मनुजता-मुदिता के पर्याय : डाॅ. ओउमप्रकाश अवस्थी

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05 Jul '24
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" इदमन्धतमः कृत्स्नं जायेत भुवनत्रयम्

  यदि शब्दाहव्यं ज्योतिरासंसारं न दीप्यते ।"

              महाकवि दण्डी ने अपने प्रख्यात ग्रन्थ " काव्यादर्श " में लिखा है कि शब्दात्मक ज्योति की अनुपस्थिति में यह संसार अज्ञानता के घने अंधकार में डूबा होता और पृथ्वी पर मनुष्य नाम की सृष्टि नहीं हो पाती। शब्दात्मक ज्योति के वाहकों की सुदीर्घ शृंखला की एक अत्यंत महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में सुस्थापित हो चुके डा. ओउमप्रकाश अवस्थी के विराट व्यक्तित्व अथवा कालजयी कृतित्व के बारे में कुछ कहना मुझ अल्पज्ञ की सामर्थ्य से परे है। मैं तो मात्र उनके श्रीचरणों में प्रणति निवेदनार्थ उनकी ही शब्दात्मक ज्योति से चन्द स्फुल्लिंग सँजोकर, समेटकर स्वयं को धन्य मानता हूँ, मानता रहूँगा। मुझे याद आ रही हैं उनके- और हम सबके भी- आराध्य, भारतीय साहित्य के शाश्वत सृजेताओं में अग्रगण्य 'अज्ञेय' की ये पंक्तियाँ-

" काल के सवालों का

नहीं है मेरे पास कोई जवाब

जो उसे या किसी को दे सकूँ ।

इतना ही कि ऐसी अतर्कित चुप्पियों में

मिल जाती हैं जब-तब छोटी-छोटी अमरताएँ

जिनमें साँस ले सकूँ ।"

( 'सागर मुद्रा' में संग्रहीत 'गाड़ी चल पड़ी' से )

            प्रत्येक रचनाकार की अपनी एक पृथक प्रकृति और मनोरचना हुआ करती है जिससे उसके स्वभाव का अनुमान किया जा सकता है। कोई रचनाकार आत्मस्थ ( subjective ) होता है, तो कोई वस्तुनिष्ठ (objective )। कोई इन दोनों से भिन्न अर्थात तटस्थ ( indifferent ) भी हो सकता है, तो किसी में आत्मनिष्ठता और वस्तुनिष्ठता का सन्तुलित समवाय ( multitude ) भी हो सकता है। इस दृष्टि से डा. ओउमप्रकाश अवस्थी के स्वभाव को 'अहम्' और 'इदम्' का एकीभूत रूप या समवाय कहा जा सकता है।

             समवाय कहना इसलिए अधिक उपयुक्त होगा क्योंकि इसी 'समवाय' नाम से सन् 1972 ई. में उन्होंने जिस फतेहपुर जनपद विशेषांक का कुशलतापूर्वक सम्पादन किया था, उसकी कीर्ति की सुगंध जनपद में आज भी महसूस की जाती है। उसका अनुनाद आज भी विद्वज्जनों के कर्ण-कोटरों में गुंजरित होता है। सन् 1972 ई. डा. अवस्थी के जीवन का अत्यंत महत्वपूर्ण वर्ष है क्योंकि इसी वर्ष उनका शोध प्रबंध " नई कविता : रचना प्रक्रिया " प्रकाशित हुआ था और वे साहित्य - जगत में अपनी उल्लेखनीय पहचान बनाकर, अपने पूर्ववर्ती रचनाधर्मियों से आशीर्वाद पाकर प्रगतिपथ पर अग्रसर हुए थे। तब से अब तक डा. अवस्थी की शब्द-साधना सतत प्रवहमान है।

       " समवाय " के अत्यंत चर्चित तथा प्रशंसित होने से प्रोत्साहित होकर डा. अवस्थी ने सन् 1984 ई. में "अनुवाक " शीर्षक से फतेहपुर जनपद के पुरातत्व, इतिहास, साहित्य, संस्कृति एवं कला की समृद्ध विरासत को सँजोने का भगीरथ प्रयत्न किया। परिणामस्वरूप "अनुवाक " एक सन्दर्भ ग्रन्थ के रूप में न केवल राष्ट्रीय वरन् वैश्विक फलक पर प्रतिस्थापित हुआ। विद्वानों के बीच उसकी बढ़ती माँग के कारण सन् 2015 ई. में दूसरा संस्करण प्रकाश में लाना पड़ा।

एम.ए. ( हिन्दी ), पीएच.डी. और डी.लिट्. की शैक्षिक उपाधियों से विभूषित डा. अवस्थी एक ख्यातिलब्ध आलोचक के रूप में समादृत हैं। उनकी अब तक प्रकाशित आलोचना की सात कृतियों के नाम कालक्रमानुसार इसप्रकार हैं-

