45 साल पहले....
घड़ी ने 7 बजने की सूचना दी, सूरज भी अपनी रौशनी पूरे तरीके से आसमान में फैला चूका था पर ना जाने क्यों थोड़ा अलसाया हुआ सूरज आज चश्मा पहनकर नहीं आया इसलिए उसे मालूम नहीं कि अपनी रौशनी 10 साल की सोती हुई भक्ति की खिड़की तक नहीं पहुंचानी है। एक तरफ भक्ति की आँखों में खिड़की से आती रौशनी चुभी और दूसरी और माँ झल्लाते हुए कमरे में आयी। और गुस्से में कहने लगी "भक्ति तेरा क्या करूँ मैं? तु जितने भी जल्दी सो जा, उठना तो तुझे देर से ही है। अब एक काम कर तू सोती रह, तेरी जगह स्कूल मैं चली जाती हूँ"। ये सब सुनकर चन्दन जी हँसते हुए कमरे में आये, भक्ति पर तो हमेशा की तरह माँ की बातों का कोई असर ही नहीं हुआ था।
हर बार की तरह भक्ति मुस्कुराते हुए उठी , उसकी मुस्कुराहट में उस ताली की गूँज थी जो आँगन में बैठी चिड़िया को उड़ाने के लिए बजायी जाती है। और अगर अभी भक्ति का बस चले तो इस मुस्कुराहट भरी ताली से आँगन में खिले सूरज को वापस बिस्तर पर सूला दे। अगले ही पल भक्ति ने चादर तानकर अपने आप को वापस सोने की हिदायत दी , पर घड़ी से आ रही टिक-टिक की आवाज़ उसे ऐसा प्रतीत करा रही थी कि मानो घड़ी रानी भी अपनी राजकुमारी को वापस ना सो कर तैयार होने की प्रार्थना कर रही हो।
10 साल की भक्ति अपने मम्मी-पापा और जुड़वाँ भाइयों के साथ आरंग में रहती थी। सफेल आसमान के नीचे हरी-भरी धरती पर एक छोटा सा विकासशील कस्बा आरंग। जैसे एक नयी-नयी माँ अपने दूध पीते बच्चे को बड़े चाव से तैयार करती है , मानो जैसे लगता है प्रकृति भी अपने श्रृंगार से रोज़ नए सूरज के साथ आरंग को सजा रही हो। आरंग में नदी बहती थी 'वसुंधरा नदी', जिसे लेकर लोगों में एक मान्यता थी। लोगों का कहना था "पिछले जन्म में बिछड़े प्रेमी यहीं आकर मिलते है"। इस बात में कितना सच था और कितना झूठ ये तो पता नहीं पर हां नदी के ऊपर बना विशाल पुल , जो अंग्रेज़ो के होने की गवाही देता था , दो रास्तों को जरूर मिलाता था।
आरंग में पहाड़ नहीं थे पर दूर के पहाड़ यहाँ से छोटे-छोटे ऐसे दिखायी पड़ते थे मानो शिव जी के गण आसमान से प्रकृति के सौंदर्य दर्शन कर रहे हो। इस विकासशील कस्बे की सबसे लुभाने वाले दृश्यों की बात करें तो आप यहाँ गोधूलि बेला में धूल उड़ाती गायों का झुण्ड भी देखेंगे और दूसरी तरफ कैफ़े में बैठ मोमोज़ खाने वाली प्रजाति को भी , यहाँ आप बड़ी गाड़ी के पीछे भागते कुत्तों को भी देखेंगे और हर तीसरे घर में गाड़ी भी। यहाँ सुबह के 4 बजे गोबर उठाती औरतें भी देखेंगे और गाय पालने वाले ग्वाले भी और उनके होनहार वो बच्चे भी जिन्हें गोबर से तो बदबू आती है और वो agriculture की पढ़ाई कर रहे है।
जिस तरह मौसम की पहली बारीश प्रकृति के साथ-साथ मन और आत्मा को भी अच्छी लगती है , वैसे ही भक्ति के दोनों भाई पहली बार स्कूल जाने के लिए तैयार हो चुके थे। 4 साल के अमन और अनिकेत स्वभाव से चंचल तो थे ही पर माँ ने अपना थोड़ा खौफ भी बना रखा था। भक्ति क्लास 5 में पढ़ती थी और अमन-अनिकेत का एडमिशन भी उसी के स्कूल में हुआ था। तीनों बच्चों को चतुर्वेदी जी अपनी कार में रोज़ स्कूल छोड़ने जाते। स्कूल के रस्ते में वसुंधरा नदी पड़ती थी। भक्ति जब भी वहां से गुजरती नदी को देखकर ऐसे प्रणाम करती मानो जैसे मंदिर में बैठी देवी को प्रणाम कर रही हो। चन्दन और प्रेमा चतुर्वेदी [ भक्ति की माँ ] को ये बात बहुत अटपटी लगती कि उनकी अबोध बेटी क्यों नदी को प्रणाम करती है।
वसुंधरा नदी को लेकर कभी कोई धार्मिक मान्यताएं नहीं थी। अंग्रेज़ो से लगाकर आज तक के आम जनों ने भी नदी को नदी की तरह ही देखा था, इन सब के बीच भक्ति का उसे यूँ प्रणाम करना उसके माता-पिता और दोस्तों के लिए आश्चार्यजनक था। प्रेमा और चतुर्वेदी जी ने कितनी बार भक्ति से पूछने की कोशिश कि वो क्यों नदी को प्रणाम करती है ? पर भक्ति कभी इस बात का जवाब नहीं दे पायी। और देती भी क्या 10 साल की नासमझ लड़की को ये कभी समझ ही नहीं आया।
थोड़ी देर में गाड़ी 'Gurukul : The Educational Hub' स्कूल के सामने रुकी। स्कूल का पहला दिन होने के कारण प्राइमरी स्कूल के टीचर्स गेट पर ही खड़े थे। अमन और अनिकेत की टीचर चतुर्वेदी जी से मिलकर उन दोनों को क्लास में ले जाने लगी। जीवन के पहले युद्ध में पहुंचे प्राइमरी स्कूल के लगभग सारे बच्चे रो रहे थे और रोते भी क्यों ना , इस युद्ध में पहला दुःख था माता-पिता से 3 घंटे के लिए मिला वियोग और जो नहीं रो रहे थे उनमें से दो अमन और अनिकेत थे। एक उत्साहभरी मुस्कुराहट के साथ दोनों चल पड़े युद्धभूमि रूपी क्लास में।
ये सब देखकर चतुर्वेदी जी को भक्ति के बचपन की याद आ गयी , कितना रोई थी वो पहले दिन। अब तक भक्ति भी क्लास में जा चुकी थी। सबसे पहले वो जा कर खुशबु से मिली। खुशबु और भक्ति शुरू से ही साथ पढ़ते थे और दोनों ने अपनी दोस्ती को एक नाम भी दिया था 'best friend forever ', कैसे रोज़ सुबह सूरज ज़बरदस्ती भक्ति की खिड़की पर आकर बैठ जाता है और किस तरह खुशबु का भाई उसकी हर छुपायी चॉकलेट ढूंढ-ढूंढ कर खा जाता है , ऐसे ही एक-दूसरे की हर छोटे-बड़े दुःख से अच्छी तरह वाकिफ़ थे दोनों।
पर भक्ति क्यों वसुंधरा नदी को प्रणाम करती है ? ये बात उसके मम्मी-पापा के लिए चिंता का विषय बन चूका था .....
To Be Continued in Next Chapter….