दैत्य नमुचि ने घोर तप किया, ब्रह्मा वर देने आए।
कहा नमुचि ने- अस्त्र-शस्त्र से, कोई मार नहीं पाए।।
शुष्क पदार्थ न मारे मुझको, और आर्द्र का हो न असर।
ब्रह्मा के 'तथास्तु' कहते ही, माना उसने हुआ अमर।।
ब्रह्मा से वरदान प्राप्त कर, अत्याचार लगा करने।
देवासुर संग्राम छिड़ा तो, देव लगे उससे डरने।।
वह न किसी के मारे मरता, अस्त्र-शस्त्र सब थे निष्फल।
या तो सब हथियार शुष्क थे, अथवा वे थे सभी तरल।।
देवों की दयनीय दशा जब, ब्रह्मा सहन न कर पाए।
दौड़ नमुचि के बध की अद्भुत, युक्ति बताने वे आए।।
कहा- समुद्र फेन से मारो, तभी दैत्य मर पायेगा।
फेन शुष्क या आर्द्र नहीं है, अतः नमुचि मर जाएगा।।
फेन समुद्री एकत्रित कर, उससे नमुचि गया मारा।
साथ जन्म के मृत्यु जुड़ी है, मरता है हर हत्यारा।।
कथा 'भागवत' में आती यह, सुनकर ही मैंने जाना।
फेन शुष्क या आर्द्र न होता, विज्ञानी ने पहचाना।।
महेश चन्द्र त्रिपाठी
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