1- नई कविता : रचना प्रक्रिया ( 1972 )

2- नई कविता के बाद ( 1974 )

3- आलोचना की फिसलन ( 1976 )

4- अज्ञेय कवि ( 1982 )

5- अज्ञेय गद्य में ( 1986 )

6- इलियट का काव्यशास्त्र ( 1998 )

7- काव्यपुरुष अटलबिहारी वाजपेयी ( 2002 )।

           30 जून 1998 ई. को महात्मा गाँधी परास्नातक महाविद्यालय फतेहपुर के हिन्दी विभागाध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त हो चुके डा. अवस्थी निःसंदेह अज्ञेय-साहित्य के गम्भीर अध्येता रहे हैं। उन्होंने अज्ञेय के कवि तथा गद्य-लेखक दोनों रूपों पर दो अलग-अलग पुस्तकों का प्रणयन कर उनके प्रति विशेष आदरभाव व्यक्त किया है। अज्ञेय ने स्वतंत्रता की देहरी पर खड़े भारतवर्ष को चेताते हुए " त्रिशंकु " ( 1945 ) में लिखा था, “ हमें एक आलोचक राष्ट्र का निर्माण करना है। ....... जब तक हमारी बुराइयों की तीव्र आलोचना नहीं होगी, तब तक हमारा ध्यान उनको दूर करने की ओर नहीं जाएगा।”

             26 जुलाई 1937 को फतेहपुर जिले के मोहार ग्राम में माता श्रीमती सावित्री देवी एवं पिता पं. जगन्नाथ प्रसाद अवस्थी के आँगन में जन्मे-पले डा. अवस्थी एक आत्मचेतस रचनाकार हैं। आत्मचेतस होने का अर्थ है- अपनी आत्मा में अर्थात अपनी सर्वोच्च सम्भावना में प्रतिष्ठित होना; अपने वास्तविक स्वरूप के साथ एकाग्र, अनन्य भाव से जीना। जानकीप्रसाद श्रीवास्तव 'शाश्वत' के अनुसार, " आपका लेखन यथार्थ की धरती को छूता हुआ होता है। .... आपकी समालोचना की भाषा दोटूक, सटीक और पक्षपात तथा आडम्बर से रहित होती है। ..... समालोचना क्षेत्र में आपका योगदान एवं श्रम स्तुत्य है।" ( फतेहपुर जनपद की समालोचनात्मक पृष्ठभूमि : फतेहपुर का काव्यप्रकाश )।

            अपनी विलक्षण सूझबूझ तथा विषय पर पैनी पकड़ के बल पर डा. अवस्थी गहराई में पैठकर केवल विश्लेषण ही नहीं करते, बल्कि नई उद्भावनाओं से अपने विवेचन को विचारोत्तेजक भी बना देते हैं। उलझन उनमें कहीं नहीं है। उनका अन्तर्मन अत्यंत संवेदनशील और सारग्राही है।  हिन्दी के समादृत समीक्षकों में उनका विशिष्ट स्थान है। उन्होंने अपनी कलम के सचेतन स्पर्श से 'अज्ञेय' जैसे साहित्य के मूर्धन्य महारथी को ज्ञेय बना दिया है। अज्ञेय की सर्वाधिक चर्चित कविता "असाध्य वीणा" को डा. अवस्थी 'महामौन का शब्दहीन गान' मानते हुए कहते हैं, “ स्वयं को निःशेष रूप से देने पर ही सर्वव्याप्त सत्य बोलता है। मौन में ही सत्य गूँजता है। इस सर्वव्याप्त तत्व को अपने ऊपर पड़े बौद्ध प्रभाव के अनुरूप अज्ञेय ने महाशून्य की संज्ञा दी है और सम्पूर्ण कविता में इसी सत्य का निरूपण उन्होंने किया है।”

             आमतौर पर देखा गया है कि जीवन के प्रति यथार्थवादी दृष्टिकोण व्यक्ति को निराशावादी बना देता है। ईश्वर, धर्म, नैतिकता, आस्था, विश्वास, निष्ठा और मूल्यबोध जैसे शब्दों पर से उसका भरोसा उठ जाता है। हीनता ग्रन्थि, विफलता बोध और हताशा के भाव उसकी जिजीविषा को क्षण-क्षण क्षतविक्षत करते रहते हैं, किन्तु, यह प्रसन्नता का विषय है कि डा. अवस्थी का मूल स्वर आस्थावादी है। वे न वैश्विक स्तर पर और न ही सामाजिक या राष्ट्रीय स्तर पर निराशा और विषाद का वरण करते हैं। उनके अनुसार, जैसे 'स्फिंक्स' नामक चिड़िया बार-बार नष्ट होकर पुनर्जीवित होती और जयगान गाती है, वैसे ही मनुष्य की जिजीविषा भी अपराजेय होती है।

