उस चाँद को देखकर,
ऐसा प्रतीत होता है,
कितना परिपूर्ण है यह प्रेम में।
तुम्हारे रिक्तता को,
शून्य नहीं होने देता।
यह हमारे बीच में,संवाद का जरिया है।
ये शरद का चांद,
प्रेम का साक्षी है हमारे,
यूँ किसी कोने में,
उलझन में फसें शायद तुम भी,
इसी सोच में होगे।
ऐसे ही प्रेम की सारी पीड़ाएँ,
मैंने कह दी हो तुमसे।
बिना कहें तुमनें,
मेरे ह्रदय वेदना को कैसे सुन लिया?
क्या प्रेम ऐसा ही होता हैं।
लेखक, पत्रकार
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