इरादा जो गर तेरा मुझको बता दोगे,
मैं तुम्हारे लिए जहां को भूल जाऊँगा,
झांककर इन नयनों के सागर में, पिया,
चाहत की ऊँची लहरें, मैं डूब जाऊँगा।।
इरादा जो गर तेरा हो इश्क करने की,
इबादत में तारों की महफिल सजाऊँगा,
नजर से मिलाए नजर सफर में यूं ही,
ये वादा रहा, मैं सदा ही मुसकुराऊँगा।।
इरादा जो तेरा, सफर में जता दोगे,
मुहब्बत के कुसुम से बगिया सजा दोगे,
असर जो होगा, रहूंगा यूं ही सजदे में,
मधुर कोई रागिनी ले सदा ही गुनगुनाऊँगा।।
गर हो इरादा तेरा मुहब्बत के आशियाने की,
तोड़कर आसमां से तारे इसमें सजाऊँगा,
थामकर सफर में तेरी इन नाजुक कलाईं को,
अधर पे तेरे शबनमी बुंदे, इसको चुराऊँगा।।
गर हो इरादा इश्क की दासता लिखने की,
सनम, सच इसमें हसरत की स्याही उमेरूंगा,
लिखूंगा मन के सपने, उम्मीदों से घेरूंगा,
फिर संग-संग डगर पर कदमों को बढ़ाऊँगा।।
गर जो हो इरादा असर चाहत का जगाने की,
पलकें बिछाऊँगा इन हसी सपनों के स्वागत में,
शामिल तुझे कर लूंगा सनम जीने की आदत में,
जगाकर प्रेम की लहरी धून नया सा बनाऊँगा।।