            अहर्निश हिन्दी के उन्नयन और पोषण में लगे डा. अवस्थी की कवि और कविता की समझ बेजोड़ है। अपनी कृति " काव्यपुरुष अटलबिहारी वाजपेयी " में वे लिखते हैं, " कवि अपने व्यक्तित्व का लोक-हृदय में विलयन करने के बाद अपनी निज सत्ता से ऊपर उठ जाता है और उसका व्यक्ति-सत्य ही व्यापक सत्य बनकर प्रकट होता है। जब तक कोई व्यक्ति अपनी "मैं" की केंचुल से बाहर निकलकर शुद्ध हृदय नहीं हो जाता, तब तक कविकर्म सफल नहीं हो सकता।" सम्पूर्ण पुस्तक में अन्यान्य न जाने कितनी ऐसी निष्पत्तियाँ हैं जो सार्वजनीन तथा सार्वकालिक हैं। डा. अवस्थी स्वीकारते हैं कि काव्य में सत्य, शिव और सुन्दर की संश्लिष्ट एकान्विति प्रयोजनीय होती है। सफल कवियों की कृतियों में इन तीनों को पृथक करके नहीं देखा जा सकता।

           "समवाय"- जिसकी चर्चा प्रारम्भ में की जा चुकी है- के अतिरिक्त डा. अवस्थी ने जिन पाँच अन्य गरिमामय ग्रन्थों का सम्पादन किया है, वे इसप्रकार हैं-

1- अनुवाक : फतेहपुर जनपद का पुरातत्व इतिहास, साहित्य, संस्कृति एवं कला ( 1984, 2015 )

2- स्मृतिशेष गोविन्दवल्लभ पन्त : शताब्दी वर्ष (1988 )

3- सत्याग्रह अरु असहयोग का आल्हा : स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बाबू बंशगोपाल एडवोकेट द्वारा 1923 से 1938 के बीच जेल में लिखित ( 2011 )

4- अनुकाल : फतेहपुर जनपद का पुरातत्व, इतिहास, कला, साहित्य, संस्कृति के सन्दर्भ ( 2013 )

5- राघव रंग : डा. शिवबहादुर सिंह भदौरिया के वागर्थ का ( 2013 )।

           डा. अवस्थी द्वारा सुसम्पादित सभी ग्रन्थ साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं। शताब्दियों बाद भी शोधार्थी फतेहपुर से सम्बन्धित प्रामाणिक जानकारियों के लिए 'अनुवाक' और 'अनुकाल' के पन्ने अवश्य पलटेंगे, ऐसा मेरा विश्वास है। इन ग्रन्थों के न केवल सम्पादकीय आलेख वरन् इनकी सारी सामग्री अत्यंत मूल्यवान है, कालजयी है।

             डा. अवस्थी निबन्ध, शोध, समीक्षा, सम्पादन, अनुवाद, रेडियोवार्ता आदि साहित्य की विविध विधाओं के सर्जन में सिद्धहस्त हैं। उन्होंने 1979 ई. से 1982 ई. तक आकाशवाणी लखनऊ से जिले की चिट्ठी के प्रसारण का गुरुतर दायित्व निभाया है। मुस्लिम संतों एवं हिन्दी कवियों पर 12 वार्ताओं के प्रसारण का श्रेय भी उन्हें प्राप्त है।

           स्व-सृजन और सम्पादन के साथ-साथ  डा. अवस्थी ने अनगिनत सुस्थापित तथा नवोदित रचनाकारों की रचनाओं की प्रासंगिक तथा प्रभावशाली पीठिकाएँ लिखकर साहित्य के संवर्धन में अपनी महती भूमिका का निर्वहन किया है। मेरे पास उपलब्ध जिन पुस्तकों में डा. अवस्थी की उल्लेखनीय भूमिका है, उनका विवरण इसप्रकार है-

1- मन गोविन्द करे : धनंजय अवस्थी ( 2004 )

2- सपने जिन्दा हैं अभी : प्रेमनन्दन ( 2005 )

3- तरंग : जानकीप्रसाद श्रीवास्तव 'शाश्वत' ( 2008 )

4- गंगा लहरी ( पद्यानुवाद ) : आचार्य सत्यानंद शुक्ल ( 2015 )

5- काया : मधुसूदन दीक्षित ( 2015 )

6- मोहन गीतावली : मोहनलाल गौतम ( 2015 )

7- श्वेत श्यामपट : श्रीकृष्ण कुमार त्रिवेदी ( 2015 )

8- अमर शहीद गीता : डा. ब्रजमोहन पाण्डेय ( 2016 )

