुख सकता
हर आवरण उतार
लेती लूट निमिष भर में ही
इसे कृत्रिम मुसकान

महानगर के पास मन नहीं, न ही मनोविज्ञान 

यांत्रिकता कर देती इसकी
हर अच्छाई न्यून
अम्बर से अवसाद बरसते
खिलें न हृदय प्रसून
आरोपित संस्कारों से हर
आनन रहता म्लान 

महानगर के पास मन नहीं, न ही मनोविज्ञान।

महेश चन्द्र त्रिपाठी

Category:Poetry



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Written by Mahesh Chandra Tripathi