9- काव्य मल्लिका : भइयाजी अवस्थी 'करुणाकर' ( 2016 )

           उपर्युक्त के अतिरिक्त भी न जाने कितने कवियों/ लेखकों की कृतियाँ डा. अवस्थी के स्वस्तिवाचन से धन्य हुई होंगी। स्मृतिशेष ठा. चन्द्रपाल सिंह जयन्ती स्मारिका ( 2018 ) और यशस्वी पीढ़ियाँ : सं. डा. बालकृष्ण पाण्डेय ( 2011 ) में प्रकाशित सुकवि संग्राम सिंह शीर्षक आलेख भी पठनीय तथा संग्रहणीय है। "अक्षय" स्मारिका ( 2006 - 2007 ) में प्रकाशित आपके आलेख का महत्व भी अक्षय ही है।

          कहाँ तक कहें? समझ में नहीं आता कि क्या छोड़ें और क्या कहें! "सत्याग्रह अरु असहयोग का आल्हा" की भूमिका में डा. बालकृष्ण पाण्डेय लिखते हैं, “ सभी को बाबू बंशगोपाल के कृतित्व से परिचित कराने का श्रेय जाता है- फतेहपुर के शीर्षस्थ आलोचक और जनपद के 'इनसाइक्लोपीडिया' माने जाने वाले महात्मा गाँधी महाविद्यालय के पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष डा. ओउमप्रकाश अवस्थी को।”

          कीर्तिशेष श्रीकृष्ण कुमार त्रिवेदी ने "श्वेत श्यामपट" की भूमिका लिखने पर डा. अवस्थी के प्रति आभार ज्ञापित करने के स्थान पर जो लिखा है, वह उद्धरणीय है- “नव्य साहित्य के पारखी अनुसन्धित्सु डा. ओउमप्रकाश अवस्थी ने संग्रह को अपनी तत्वदर्शी भूमिका से अलंकृत करके इसकी श्रीवृद्धि की है। उनका मुझ पर अपार स्नेह मेरी अन्तर्निर्मिति में अत्यंत सहायक सिद्ध हुआ है। उनका आभार व्यक्त करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं।”

           वरिष्ठ साहित्यकार श्री शिवशरण सिंह चौहान 'अंशुमाली' द्वारा सम्पादित महत्वपूर्ण सन्दर्भ ग्रन्थ 'फतेहपुर का काव्यप्रकाश' में प्रकाशित अपने आलेख में साहित्यभूषण धनंजय अवस्थी का सारगर्भित कथन है- “ यदि डा. अवस्थी का 'अनुवाक' न होता, तो सम्भव है कि 'अंशुमाली' को 'फतेहपुर का काव्यप्रकाश' प्रकाशित करने की प्रेरणा ही न मिलती।”

          फतेहपुर और आसपास के हिन्दी साहित्य जगत को लगातार उद्वेलित व आलोड़ित रखनेवाले डा. ओउमप्रकाश अवस्थी का सम्पूर्ण कृतित्व गम्भीर पठन-पाठन की माँग करता है। कतिपय सीमाओं के बावजूद उनके निबन्धों का वैशिष्ट्य उन्हें उल्लेखनीय बनाता है, विशिष्ट बनाता है। बाँदा ( उ. प्र. ) से प्रकाशित 'नूतनवाग्धारा' के अज्ञेय विशेषांक ( जनवरी- मार्च 2011 ) में प्रकाशित उनका आलेख "साधारणीकरण" ( आचार्य रामचन्द्र शुक्ल से सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' तक ) को पढ़कर भी उनकी अभिव्यक्ति की असाधारणता को, वैशिष्ट्य को समझा-सराहा जा सकता है।

             अन्त में, अनेक साहित्यिक - सांस्कृतिक संस्थाओं से सम्बद्ध, सादगी से सुभूषित डा. ओउमप्रकाश अवस्थी का व्यक्तित्व 'समुद्र इव गम्भीर तथा हिमवान इव धैर्यवान' है, मनसा-वाचा-कर्मणा एक है। आप एक अनासक्त महात्मा का प्रतिनिधित्व करते हैं। एतावता हमारी, हम सबकी हार्दिक कामना है कि श्रद्धेय अवस्थी जी स्वस्थ सुदीर्घ जीवन जिएँ और साहित्य सम्वर्द्धन में अपना अतुल्य योगदान देते रहें। कलमकारों की उत्तरवर्ती पीढ़ी के लिए उनका आशीर्वाद अमूल्य है।

महेशचन्द्र त्रिपाठी

आर 115 खुशवक्तराय नगर

फतेहपुर ( उ. प्र. )

पिनकोड - 212601

मोबाइल नं. 8840496659




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Written by Mahesh Chandra Tripathi